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भैंस भरोसे वैतरणी पार करने की कवायद

तिरछी नज़र
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सहीराम

राजनीति में बहस का स्थान तो हमेशा रहा। लेकिन भैंस का कभी नहीं रहा। भैंस लोक व्यवहार में आयी जैसे हरियाणा में असहमति और नाराजगी में अक्सर कह दिया जाता है कि यार मैंने क्या तेरी भैंस खोल रखी है। फिर बात बिगड़ने पर भी लोग कह उठते हैं- ले भई, गई भैंस पानी में। जैसे किए कराए पर पानी फिरना अच्छा नहीं माना जाता, वैसे ही भैंस का इस तरह पानी में जाना भी अच्छा नहीं माना जाता। भले ही खुद भैंस को कितना ही अच्छा लगता हो। वह घंटों पानी में रह सकती है और बड़े आनंद से रह सकती है। हालांकि, भैंस पालने वालों को भी उसका पानी में लोटना उतना ही पसंद होता है। और खासतौर से गर्मी के दिनों में अगर भैंस दो-चार घंटे पानी में लोट ले, तो मालिक को भी सुकून मिलता है।

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लेकिन भैंस कीचड़ में भी उतने ही आनंद से लोट सकती है। इस मायने में वह किसी तरह के आभिजात्य की मारी नहीं होती। खैर, भैंस कहावतों में भी आयी और ऐसी आयी कि उसके आगे बीन बजी तो भी वह पगुराती रही। इस माने में भैंस ज्यादा टेंशन नहीं लेती। अपना बीपी नहीं बढ़ाती। और जनाब कमाल तो यह है कि भैंस फिल्मी गानों में भी आयी और एक जमाने में तो उससे जुड़ा वह फिल्मी गाना- मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा- इतना प्रसिद्ध हुआ कि महबूबाओं को रश्क होने लगा कि कहीं शायरों ने हमें भुला ही तो नहीं दिया।

लेकिन भैंस अब राजनीति में भी आ गयी है। इसे लेटरल एंट्री नहीं बल्कि यह माना जाए कि उसका प्रभाव क्षेत्र बढ़ रहा है। गाय तो खैर राजनीति में पहले से थी। अच्छी बात यह है कि जो गाय को लेकर आए वही, भैंस को भी लेकर आए। सो किसी तरह के भेदभाव का आरोप नहीं लग सकता। अलबत्ता अगर भैंस अब भी राजनीति में नहीं आती तो वह जरूर भेदभाव का आरोप लगा सकती थी। हालांकि, गाय ने कभी यह आरोप नहीं लगाया कि भैंस को लेकर तो कहावतें बनी, पर उसको लेकर नहीं बनी। लेकिन वह जानती है कि उसे मां का दर्जा मिला जो भैंस को सारी दुनिया को दूध पिलाकर भी नहीं मिला। उसको लेकर सौगंधें खायी जो भैंस को लेकर कभी नहीं खायी गयी। इस लिहाज से मामला बराबरी का ही रहा।

लेकिन इतनी शिकायत तो गाय को हो ही सकती थी कि मालिकों ने गाय को कभी खूंटे पर नहीं रखा और वह कचरे के ढेरों पर मुंह मारती रही। जबकि भैंस को उन्होंने कभी खूंटे से खोला नहीं और वह माल उड़ाती रही। लेकिन गाय ने सब्र कर लिया होगा कि फिर धर्मपरायणों की रोटी भी तो हमेशा उसे ही मिली और उसकी पूंछ पकड़े बगैर कोई वैतरणी पार नहीं कर पाया। ऐसे में अगर भैंस चुनाव की वैतरणी पार कर दे तो बुरा क्या है? नहीं?

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