पंजाब को बाढ़ से बचाने को बने कारगर रणनीति
पंजाब में आई हालिया बाढ़ ने व्यापक जन-धन की हानि की है। असामान्य बारिश इसकी वजह बनी, लेकिन बांधों का तर्कसंगत और समयबद्ध प्रबंधन बाढ़ की विभाषिका को कम कर सकता है। भविष्य में ऐसी तबाही की पुनरावृत्ति रोकने हेतु बांधों का प्रबंधन, जल संग्रहण क्षमता का विस्तार, नदियों के जल प्रवाह को संतुलित एवं सुरक्षित रूप से नियंत्रित करना जरूरी है।
पंजाब ने 1988 के बाद पांचवीं बार विनाशकारी बाढ़ का सामना किया है। इससे पहले, राज्य में 1993, 2008, 2019 और 2023 में विनाशकारी बाढ़ आई थी। संयोगवश, इन बाढ़ों के लिए केवल सतलुज और व्यास नदियां ही ज़िम्मेदार रही हैं। रावी नदी केवल इस साल ही रौद्र रही। बाढ़ का पैटर्न कमोबेश हर बार जाना-पहचाना होता है। इस साल, अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितंबर के पहले दो सप्ताहों में सतलुज और व्यास के जलग्रहण क्षेत्रों में लगातार बारिश हुई, जबकि दोनों नदियों पर बने बांधों के जलाशय पहले ही अधिकतम भंडारण स्तर तक भर चुके थे। परिणामस्वरूप, जलाशयों को सुरक्षित और इष्टतम स्तर पर बनाए रखने के लिए स्पिल-वे से प्रचुर मात्रा में पानी छोड़ना पड़ा, जो पूरे वेग से निकला। इस निकासी के साथ-साथ, दोनों बांधों के निचले उप-पहाड़ी इलाकों से उत्पन्न भारी वर्षा जल प्रवाह ने भी दोनों नदियों को उफान पर ला दिया, जिससे राह में पड़ने वाले कमज़ोर तटबंध टूट गए और बड़ी संख्या में गांवों के खेत जलमग्न हो गए।
इस बार, तीनों नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों की तुलना में उप-पहाड़ी क्षेत्रों में हुई भारी बारिश के कारण विनाशकारी बाढ़ आई और बांधों के निचले इलाकों में लाखों क्यूसेक पानी पैदा होकर प्रवाहित हुआ। उदाहरणार्थ, 7 सितंबर तक, बीबीएमबी ने केवल सीमित मात्रा में पानी छोड़ा, जो बिजली संयंत्रों को उनकी निर्धारित क्षमता पर चलाने के लिए आवश्यक था। सतलुज और ब्यास नदियों में पानी की आमद लगभग पूरी तरह से बांधों से निचले इलाके की सहायक नदियों एवं अन्य धाराओं द्वारा लाए गए प्रचुर जल-प्रवाह के कारण थी। उदाहरण के लिए, स्वां और सिरसा नामक दो बड़ी सहायक नदियों सहित अन्य 16 धाराएं हैं, जो नंगल बांध और रोपड़ हेडवर्क्स के बीच के इलाके में सतलुज में आन मिलती हैं। इन 16 धाराओं का संयुक्त प्रवाह 3.0 लाख क्यूसेक से अधिक रहा।
रावी नदी के मामले में प्रवाह का पैटर्न थोड़ा अलग हो सकता है। यहां, बीबीएमबी के विपरीत, पंजाब के सिंचाई विभाग ने रणजीत सागर जलाशय के आंतरिक प्रवाह और बाह्य प्रवाह के आंकड़े मीडिया को नहीं बताए हैं। ऐसी संभावना है कि स्पिल-वे से 600 मेगावाट बिजली संयंत्र चलाने के लिए आवश्यक मात्रा से अधिक पानी छोड़ा गया हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि रणजीत सागर जलाशय की वर्तमान भंडारण क्षमता केवल 2.33 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जोकि पौंग बांध जलाशय के 30 प्रतिशत और भाखड़ा जलाशय के 38 प्रतिशत जितनी है। इसके अलावा, रणजीत सागर, पौंग बांध और भाखड़ा बांध जलाशयों का क्षेत्रफल क्रमशः 52, 241 और 168 वर्ग किलोमीटर है। यह तुलना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जलाशय के छोटे आकार के कारण रणजीत सागर बांध विराट मात्रा में आए पानी को संभालने में असमर्थ है और स्पष्टतः अधिकतम प्रवाह को नियंत्रित नहीं कर सकता। रावी नदी से लगभग 4.0 लाख क्यूसेक अभूतपूर्व प्रवाह का यह एक और कारण हो सकता है।
फिर, डलहौजी के पास रावी नदी के ऊपर की ओर, 121 मीटर ऊंचा चिमेरा बांध है और इसका कुल संग्रहण क्षेत्र लगभग 0.45 बिलियन घन मीटर (बीसीएम) है। इसी प्रकार, भाखड़ा बांध के ऊपर की ओर 167 मीटर ऊंचा कोल बांध का संग्रहण क्षेत्र 0.6 अरब घन मीटर में है। दुर्भाग्य से, इन दोनों बांधों को नदी-प्रवाह (रन ऑफ द रिवर) परियोजनाओं के रूप में डिज़ाइन किया गया है। अधिकतम संभव विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए, इनके जलाशयों को वर्ष भर ऊपर तक भरा रखा जाता है। यदि इन दोनों बांधों को भी संग्रहण बांधों के रूप में डिज़ाइन किया गया होता, तो इनके जलाशय आपातकालीन अवधियों के दौरान बड़े आने वाले जल प्रवाह को अपने अंदर समाहित रणजीत सागर तथा भाखड़ा बांधों के स्पिल-वे पर चरम प्रवाह के बोझ को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते थे।
पंजाब के आठ जिलों के 2000 गांवों में बाढ़ के भयावह स्तर और इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण अर्थव्यवस्था की व्यापक क्षति को देखते हुए, पंजाब और केंद्र सरकार, दोनों को तत्काल निवारक उपाय करने की आवश्यकता है जिससे भविष्य में इस प्रकार की भयावह बाढ़ की स्थिति फिर कभी न बने। ये उपाय अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दोनों होने चाहिए, जैसा कि नीचे विस्तार से बताया गया है।
अल्पकालिक उपाय के रूप में भारतीय मौसम विभाग द्वारा वर्षा के पूर्वानुमान सही निकलते पाए जाने पर, बीबीएमबी को 20 अगस्त के आसपास दोनों बांधों में जलाशय स्तर को पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) से कम-से-कम एक मीटर नीचे रखना चाहिए ताकि अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में अधिक जल प्रवाह को समायोजित किया जा सके। रणजीत सागर बांध के इंजीनियरिंग विंग भी ऐसी नीति अपनाए। दूसरा, सभी पुलों के नीचे के जलमार्गों से जमा हुई तमाम गाद को पूरी तरह से साफ़ किया जाए। इसी प्रकार, वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले सभी वेयर्स और बैराजों के गेटों की कार्यक्षमता की जांच हो। कीचड़ व मलबे के कारण माधोपुर हेडवर्क्स के केवल पांच गेट ही खोले जा सकें।
तीसरा, सिंचाई विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि तीनों नदियां सुरक्षित तरीके से 4.5 लाख क्यूसेक पानी का बहाव सुनिश्चित कर सकें। इसके लिए विभाग मौजूदा कमजोर तटबंधों को मज़बूत करे, खनन ठेकेदारों द्वारा तटबंधों पर लगाई सेंधों को बंद करे, पूरक तटबंध बनाए, नदियों के पूरे रास्ते भर तटबंधों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर स्पर और ग्रोइन बनाए जाएं जो अगली बरसात से पूरा हो जाना चाहिए। इसी तरह, सतलुज नदी के हरिके और हुसैनीवाला बैराज के बीच के 53 किलोमीटर के हिस्से में नदी प्रवाह सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि एकीकृत हुई नदी, सतलुज और ब्यास के संयुक्त प्रवाह को सुरक्षित रूप से संभाल पाए।
दीर्घकालिक उपाय के रूप में पंजाब सरकार को चाहिए कि रिकांगपिओ के ऊपरी हिस्से में सतलुज नदी पर खाब परियोजना को पुनर्जीवित करके 1.0 बीसीएम क्षमता का एक भंडारण बांध बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास करे। इस बांध का भंडारण अचानक आने वाली बाढ़ को अपने में समा कर, भाखड़ा जलाशय तक मार करने वाली बाढ़ को नियंत्रित करने में मददगार होगा। इसके अलावा, यह सतलुज नदी के निचले हिस्से में बने सभी जलविद्युत परियोजनाओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में भी बहुत सहायक होगा।
दूसरे, ब्यास नदी के जलग्रहण क्षेत्र में इस प्रकार का भंडारण बांध बनाने की संभावना सीमित है। लेकिन कुछ कम ऊंचाई के गाद-संग्रहण बांध अवश्य बनाए जाने चाहिए क्योंकि पंडोह और पौंग बांधों में गाद चिंताजनक स्तर तक जमा हुई है।
तीसरे, रावी नदी के जलग्रहण क्षेत्र में कुछ सहायक नदियों पर भंडारण बांध बनाने की संभावना है। यह घाटी दामोदर नदी घाटी निगम द्वारा उठाए गए कदमों की तर्ज पर अतिरिक्त जल संसाधन विकसित करने और बाढ़ रोकथाम उपाय करने के लिए एक उपयुक्त विकल्प है, जहां पश्चिम बंगाल के हुगली, बर्धवान और हावड़ा जिलों में विनाशकारी बाढ़ को रोकने हेतु दामोदर नदी और इसकी दो प्रमुख सहायक नदियों पर चार बांध बनाए गए थे। वर्तमान में, रणजीत सागर बांध अपने छोटे जलाशय के कारण बड़े पैमाने के प्रवाह को संभालने में असमर्थ है।
तीनों बांधों के निचले उप-पहाड़ी क्षेत्रों में जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के लिए एक युद्धस्तरीय कार्यक्रम शुरू हो, विशेष रूप से स्वां, सिरसा, चक्की, काली बेईं, उझ और सिसवां जैसी सहायक नदियों को नियंत्रित करने के लिए। इनमें से कुछ सहायक नदियों में कभी-कभी तो 70000 क्यूसेक जितना पानी बहता है। इनसे पंजाब में विनाशकारी बाढ़ की पुनरावृत्ति को हमेशा के लिए रोका जा सकता है।
लेखक सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा के इंजीनियर-इन-चीफ रहे हैं।