मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

चीनी चक्रव्यूह पर अमेरिका की पैनी निगाहें

एससीओ बैठक में शी और मोदी के बीच मेल मिलाप को देखकर हम कह सकते हैं, कि हिन्द प्रशांत में अब चीन-भारत के बीच टकराव की स्थिति नहीं रहेगी। ट्रंप ने टैरिफ़ वार में भारत जैसे मित्र को हिन्द-प्रशांत में...
Advertisement

एससीओ बैठक में शी और मोदी के बीच मेल मिलाप को देखकर हम कह सकते हैं, कि हिन्द प्रशांत में अब चीन-भारत के बीच टकराव की स्थिति नहीं रहेगी। ट्रंप ने टैरिफ़ वार में भारत जैसे मित्र को हिन्द-प्रशांत में खोया है, यह अमेरिकी रणनीतिकार भी महसूस कर रहे हैं।

अमेरिका की अर्थव्यवस्था चाहे भाड़ में जाए, ट्रंप को अपनी कमाई करनी है। डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘क्रिप्टो प्रेसिडेंट’ बनने का वादा किया है। इसी सिलसिले में उनके सुपुत्र एरिक ट्रम्प, सोमवार को टोक्यो में जापानी बिटकॉइन ट्रेजरी कंपनी मेटाप्लेनेट के शेयरधारकों की बैठक में शामिल हो रहे हैं। वर्ल्ड लिबर्टी फ़ाइनेंशियल (डब्ल्यूएलएफ) क्रिप्टो करेंसी को देखता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया, कि अगस्त, 2025 में ‘डब्ल्यूएलएफ’ टोकन का कुल मूल्य 6 बिलियन डॉलर था, और ट्रम्प स्वयं उनमें से दो-तिहाई के मालिक थे। एक दूसरी तस्वीर चीन के बंदरगाह शहर थिएनचिन की थी, जहां शांघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) की बैठक सोमवार को समाप्त हुई है। इस बैठक में डॉलर की वैकल्पिक मौद्रिक अर्थव्यवस्था पर एकबार फिर से ज़ोर दिया गया है। इस बार की एससीओ बैठक का केंद्रीय मुद्दा था, ट्रंप के टैरिफ वॉर का मुक़ाबला करना। ‘दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है’, इसी फार्मूले पर वो नेता भी पधारे, जिन्हें एक-दूसरे की शक्ल तक देखना क़ाबिले बर्दाश्त नहीं।

Advertisement

इस संगठन की स्थापना 2001 में ‘यूरेशियन सुरक्षा समूह’ के रूप में हुई थी, जिसके छह मूल सदस्य थे—चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान। बाद के दिनों में इसका नामांतरण शांघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) के रूप में हुआ, जिसमें बेलारूस, भारत, ईरान और पाकिस्तान के जुड़ने के साथ, इसके 10 सदस्य देश हो गए। ‘एससीओ’ को पश्चिमी देशों के एशियाई प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है।

इस बार की बैठक में बहुपक्षीय विकास पर ज़ोर दिया गया। लेकिन ध्यान से देखा जाये, तो चीन और रूस यह सारी कवायद अपनी अर्थव्यवस्था की मज़बूती के लिए कर रहे हैं। पिछले साल शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्यों के साथ चीन का व्यापार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, कुल मिलाकर लगभग 512.4 अरब अमेरिकी डॉलर, जो साल-दर-साल 2.7 प्रतिशत की वृद्धि है। यह आंकड़ा 2018 में क़िंगदाओ में हुए ‘एससीओ’ शिखर सम्मेलन के दौरान दर्ज किए गए आंकड़ों से दोगुना है। चीनी वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले साल चीन ने अन्य सदस्य देशों से लगभग 90 अरब डॉलर मूल्य का कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला आयात किया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस बैठक की बिना पर एससीओ सदस्य आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करने की कोशिश कर सकते हैं। संगठन द्वारा अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी नेतृत्व वाले वित्तीय संस्थानों से अलग भुगतान प्रणालियों और मुद्राओं के व्यापक उपयोग पर ज़ोर दिए जाने की संभावना है। किन्तु, सवाल है, किस मुद्रा का उपयोग? केवल चीनी युआन और रूसी रूबल को भुगतान के लिए इस्तेमाल में लिया जाये, या भारतीय मुद्रा की भी कोई हैसियत होगी?

लेकिन सवाल है, क्या सभी सदस्यों को सामान अवसर मिलेंगे? चीन का फोकस, ‘बेल्ट-रोड इनिशिएटिव’ को और आगे बढ़ाना है। पुतिन, यूक्रेन में शांति के सवाल पर एससीओ सदस्य देशों से अपनी रणनीति साझा करेंगे, इतना उन्होंने आश्वासन दिया। ट्रम्प के टैरिफ युद्ध का समवेत मुक़ाबला कैसे करना है, अभी उस पर कोई ठोस कार्यक्रम बनता नहीं दिख रहा है। शिखर सम्मेलन में सदस्य देश, एससीओ के संवाद सहयोगी और पर्यवेक्षकों के अलावा 20 विश्व नेता इंडोनेशिया, मलेशिया, मंगोलिया, मिस्र और तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल थे। लेकिन, इतने जमावड़े के बावजूद टैरिफ से मुक़ाबले के सवाल पर मुट्ठी नहीं खोली गई।

रविवार को चीन-भारत राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ का उल्लेख करते हुए, शी ने मोदी से मुखातिब होकर कहा, कि दोनों एशियाई पड़ोसियों को अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, और सीमा मुद्दे को समग्र चीन-भारत संबंधों को परिभाषित नहीं करने देना चाहिए। एससीओ बैठक में शी और मोदी के बीच मेल मिलाप को देखकर हम कह सकते हैं, कि हिन्द प्रशांत में अब चीन-भारत के बीच टकराव की स्थिति नहीं रहेगी। ट्रंप ने टैरिफ़ वार में भारत जैसे मित्र को हिन्द-प्रशांत में खोया है, यह अमेरिकी रणनीतिकार भी महसूस कर रहे हैं। अमेरिका-ताइवान के संयुक्त हथियार उत्पादन से हिन्द-प्रशांत एक बार फिर से उथल-पुथल वाली स्थिति में होगा। लेकिन, भारत का कन्धा इस्तेमाल के बग़ैर इस इलाक़े में क्या परिदृश्य उपस्थित होता है, वह दिलचस्पी का विषय होगा।

सोमवार को 18 पेज के एससीओ घोषणापत्र में अमेरिका और इज़राइल तक को नहीं बख्शा गया। सदस्य देशों के शासन प्रमुखों द्वारा हस्ताक्षरित घोषणा पत्र में 11 मार्च को ज़फर एक्सप्रेस, 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम आतंकी हमले, और 21 मई, 2025 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित खुजदार में एक स्कूल बस पर आत्मघाती बम विस्फोट की निंदा की गई। इन हमलों में जो लोग मारे गए, उनके परिजनों और घायलों के प्रति सहानुभूति दर्ज़ की गई। सदस्य देशों ने आतंकवाद, अलगाववाद के विरुद्ध लड़ने का संकल्प किया, और यह भी कहा कि जो आतंक को प्रश्रय देते हैं, उन्हें न्याय की चौखट तक ले आया जायेगा। सदस्य देशों ने जून 2025 में ईरान इस्लामी गणराज्य के विरुद्ध इस्राइल और अमेरिका द्वारा किए गए सैन्य हमलों की कड़ी निंदा की। घोषणापत्र में कहा गया कि ईरान के परमाणु ऊर्जा संरचना सहित नागरिक ठिकानों के विरुद्ध ऐसी आक्रामक कार्रवाइयां, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के विपरीत हैं, और ईरान इस्लामी गणराज्य की संप्रभुता का उल्लंघन है।

इस हफ्ते चीन का एक दूसरा शक्ति प्रदर्शन 3 सितम्बर को होना है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति जापान की पराजय की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक सैन्य परेड में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ के साथ दिखाई देंगे। इस परेड में शामिल होने वाले 26 शिखर नेताओं में नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली, मालद्वीव के शासन प्रमुख मोहम्मद मुइज़्ज़ु भी शामिल होंगे। पीएम मोदी इस सूची में कहीं नहीं हैं। इस सूची में सबसे उल्लेखनीय नाम उत्तर कोरिया के किम जोंग उन का है, जिन्होंने कभी किसी बहुपक्षीय राजनयिक कार्यक्रम में भाग नहीं लिया है। बल्कि, जब भी वे यात्रा करते हैं, तो द्विपक्षीय बैठक को प्राथमिकता देते हैं। पेइचिंग के थ्येनआनमन चौक पर किम की उपस्थिति, दुनिया के साथ उनके जुड़ाव में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है, और आगे कई अतिरिक्त बैठकों की संभावना को भी जन्म देती है।

पाकिस्तान, इस बार चीनी सैन्य परेड में अपनी उपस्थिति को अविस्मरणीय उपलब्धि मान रहा है। आप 24 मार्च, 2024 को इस्लामाबाद में 84वें पाकिस्तान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित सैन्य परेड को याद कीजिये। तब पाकिस्तानी सेना के निमंत्रण पर, चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के 36 सैनिकों ने गार्ड ऑफ ऑनर में भाग लिया था। अब यही देखना है, पाकिस्तान के कितने सैनिक पेइचिंग के थ्येनआनमन चौक परेड में भाग लेते हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
Show comments