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खेल में उम्र और भाग्य का खेला

जोकोविच और सिराज
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अगर जोकोविच को समय और उम्र ने हराया है, तो सिराज पर मौसम की मार पड़ी है, जिसका माध्यम बनी लेदर की एक बॉल और उसका अप्रत्याशित मार्ग, जिसने भारत को मुकाबले से बाहर कर डाला।

हाल के दिनों में खेल मुकाबलों में दो ऐसे दृश्य देखने को मिले जो एक खिलाड़ी का दिल तोड़ने वाले भावावेशों के अलग-अलग रंग दर्शा गए। एक सीन था विंबलडन सेमीफाइनल का और दूसरा लॉर्ड्स टेस्ट मैच के रोमांचक अंतिम क्षणों का।

विंबलडन सेंटर कोर्ट में नोवाक जोकोविच को यह अहसास होते हुए देखना कि खेल में हार प्रतिद्वंद्वी जैक सिनर की युवा ऊर्जा से ज़्यादा उनकी अपनी उम्र और समय की वजह से हुई है, टेनिस प्रशंसकों के लिए एक दुखदायक पल था। जोकोविच, वह शख़्स जिसने दुनिया को लचीलेपन और अजेयता का मतलब सिखाया, पराजय एकदम निश्चित लगने के बावजूद कभी हार न मानने वाला यह खिलाड़ी, उस दिन मैच खत्म होने से काफी पहले एक हारा हुआ जुआरी प्रतीत हो रहा था।

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उनकी फुर्ती सुस्त पड़ती दिखाई दी। वह बंदा जो मानो पाले में उड़ता हो, स्पीड-स्केटिंग करके असंभव लगने वाली गेंदों का भी पीछा करके शॉट लगा देता हो, अब उसे गेंद तक पहुंचने में मुश्किल हो रही थी। असंभव कोणों से लगाए जाने वाले विनर शॉट्स की झड़ी छिटक चुकी थी। समय, जो तमाम जीवित चीज़ों का शाश्वत शत्रु है, ने सचमुच उन्हें शिथिल बना डाला था। उसके व्यथित चेहरे पर उस व्यक्ति का दुःख झलक रहा था जिसने आसन्न मृत्यु देख ली हो और जिससे वापसी संभव नहीं।

उस दिन जोकोविच को एक ऐसे व्यक्ति ने धूल चटाई जो युवा, तरोताज़ा, ऊर्जावान, शक्तिशाली और आत्मविश्वास से लबरेज़ था। सिनर के पैरों की चपलता, उसकी प्रहार शक्ति और प्रतिद्वंद्वी को निगल जाने की भूख, जो किसी प्रतिभाशाली, महत्वाकांक्षी, एकाग्रचित्त और महानता पाने के इच्छुक खिलाड़ी की पहचान होती है- इसको अनदेखा करना असंभव था। उन नाज़ुक क्षणों में जोकोविच ने महसूस किया होगा कि जीवन कितना नाज़ुक हो सकता है और अमरता केवल किस्से-कहानियों में ही हासिल की जा सकती है, भौतिक जगत में नहीं। मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में, वे इस नई वास्तविकता को मानने और स्वीकार करने के मूड में लगे। एक सर्वोच्च धावक जोकोविच, जिन्होंने अपनी फुर्ती से कई बार रोजर फेडरर के जादुई कौशल पर पार पाया था और राफेल नडाल की लड़ाकू प्रवृत्ति को कुंद कर डाला था, अब शरीर को अपने आदेशों के मुताबिक चला नहीं पा रहे थे। अपने लंबे और शानदार टेनिस जीवन में पहली बार, उन्होंने अंत देखा था। मन अभी भी तैयार-बर-तैयार था, लेकिन वह शरीर जिसने 38 सालों तक दुनिया के कई प्रहारों और तीरों का सामना किया हो, उसने भी आखिरकार अपने हाथ खड़े कर दिए।

हालांकि, उन्होंने वापसी का वादा किया, वे उस खेल से कैसे मुंह मोड़ सकते हैं, जिसने उन्हें उतना ही सहारा दिया, जितना खुद उन्होंने इस खेल को, उनको लेकर किसी को भी संदेह नहीं रहा कि वे एक गौरवशाली एवं चमकदार सूर्य की बजाय, अब एक डूबता हुआ सितारा हैं। एक पखवाड़े बाद, विंबलडन के सेंटर कोर्ट से ज़्यादा दूर नहीं, जहां जोकोविच हज़ारों नम आंखों और तालियों की गड़गड़ाहट और प्रशंसा के बीच विदा हुए थे, दो टीमों के बीच एक अति रोमांचक और कांटे का मैच चल रहा था, दोनों में जीतने का फौलादी जज़्बा और बिना लड़े हार न मानने का दृढ़ संकल्प था।

टेनिस के विपरीत, जिसमें मैच का भाग्य और हार-जीत की ज़िम्मेदारी एक ही व्यक्ति के हाथ में होती है, क्रिकेट एक टीम आधारित खेल है जिसमें 22 लोगों का सामूहिक योगदान मैच का भाग्य तय करता है। भले ही यह टीम गेम हो, तथापि, इस खेल में किसी एक खिलाड़ी के प्रदर्शन का जश्न भी उतना ही मनाया जाता है जितना कि व्यक्तिगत खेलों में।

इंग्लैंड और भारत के बीच शृंखला का तीसरा मैच, लॉर्ड्स टेस्ट, जो पूरे पांच दिनों तक संगीत की धुन की तरह कभी बहुत ऊंचे तो कभी बिल्कुल धीमे सुरों की तरह चला, जिसने मैदान पर और इससे बाहर लाखों लोगों का ध्यान खींचा। कांटे के इस तीव्र मुकाबले ने जो अनेकानेक छवियां उत्पन्न कीं, उनमें एक थी जीवट वाले मोहम्मद सिराज के अंतिम बैटिंग क्षण, जब वे कूबड़ निकाल घुटनों के बल बैठे हुए हैं, पीछे विकेट से गिल्ली उड़ी पड़ी है, अटल इच्छाशक्ति का भाग्य के हाथों हार जाने का प्रतीक बना यह दृश्य स्मृति में छपा रहेगा। जोकोविच के विपरीत, हृष्ट-पुष्ट सिराज अपने कौशल के शिखर पर हैं। ऊर्जा से भरपूर और आक्रामक तेवरों से लैस सिराज बल्लेबाजों को क्रीज से उखाड़ने के लिए दौड़ते हुए, कभी हार न मानने वाले खिलाड़ी हैं। विपरीत परिस्थितियों में उनका प्रदर्शन और भी बेहतर हो जाता है।

लॉर्ड्स मैदान में भी उन्होंने भारत के लिए अपनी भूमिका बखूबी निभाई, ज़बरदस्त गेंदबाज़ी और फुर्तीला क्षेत्ररक्षण। जब आखिरी क्रम में बल्लेबाज़ी करने आए, तब भारत को मैच जीतने के लिए 46 रनों की ज़रूरत थी, एक ऐसा लक्ष्य जो उनके लिए असंभव लग रहा था। लगभग एक घंटे से ज़्यादा समय तक, सिराज ने रक्षात्मक बैटिंग कायम रखी, बाउंसर गेंदों से नीचे झुककर या पीठ पीछे की ओर मोड़कर निजात पाई, यहां तक कि कुछेक वार शरीर पर सहे, मानो किसी स्वर्ण कोष की रक्षा कर रहे हों, ताकि साथी बैट्समैन रवींद्र जडेजा को सलामत रखते हुए भारत को जीत के लक्ष्य तक पहुंचाया जा सके।

ठीक उस वक्त जब ऐसा लगने लगा मानो चमत्कार होने ही वाला है, तब शोएब बशीर ने हाथ की हड्डी में चोट के बावजूद एक बेहद ओवर-स्पिनिंग गेंद फेंकी, जिसका सामना सिराज ने एक मंजे हुए बल्लेबाज़ की तरह किया। गेंद ज़मीन पर गिरी, तेजी से घूमते हुए इसने लेकिन अगला सफर जारी रखा और अनजान सिराज की पीठ के पीछे से होकर लेग स्टंप पर इतनी ज़ोर से जा लगी कि उस पर टिकी गिल्ली उड़ गई। जैसे ही इंग्लैंड के खिलाड़ी जश्न मनाते हुए एक-दूसरे की ओर लपके, सिराज घुटनों के बल बैठ गए, उनकी आंखें ज़मीन पर गड़ी थीं, और अविश्वास एवं मायूसी में उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे।

अगर जोकोविच को समय और उम्र ने हराया है, तो सिराज पर मौसम की मार पड़ी है, जिसका माध्यम बनी लेदर की एक बॉल और उसका अप्रत्याशित मार्ग, जिसने भारत को मुकाबले से बाहर कर डाला।

लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं।

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