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शांति और दमन के बीच अमेरिकी राजनीति

गाजा संकट
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शांति स्थापित करने में सक्षम शक्तियां एक साथ युद्ध में ईंधन और पानी दोनों डालने की राजनीति कर रही हैं। इस प्रकार, निकट भविष्य में स्थायी शांति आम फलस्तीनियों के लिए एक भ्रम ही है, हालांकि ‘आशा के विरुद्ध आशा’ रखने से आशा जीवित रहती है।

इस्राइल और फलस्तीन के बीच लगभग दो वर्षों से जारी युद्ध का अंत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। यह संघर्ष हमास द्वारा 7 अक्तूबर, 2023 को किए गए बर्बर हमले के जवाब में शुरू हुआ था, जिसमें 1,200 लोग मारे गए और 251 इस्राइली बंधक बनाए गए थे। इसके बाद गाज़ा में अब तक 70,000 से अधिक फलस्तीनी मारे जा चुके हैं, पर न तो बंधक रिहा हुए हैं और न ही युद्ध रुका है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और इस्राइली मानवाधिकार संगठनों ने इसे ‘नरसंहार’ बताया है और युद्धविराम की मांग की है। वहीं, अमेरिका एक ओर शांति वार्ता की बात करता है, दूसरी ओर इस्राइल को हथियार भी उपलब्ध करा रहा है।

कहा जा रहा है कि हमास शांति वार्ता प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है, लेकिन इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निमंत्रण पर तीसरी बार अमेरिका जाकर भी बिना किसी युद्धविराम समझौते के लौट आए। गौरतलब है कि इस दौरे के दौरान ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया, लेकिन गाज़ा में युद्ध रोकने की दिशा में कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।

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वास्तविकता यह है कि जहां ट्रम्प बार-बार शांति का आह्वान कर रहे हैं, वहीं नेतन्याहू खुलेआम अपनी शक्ति का प्रदर्शन यह कहकर कर रहे हैं कि इस्राइल केवल अपनी शर्तों पर ही शांति स्थापित करेगा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार, इस्राइली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने शांति वार्ता के दौरान गाज़ा स्थित एक खाद्य सहायता केंद्र से भोजन लेने गए सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी है।

दरअसल, इस्राइली प्रधानमंत्री और उनकी दक्षिणपंथी (राइट विंग) विचारधारा की सरकार का एजेंडा इस क्षेत्र पर यहूदियों पर पूर्ण नियंत्रण का है। इसके अलावा, नेतन्याहू के लिए युद्ध, उनके ख़िलाफ़ चल रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर इस्राइल में चल रहे अदालती मुक़दमे और चुनावों को टालने का एक हथियार है।

अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी सरकारें गाज़ा में इस्राइली युद्ध को ‘वैध आत्मरक्षा’ बताकर और उसे युद्ध के हथियार मुहैया कराकर उसका समर्थन कर रही हैं। वे नेतन्याहू के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी इस्राइली सरकार की युद्ध संबंधी कार्रवाइयों के विरुद्ध वैश्विक विरोध प्रदर्शनों को ‘यहूदी-विरोधी’ कहकर यहूदी धर्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

कहानी का दूसरा पहलू यह है कि गाज़ा में आईडीएफ सैनिक नियमित रूप से ‘अरबों को मौत दो’ और ‘उनके गांव जला दो’ जैसे नारे लगाते हैं लेकिन कोई भी उनकी निंदा नहीं करता है।

इस क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने और युद्ध जारी रखने में अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी सरकारों और इस्राइल के भू-राजनीतिक और आर्थिक हित स्पष्ट हैं।

कहानी का एक और पहलू है—’भूख को हथियार बनाना’। पहले इस्राइल ने गाज़ा को संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता पूरी तरह से रोक दी थी ; फिर मई के अंत में, अंतर्राष्ट्रीय निंदा के दबाव में, मानवीय सहायता वितरण के लिए इसने अमेरिकी निजी सुरक्षा कंपनियों की देखरेख में अमेरिका-इस्राइल समर्थित गाजा मानवतावादी फाउंडेशन (जीएचएफ) की स्थापना की, जो केवल चार स्थानों से सहायता वितरित करने वाली एकमात्र एजेंसी है, जबकि मार्च से पहले चार सौ से ज्यादा स्थानों से सहायता वितरित की जा रही थी।

संयुक्त राष्ट्र ने जीएचएफ प्रणाली को ‘अपर्याप्त रूप से सुरक्षित’ और ‘हत्या का मैदान’ कहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने गाज़ा में फलस्तीनी लोग सहायता नाकाबंदी को मानव निर्मित ‘बड़े पैमाने पर भुखमरी’ कहा है। 170 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों ने जीएचएफ की खाद्य सहायता वितरण प्रणाली पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इससे नागरिकों की मृत्यु और उनके ज़ख्मी होने का खतरा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस्राइल और जीएचएफ पर फ़लस्तीनियों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने हेतु भुखमरी को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, एक साथ ही गाज़ा युद्ध की समाप्ति और शांति की बात भी कर रहे हैं, जबकि इस्राइल के ‘फलस्तीनी नरसंहार’ को ‘आत्मरक्षा’ बताकर उचित भी ठहरा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि शांति असंभव है; शांति इसलिए नहीं हो रही है क्योंकि गाज़ा में ‘नरसंहार’ युद्ध पर हावी शक्तिओं को किसी भी राजनीतिक या आर्थिक कीमत चुकाने का डर नहीं है।

वास्तव में, यह युद्ध अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व और हथियारों की बिक्री के लिए अमेरिकी राजनीतिक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करता है; मध्य पूर्व के संसाधनों और हथियारों के बाज़ार में अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम देशों की रुचि और हिस्सेदारी बनता है।

शांति स्थापित करने में सक्षम शक्तियां एक साथ युद्ध में ईंधन और पानी दोनों डालने की राजनीति कर रही हैं। इस प्रकार, निकट भविष्य में स्थायी शांति आम फलस्तीनियों के लिए एक भ्रम ही है, हालांकि ‘आशा के विरुद्ध आशा’ रखने से आशा जीवित रहती है।

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