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कैंसर के खतरे से जुड़ा है शराब का सेवन

अल्कोहल

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हाल ही में अमेरिका के सर्जन जनरल विवेक मूर्ति द्वारा जारी एडवाइजरी में शराब सेवन और कैंसर के बढ़ते जोखिम के बीच सीधा संबंध बताया गया। जहां इसके खतरों के प्रति सजग होना चाहिये वहीं शराब उद्योग लॉबी से सावधान रहना जरूरी है, जो देश में स्वास्थ्य संबंधी नियमों में अड़ंगा लगाने की कोशिश में रहती है। 

दिनेश सी. शर्मा

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नये साल की शुरुआत एक नई स्वास्थ्य-चेतावनी के साथ हुई है। अमेरिका के सर्जन जनरल विवेक मूर्ति ने एक परामर्श प्रपत्र जारी किया है, जिसमें शराब सेवन और कैंसर के बढ़ते जोखिम के बीच सीधा संबंध बताया गया है। अमेरिका में कैंसर का तीसरा सबसे बड़ा रोकथाम योग्य कारण मदिरा पान है। हिदायत में कहा गया है कि चाहे शराब का सेवन किसी भी प्रकार का हो, इससे कम-से-कम सात प्रकार के कैंसर (स्तन, कोलोरेक्टम, ग्रास-नली, यकृत, मुंह, गला और स्वर-यंत्र) का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिका में स्तन कैंसर के 16.4 प्रतिशत मामले शराब सेवन की वजह से हो रहे हैं। परामर्श प्रपत्र में चेतावनी दी गई है कि स्तन, मुंह और गले जैसे कुछ कैंसर के लिए ‘जोखिम प्रतिदिन एक पैग या उससे कम के शराब सेवन से भी पैदा हो सकता है’। यहां तक कि शराब की थोड़ी मात्रा भी लीवर सिरोसिस जैसी विकट बीमारियों में कारक बन सकती है। हालांकि, किसी व्यक्ति में दारू पीने से कैंसर होने का जोखिम कई जैविक, पर्यावरणीय और सामाजिक कारकों पर भी निर्भर करता है। यह सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2023 के उस बयान के बाद आई है जिसमें शराब पीने से जुड़े जोखिम और नुकसान के बारे में बताया गया था। यह निष्कर्ष वैज्ञानिक साक्ष्यों के व्यवस्थित मूल्यांकन पर आधारित है।

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शराब सीधे तौर पर कई बीमारियों के लिए जिम्मेवार है और सड़क दुर्घटनाओं के पीछे दारू पीकर गाड़ी चलाना बहुत हद तक जिम्मेवार है। द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित विश्व स्वास्थ्य संगठन के बयान का निष्कर्ष है : ‘जब बात शराब के सेवन की आए, तो इसकी कोई भी वह मात्रा सुरक्षित नहीं है जिससे स्वास्थ्य प्रभावित न होता हो’। 1980 के दशक में, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने शराब को ‘ग्रुप- 1 कार्सिनोजेन’ के रूप में वर्गीकृत किया था। यह कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों की सबसे अधिक जोखिम वाली श्रेणी है जिसमें तंबाकू, रेडिएशन और एस्बेस्टस शामिल हैं। इथेनॉल शरीर में टूटने के कारण जैविक तंत्र के माध्यम से कैंसर का कारण बनता है। इसलिए, शराब युक्त कोई भी पेय (चाहे वह बीयर हो, वाइन हो या व्हिस्की) स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करता है। अपने बयान में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि शराब की मात्रा बढ़ने के साथ इसका जोखिम काफी हद तक बढ़ता चला जाता है। यह सुबूत इस मिथक को तोड़ता है कि कुछ मादक पेय, विशेष रूप से रेड वाइन, अगर संयम से सेवन किए जाएं तो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। दशकों से, शराब उद्योग ने हृदय रोग विशेषज्ञों को इस विचार को बढ़ावा देने के लिए गठजोड़ बनाया है कि शराब का सीमित मात्रा में सेवन हृदय के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, जबकि इस तरह के दावों का समर्थन करने के लिए कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है। दूसरी ओर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोपीय क्षेत्र के डाटा से पता चलता है कि शराब से होने वाले सभी किस्म के कैंसर में आधों में कारण आमतौर पर कथित ‘हल्का’ अथवा ‘मध्यम’ मदिरा सेवन करने वाले रहे, जैसे कि प्रति सप्ताह एक बोतल शराब या दो बोतल बीयर। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो हृदय रोग या मधुमेह पर हल्की अथवा मध्यम मात्रा में शराब पीने के लाभकारी प्रभावों को प्रदर्शित करता हो या जो इस तरह के सेवन से जुड़े कैंसर के जोखिम को कम करना स्थापित करे। विश्व स्वास्थ संगठन में शराब और अवैध नशीली दवाओं के विशेषज्ञ कैरिना फेरेरा-बोर्गेस का कहना है : ‘केवल एक चीज जो हम निश्चित रूप से कह सकते हैं वह यह कि जितना अधिक आप पीते हैं, उतना ही ज्यादा नुकसान यह करेगी। दूसरे शब्दों में, जितना कम आप पीएंगे, उतना ही आप सुरक्षित हैं’।

जब आम तौर पर उत्पादित और उपभोग किये जाने वाले इस पदार्थ (शराब) के दुष्प्रभावों के बारे में वैज्ञानिक प्रमाण हैं, जिससे सरकारों को पर्याप्त राजस्व भी मिलता है, तो नुकसान को कम करने के लिए क्या कोई विकल्प उपलब्ध हैं? शराब पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का ब्यान उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों को दर्शाता है और सरकारों के लिए उपलब्ध नीतिगत विकल्प भी सुझाता है। लेकिन इस पर अमल तो सरकारों को ही करना है। शराब की खपत को कम करने में सबसे सरल विकल्पों में से एक है शराब की बोतलों पर चेतावनी लेबल के माध्यम से लोगों को संभावित नुकसान के बारे में जागरूक करना। यह उन उपायों में से एक है जो मूर्ति ने अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के लिए सुझाया है, जो इस पर योजना बनाने की सोच रहे हैं। मूर्ति ने कैंसर के जोखिम को ध्यान में रखते हुए शराब के सेवन के लिए दिशा-निर्देश सीमाओं का पुनर्मूल्यांकन करने का भी आह्वान किया है।

विभिन्न देशों द्वारा विचाराधीन चेतावनी लेबल कई प्रकार के हैं - स्वास्थ्य के लिए सामान्य नुकसान, अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के नुकसान और विशिष्ट समूह (कम उम्र वाले, गर्भवती महिलाएं, आदि) आधारित संदेश। उदाहरण के लिए, आयरलैंड 2026 में जो चेतावनी जारी करने की योजना बना रहा है, उसमें कहा जाएगा : ‘शराब पीने से लीवर कैंसर होता है’। 2019 में, भारत ने अधिकांशतः सामान्य चेतावनियां छापना अनिवार्य कर दिया था, जिसमें लिखा रहता है : ‘हार्ड लिकर (शराब) का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ और कम अल्कोहल वाले पेय पदार्थों पर : ‘सुरक्षित रहें, शराब पीकर गाड़ी न चलाएं’। चेतावनी लेबल के अलावा, भारत में शराब के विज्ञापनों पर प्रतिबंध हैं। समाचार पत्र, रेडियो और टेलीविजन में शराब के विज्ञापन पर प्रतिबंध है, हालांकि विज्ञापन नियमों में खामियों का फायदा उठाते हुए कई तरीकों से ‘सरोगेट विज्ञापन’ वाला ढंग जारी है। हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से दबे-छुपे प्रचार का ढंग नई चुनौतियां पेश कर रहा है। तम्बाकू उत्पादों पर लगे चेतावनी लेबल की भांति, शराब उद्योग और इसके समर्थक समूह तर्क देते हैं कि स्वास्थ्य-चेतावनी लेबल लगाकर खपत को कम करने का असर नगण्य है। लेकिन उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं, जैसा कि द लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया समीक्षा में बताया गया है - शराब उत्पादों पर चेतावनी लेबल कई मायनों में उपयोगी हैं। वे शराब से संबंधित नुकसानों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं, उपयोग को कम करने में योगदान दे सकते हैं और लोगों को जागरूक कर निर्णय लेने में मददगार हो सकते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार में बढ़ावा मिलता है। चेतावनी-लेबल की प्रभावशीलता उनके डिजाइन और सामग्री पर निर्भर करती है। वर्तमान में, स्वास्थ्य चेतावनी लेबल का कोई मानकीकरण नहीं है और सामग्री बहुत ही चलताऊ सी है, जो लोगों की संचेतना जगाकर निर्णय लेने में खास मददगार नहीं है। भारत ने लगभग पांच वर्षों से शराब उत्पादों पर चेतावनी लेबल लगाना अनिवार्य किया हुआ है। इसका वास्तविक असर कितना रहा इस बारे में हमें अभी तक जानकारी नहीं है। चेतावनी संदेशों के डिजाइन और सामग्री और उसका असर उपभोक्ता पर कितना है, इस पर निरंतर शोध करते रहने की हमें आवश्यकता है। स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियों के अलावा राजमार्गों पर शराब बिक्री के नियम, कम उम्र के उपभोक्ताओं को शराब की बिक्री पर अंकुश लगाना और शराब पीकर गाड़ी चलाने जैसे अतिरिक्त उपायों को और अधिक सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।

दारू उद्योग लॉबी से सावधान रहना बहुत जरूरी है, जो भारत में स्वास्थ्य संबंधी और अन्य नियमों में अड़ंगा लगाने की लगातार कोशिश में लगी रहती है। शराब के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ को कम करने के लिए हमें मूर्ति जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य चैंपियनों की अधिक आवश्यकता है। सनद रहे, तंबाकू और कैंसर के बीच संबंध पर पहली चेतावनी भी 1964 में सर्जन जनरल ने ही दी थी।

लेखक विज्ञान संबंधी विषय के माहिर हैं।

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