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अमेरिकी अविश्वास से बनते नए कूटनीतिक समीकरण

ट्रंप की नीतियां विश्व स्तर पर नये गठबंधन, सत्ता समीकरण को जन्म दे रही हैं। हर देश इस समय अपने को केंद्र में रखकर कई स्तरों में वार्ता व समझौते कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वजह से...
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ट्रंप की नीतियां विश्व स्तर पर नये गठबंधन, सत्ता समीकरण को जन्म दे रही हैं। हर देश इस समय अपने को केंद्र में रखकर कई स्तरों में वार्ता व समझौते कर रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वजह से क्या विश्व कूटनीति में नये समीकरण उभर रहे हैं, नई दोस्तियां हो रही हैं, नए समझौते हो रहे हैं इनके केंद्र में पश्चिमी एशिया व एशिया है, जहां के देशों के बीच पुनर्मिलन व नई संरचनाएं हो रही हैं। इसमें से न्यू वर्ल्ड ऑडर भी आकार ले सकता है। विश्व व्यापार में जी-7 देशों का दबदबा कम होना और जी-20 का प्रभाव बढ़ना क्या इसका सूत्रधार है।

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ये तमाम सवाल ट्रंप के रोज नए पैंतरों और उनके जवाब में देशों के झुकने के बजाय नये रास्ते निकालने से और तेज हो गये हैं। इसके एक ज्वलंत उदाहरण के रूप में, सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता दिखाई देता है। जिस तरह से ये दोनों देश—जो अमेरिका के साथ ही माने जाते हैं, वे साथ आए, उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खलबली मची है। सवाल है कि क्या पश्चिम एशिया के देशों में खासतौर से जो अमेरिका की गुड बुक्स में रहे हैं, उनका भरोसा अमेरिका से हट रहा है। पश्चिम एशिया के देश क्या अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसे ट्रंप द्वारा अफगानिस्तान के तालिबानी शासन पर बगराम एयरबेस को वापस मांगने के लिए धमकी देने वाले घटनाक्रम से भी जोड़कर देखा जा सकता है। जिस तरह से तालिबानी शासन ट्रंप की इस मांग का विरोध कर रहा है—वह उसके वर्चस्व को चुनौती देने जैसा प्रतीत होता है। और तो और ट्रंप ने भारत पर जो एच1बी वीजा की फीस बढ़ाकर 88 लाख रुपये सालाना करके एक और वार किया, उसमें चीन का के-1 वीजा का ऑफर भी इसी सिलसिले में दिखाई देता है।

आखिर पश्चिमी एशिया में ऐसा क्या घट रहा है, जिसकी वजह से सऊदी अरब और पाकिस्तान ने इतना अहम समझौता किया। दरअसल, इस समझौते के पीछे सबसे बड़ा कारक है कतर पर किया गया इस्राइल का हमला। जिस तरह से इस्राइल ने अच्छी-खासी दूरी को लांघते हुए कतर की राजधानी दोहा पर हमला किया—उसने पूरे इलाके में गहरा विक्षोभ व असंतोष पैदा किया। कतर अमेरिका का पुराना सहयोगी देश है और यहां वर्ष 2000 से अमेरिका का सैन्य अड्डा है। कतर की राजधानी दोहा के पास मौजूद अल उदैद एयरबेस पश्चिम एशिया में अमेरिकी सेंट्रल कमांड ते एयर ऑपरेशंस का मुख्यालय है। यानी कतर को यह 100 फीसदी गारंटी थी कि अमेरिका का सैन्य अड्डा यहां है, लिहाजा वह इस्राइल समेत तमाम देशों के किसी भी हमले से महफूज़ है। जब दोहा में हमास के नेताओं को मारने के लिए इस्राइल ने हमला बोला—तब उसका ये विश्वास खंडित हो गया। यहां कतर का यह कहना भी वाजिब है कि वह अमेरिका के कहने पर ही फलस्तीन के मिलिटेंट संगठन हमास के संग शांति वार्ता आयोजित कर रहा था ऐसे में उसकी राजधानी पर इस्राइल का हमला—उसके लिए बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल था। पूरे इलाके में खलबली मची। साथ ही साथ सऊदी अरब को भी लगा कि वह भी सुरक्षित नहीं है, क्योंकि इस्राइल की मिसाइलें सऊदी के एयर स्पेस को पार करके ही दोहा पहुंच सकती थीं। सऊदी अरब पश्चिमी एशिया में बड़ा देश है और उसे भी गहरी बेचैनी व असुरक्षा लगी। वरना, अभी तक ये सारे देश (मुस्लिम देश) विश्व कूटनीति में अमेरिका के साथ ही माने जाते रहे हैं।

इस्राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी एक तरह से कतर को उसकी औकात बताने के लिए कहा कि उन्होंने ट्रंप को दोहा पर इस हमले के बारे में बता दिया था। यानी इस्राइल ने अपनी बॉसगीरी को छुपाकर नहीं रखा और यह भी कह दिया कि वह आगे भी ऐसा ही करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी मजबूरी में कहना पड़ा कि इस्राइल सही कह रहा है। सऊदी अरब जो इस इलाके का सबसे बड़ा और शक्तिसंपन्न देश है, उसने गहरी असुरक्षा से भरकर ही पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाया।

इस लिहाज से सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता, इस क्षेत्र के लिए गेम चेंजर हो सकता है। इसमें तय किया गया है कि यदि किसी बाहरी देश ने एक पक्ष पर आक्रमण किया तो इसे दूसरे देश पर भी आक्रमण माना जाएगा। सऊदी अरब पाकिस्तान के न्यूक्लियर एम्ब्रेला के अंदर है, यानी पाकिस्तान द्वारा सऊदी के रक्षा कवच के रूप में न्यूक्लियर क्षमताएं शामिल हो सकती हैं। आज की तारीख में सऊदी अरब के पास पाकिस्तान का न्यूक्लियर कवच मौजूद होगा, जो उसे किसी भी देश के हमले में बचाने में काम आ सकता है। पाकिस्तान का भी कद बड़ गया और उसे न्यूक्लियर पॉवर होने का लाभ भी मिला।

हालांकि, यह कहना अभी दूर की कौड़ी होगी कि इससे क्या पश्चिम एशिया में अमेरिकी पकड़ ढीली होगी, क्योंकि बड़ा प्लेयर अभी भी अमेरिका ही है। लेकिन अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती जरूर मिल रही है। जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र परिषद में गाजा में सीजफायर के प्रस्ताव पर भी अमेरिका अलग-थलग पड़ गया था। भारत में शंघाई सहयोग संगठन के प्रस्ताव के बाद यहां भी सीजफायर यानी गाजा में युद्ध विराम के पक्ष में अपना मत दिया था।

वैसे यह याद रखना भी जरूरी है कि सऊदी और पाकिस्तान के बीच यह समझौता भारत के लिए परेशानी का सबब हो सकता है। इसकी वजह साफ है कि यह समझौता पाकिस्तान को सऊदी अरब जैसे शक्तिशाली राज्य के साथ एक पारंपरिक रक्षा साथ जोड़ता है। इससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन प्रभावित हो सकता है। भारत को पश्चिमी एशिया और दक्षिण एशिया में अपनी रणनीतिक पहुंच और साझेदारियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। अगर पाकिस्तान वास्तव में सऊदी को न्यूक्लियर एम्ब्रेला प्रदान करता है तो भारत के परमाणु रणनीतिक पर यह एक नया तत्व जोड़ता है। भारत को यह देखना होगा कि इस तरह की स्थिति में कौन-सी कार्रवाई और सुरक्षा नीति अपनानी है। वैसे पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने इसे ‘रक्षात्मक व्यवस्था’ बताया है।

साथ ही साथ, यह भी ध्यान देना चाहिए कि भारत और सऊदी अरब के बीच ऊर्जा, निवेश, व्यापार आदि मामलों में बेहद मजबूत संबंध हैं। वैसे भी इस तरह के रक्षा समझौते अक्सर यह संकेत देते हैं कि भविष्य में यदि कोई संघर्ष हो, तो इसमें शामिल देशों की भूमिका और प्रतिक्रिया अधिक व्यापक हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सऊदी अरब से खासे घनिष्ठ संबंध हैं और भारत के उद्योगपतियों के लिए भी सऊदी से दोस्ती बहुत जरूरी है।

विश्व कूटनीति में यह दौर बहुत दिलचस्प है क्योंकि इस समय कोई देश भी ये दावा करने की स्थिति में नहीं है कि वह अमेरिका का स्थायी दोस्त है। कब ट्रंप उस देश के खिलाफ मोर्चा खोल दे, यह किसी को पता नहीं। लिहाजा सारे देश अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखकर ही दूसरे देशों से संबंध व नजदीकियां बढ़ा रहे हैं, समझौता कर रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां विश्व स्तर पर नये गठबंधन, सत्ता समीकरण को जन्म दे रही हैं। हर देश इस समय अपने को केंद्र में रखकर कई स्तरों में वार्ता व समझौते कर रहा है। एक तरह की बार्गेनिंग या डील करने-कराने का दौर शुरू हो चुका है। इसमें पश्चिम एशिया, एशिया व ब्रिक्स के देशों के बीच भी जो संवाद स्थापित हो रहे हैं—वे यथास्थिति को तोड़ने वाले साबित हो सकते हैं। पश्चिम एशिया में अमेरिका के बहुत बड़े हित हैं। तेल का अकूत भंडार होने के साथ-साथ उसके शक्तिशाली सैन्य बेस उसे दुनिया को अपने हिसाब से चलाने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिका के घरेलू संकट को हल करने के लिए भले ही ट्रंप कभी टैरिफ का डंडा चलाते हैं, कभी धमकियों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन दुनिया के बाकी देश भी झुक नहीं रहे है। यह एक बदलाव का द्योतक है।

लेखिका अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।

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