हमारे देश में हवाई यात्रा के दौरान विमान में तकनीकी खराबी और इमरजेंसी लैंडिंग की घटनाएं अचानक से बढ़ गयी हैं। हाल ही में गो फर्स्ट की दो फ्लाइट में तकनीकी खराबी देखी गयी है। अप्रैल से जून के बीच तकनीकी खराबी की वजह से आठ बड़े हादसे होने से बचे हैं। इनमें कई विमानों की इमरजेंसी लैंडिंग हुई। किसी फ्लाइट के रूट में बदलाव किया गया तो वहीं कई विमानों के इंजन में अचानक से खराबी देखी गयी, जैसे किसी इंजन में आग लग गयी या कोई अन्य समस्या आ गयी। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और डीजीसीए एयरलाइन्स कंपनियों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं, जिसमें एयरलाइन्स से पिछले एक महीने में हुई तकनीकी खराबी की विस्तृत रिपोर्ट मांगी गयी है। ताकि इसके पीछे मौजूद तकनीकी कारणों को समझा जा सके।
दरअसल, तकनीकी खराबी एक ऐसा शब्द है जिसमें बड़ी से बड़ी लापरवाही को आसानी से छुपाया जा सकता है। लेकिन इस बार डीजीसीए एक्शन मोड में है और इन कंपनियों को एक आदेश जारी किया गया है। अपनी शुरुआती जांच में डीजीसीए ने पाया कि, लैंडिंग और अगली उड़ान भरने (टेक ऑफ) के बीच विमानों की ठीक तरीके से जांच नहीं हो रही है और ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि विमानों की जांच करने वाले तकनीकी कर्मचारियों की एयरलाइन्स के पास कमी है। इसके साथ ही विमान की सर्विस में काम आने वाले स्पेयर पार्ट्स की भी कमी है।
डीजीसीए ने निर्देश दिया है कि सभी जगहों पर तकनीकी कामों में अब केवल सर्टिफाइड इंजीनियर ही तैनात किया जाना चाहिए, क्योंकि बहुत बार पैसा बचाने के लिए जूनियर तकनीशियन को वही काम दे दिया जाता है। डीजीसीए को अपनी जांच के दौरान ये भी पता चला कि एयरलाइन्स में एयर मेंटेनेंस इंजीनियर बहुत बार तकनीकी खराबियों का ठीक से पता ही नहीं लगा पाते, जो कि एक गंभीर बात है, जिससे कभी भी कोई भी विमान हादसा हो सकता है। इसलिए डीजीसीए ने एयरलाइन्स को तकनीकी स्टाफ और स्पेयर पार्ट्स की कमी को दूर करने का आदेश जारी किया है।
इसी साल 6 जुलाई को डीजीसीए ने तकनीकी खराबी के कारण स्पाइसजेट को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस नोटिस में कहा गया है कि स्पाइसजेट सुरक्षित भरोसेमंद हवाई सेवा देने में नाकाम रही है।
डीजीसीए ने शुरुआती जांच में पाया कि स्पाइसजेट ने अपने विमानों की मेंटेनेंस अथवा रखरखाव ठीक से नहीं किया। कई विमानों के स्पेयर पार्ट्स में भी कमी पायी गयी। इस रिपोर्ट के आधार पर समझा जा सकता है, कि ये तकनीकी खराबी से ज्यादा बहुत ही गंभीर लापरवाही का मामला है। इसका सबसे बड़ा कारण विमान कर्मचारियों के वेतन में भारी कटौती तथा बहुत से कर्मचारियों का अपनी कंपनियों से नाराज़ होना है। कोरोना महामारी के दौरान 2020-21 में विमान सेवाएं बंद होने के बाद भारत की एयरलाइन्स कंपनियों को हजारों करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। इसलिए इन कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के वेतन में 40 फ़ीसदी तक की कटौती की थी तथा बहुत से कर्मचारियों को नौकरी से भी निकाल दिया गया था। साथ ही लोगों को बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दिया गया था। विरोध होने पर इस साल जनवरी में कुछ वेतनवृद्धि की गई थी। लेकिन कर्मचारी अब भी इससे नाराज़ हैं। केबिन क्रू और पायलट का वेतन भी कोरोना में घटाया गया था, जिसे अभी तक बहाल नहीं किया गया है। अपनी कंपनी से नाराज़ कर्मचारी पूरी ईमानदारी से आखिर कब तक काम कर सकते हैं। खासतौर पर बात जब हवाई जहाज की उड़ान एवं उसकी सुरक्षा की हो, तब ये मामला और भी अधिक संवेदनशील हो जाता है। 2020-21 में एयर इंडिया एयरलाइन्स को 47 हजार करोड़ रुपये का, इंडिगो को 5829 करोड़ रुपये का, विस्तारा को 1609 करोड़ रुपये का, एयर एशिया को 1396 करोड़ रुपये का, गो एयर को 1333 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2022 में एयरलाइन्स कंपनियों का घाटा और बढ़ जाएगा। अब प्रश्न यह है कि ये सभी एयरलाइन्स कंपनियां इस घाटे की भरपाई कहां से करेंगी। जिसके लिए ये कॉस्ट कटिंग अथवा सेवाओं में कटौती का विकल्प चुनती हैं जिसमें कर्मचारियों की संख्या, उनका वेतन और यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती की जाती है। ऐसा करके एयरलाइन्स कंपनियां पैसे बचाती हैं, और अब इसी क्रम में एयरलाइन्स कंपनियां विमानों में मेंटेनेंस के साथ भी समझौता कर रही हैं, जो कि आम नागरिकों के जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।