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अलादीन का चिराग और चुनाव की बेला!

तिरछी नज़र
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पूरन सरमा

गरीब को थाली में भोजन परोस कर लाने वाले गिरोह सक्रिय हो गये हैं। अब झुण्ड के झुण्ड नेताओं के गरीबों के घरों पर वोटों के लिए दस्तक दे रहे हैं। विकास की बातें फिर वे ही लोग कर रहे हैं, जिन्होंने गरीब को और अधिक गरीब बनाया था। अपना-अपना वोट बैंक सुनिश्चित करने की चालें और जनता की आंखों में धूल झोंकने का तमाशा शुरू हो गया है। चुनावी आगाज हो गया है। उन्हें केवल दिल्ली चाहिए ताकि वे मुखिया बनकर देश की बागडोर संभालें तथा देश को अपने ढंग से हांक सकें। दिल्ली की गद्दी के लिए घमासान फिर शुरू हुआ है। अगला साल जैसे कल ही आने वाला हो। इतनी जल्दबाजी और ताबड़तोड़ भागा-दौड़ी। पहले नहीं देखा था ऐसा नजारा।

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अब तो सबको दरकिनार करके वे आह्वान करने की मुद्रा में आ गये हैं। उनके आह्वान पर वोट न्योछावर होंगे या नहीं यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन वे देश पर इस समय पूरी तरह फना हैं। वे जनता से कहलवा रहे हैं ‘यस वी कैन, यस वी विल डू’। देशभक्ति उनकी रग-रग में समा गई है। कुछ भी कहो अंदाज उनका अपना मौलिक है। उनकी नीतियां विकास की हैं। बिना विकास के समस्याओं का समाधान संभव नहीं। मैं खुशी से पगला रहा हूं कि रामराज की तस्वीर दिखाने वाले इस बार कहीं इसे साकार ही न कर दें।

यह घड़ी बड़ी अद्भुत है। वोटर की परेशानी यह है कि वह किस ओर जाये। लुभावनी बातें दोनों ओर हैं। मुझे लगता है एक बार फिर निर्दलीयों की पौ बारह होगी। क्योंकि इनके नारों में केवल छलावा है और धोखा है। एक पार्टी का राज मिल जायेगा, कहना कठिन है। वैसे वे एक पार्टी से मुक्त भारत का सपना देख रहे हैं। उनका सपना यही तो है कि केवल उनकी पार्टी सत्ता में हो। सुराज भी तभी आता बताया। वे तालियां बजा रहे हैं, हाथ उठवा रहे हैं और सामने बैठे हजारों-लाखों को बेवकूफ समझने की भूल भी कर रहे हैं।

मन करता है ऐसी कायापलट करने वाली सरकार तो अगले वर्ष की एवज इसी वर्ष बन जाये तो मजा आ जाये। उन्हें वोट के अलावा कुछ नहीं चाहिए। बाकी चीजें तो इसी भरोसे पर वे सब बटोर लेंगे। आंखें चुंधिया रही हैं। विकास का उजाला फैला हुआ दिखाई दे रहा है। दिक्कत एक ही दिखाई दे रही है कि उनकी टांग खींचने वालों को रोक लीजिये, वरना वे लड़खड़ा कर गिर जायेंगे और सरकार नहीं बना पायेंगे रामराज वाली। अलादीन का चिराग लेकर आये हैं ये लोग।

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