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शिक्षा-रोजगार से वंचित अफगानी महिलाएं

पुष्परंजन इस समय अफ़ग़ान सिविल सेवा में जो बची-खुची महिलाएं हैं, उनकी मासिक सेलरी का अंदाज़ा लगा सकते हैं आप? केवल पांच हज़ार रुपये। भारतीय मुद्रा में कन्वर्ट कीजिये, तो यह केवल पांच हज़ार 883 रुपये बनेगा। इतने में उस...

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पुष्परंजन

इस समय अफ़ग़ान सिविल सेवा में जो बची-खुची महिलाएं हैं, उनकी मासिक सेलरी का अंदाज़ा लगा सकते हैं आप? केवल पांच हज़ार रुपये। भारतीय मुद्रा में कन्वर्ट कीजिये, तो यह केवल पांच हज़ार 883 रुपये बनेगा। इतने में उस महिला सिविल सेवा कर्मी को अपना घर-परिवार चलाना है। आप काम पर आइये, या घर बैठिये, मिलेगा बस पांच हज़ार। भारत में कामवाली बाई भी इससे कहीं ज्यादा कमा लेती है। अफ़ग़ानिस्तान में औरतों का जो हाल इस्लामिक अमीरात ने किया है, उस पर इसी मंगलवार को चिंताजनक रिपोर्ट आई है।

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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त, 2021 में ‘सदाचार का प्रचार और बुराई की रोकथाम के लिए मंत्रालय’ (एमपीवीपीवी) की स्थापना के बाद से तालिबान ने ‘डर का माहौल’ पैदा किया है। इस रिपोर्ट में ‘मोरल पुलिस’ के तौर-तरीकों पर भी सवाल किया गया है। आप वेस्टर्न हेयर स्टाइल नहीं रख सकते। ‘एमपीवीपीवी’ ने एक रूढ़िवादी ड्रेस कोड भी लागू किया है, जो इस्लामी पोशाक को ‘एक दैवीय दायित्व’ के रूप में संदर्भित करते हैं। तालिबान सरकार ने महिलाओं के लिए पुरुष एस्कॉर्ट अनिवार्य करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा, कि वे ‘उनके सम्मान और शुद्धता की रक्षा के लिए’ हैं।

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संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) की रिपोर्ट 15 अगस्त, 2021 से 31 मार्च, 2024 तक अमीरात में मानवाधिकार की स्थिति और मंत्रालय की कारगुजारियों पर केंद्रित है। तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने मंगलवार देर रात कहा कि यूएनएएमए रिपोर्ट, अफगानिस्तान को पश्चिमी नज़रिये से आंकने की कोशिश कर रही है, जबकि यह एक इस्लामी समाज है। पुरुषों और महिलाओं के साथ शरिया कानून के अनुसार व्यवहार किया जाता है, यहां कोई उत्पीड़न नहीं होता है।’

‘यूएनएएमए’ ने 15 अगस्त, 2021 से 31 मार्च, 2024 के बीच 1033 लोगों का दस्तावेजीकरण किया, जिसमें 828 महिलाएं व 205 पुरुष शामिल थे। इनका ज़ोर-ज़बरदस्ती का दस्तावेजीकरण किया, जहां अमीरात की मोरल पुलिस और एमपीवीपीवी ने निर्देशों के कार्यान्वयन के दौरान बल प्रयोग किया। अफ़सोस, अफ़ग़ानिस्तान का जो अकादमिक क्लास है, वो भय से अमीरात के पक्ष में भी बयान देता है। इनमें काबुल विश्वविद्यालय के व्याख्याता मोहम्मद ऐमल दोस्तयार का बयान उल्लेखनीय है। दोस्तयार कहते हैं ‘दुर्भाग्य से, यूएनएएमए की हालिया रिपोर्ट वास्तविकताओं पर आधारित नहीं हैं; सदाचार मंत्रालय इन निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करता है।’ सदाचार मंत्रालय के डिप्टी मोहम्मद फकीर मोहम्मदी ने कहा, कि हमने तो बल्कि 4,600 महिलाओं को विरासत प्रदान की है। इस्लामिक अमीरात महिलाओं के अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध है।

लेकिन सारे लोग अमीरात के सितम के आगे सिजदा नहीं करते। धार्मिक विद्वान खलील-उर-रहमान सईद ने बयान दिया, ‘दुर्भाग्य से, हमारे देश में महिलाएं अपने बुनियादी और मानवीय अधिकारों से वंचित हैं, जिसमें विरासत, शिक्षा, काम और जीवन साथी चुनने का हक़ भी शामिल है।’ एक अन्य धार्मिक विद्वान हसीबुल्लाह हनफ़ी ने महिलाओं को विरासत, शिक्षा, शादी के अधिकार से इनकार, जबरन विवाह और महिलाओं और लड़कियों को शादी में मुआवजे के रूप में देने की प्रथा के बारे में चिंता व्यक्त की है। तालिबान ने इस समय इतनी गुंजाइश दी है कि जो लड़कियां छठी कक्षा पास करने के बाद स्कूल नहीं जा सकतीं, वो घर बैठे सिलाई-कढ़ाई और कालीन बुनाई, पैकेजिंग करें। उसके लिए कार्यशालाएं खोली गई हैं।

अर्थ मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल रहमान हबीब कहते हैं, ‘अब संबंधित मंत्रालयों ने आर्थिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान की हैं। न केवल काबुल बल्कि देश के विभिन्न प्रांतों में भी, छात्राओं ने सिलाई, पेंटिंग, कालीन बुनाई और कढ़ाई जैसे व्यवसायों को सीखने की ओर रुख किया है, ताकि अपने परिवार को सपोर्ट कर सकें।’

लेकिन, मुल्क की महिलाएं ऐसे हालात को कुबूल करने के पक्ष में नहीं दिखतीं। इसी हफ्ते अदबी लेखिकाओं ने काबुल में एक कविता गोष्ठी आयोजित की, और इस्लामिक अमीरात से छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूलों को फिर से खोलने का आग्रह किया। विभिन्न प्रांतों से राजधानी में एकत्र हुईं इन कवयित्रियों और लेखिकाओं ने कहा कि लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना इस्लामी कानून और मानवाधिकार मानदंडों का उल्लंघन है। एक प्रस्ताव में उन्होंने कहा कि लड़कियों के स्कूलों को बंद करने का कोई धार्मिक औचित्य नहीं है। कार्यक्रम के आयोजकों में से एक, ओगी ने सवाल किया, ‘हमारा पाप क्या यही है कि हम पुरुष नहीं हैं?’

अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों के स्कूल बंद हुए 292 दिन हो गए हैं। अब भी स्पष्ट नहीं है कि वे फिर से कब खुलेंगे, और भविष्य में लड़कियों के लिए क्या होगा। छात्राएं अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर तनाव में रहती हैं। उनके लगभग छह महीने के लिए विश्वविद्यालयों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। उन्होंने इस्लामिक अमीरात से छात्राओं के लिए विश्वविद्यालयों को फिर से खोलने का आह्वान किया। एक छात्रा खुजास्ता पूछती है, ‘परीक्षाएं शुरू हो गई हैं और लड़कों को परीक्षा देने और अपने विश्वविद्यालयों में जाने की अनुमति है, लेकिन लड़कियों को अनुमति नहीं है। क्यों? कारण क्या है?

तालिबान ने विगत दो वर्षों में 80 फतवे जारी किए हैं, इनमें से 54 सीधे तौर पर महिलाओं को निशाना बनाते हैं। वर्ष 2004 में नए संविधान में लैंगिक समानता सुनिश्चित की गई और अफगान महिलाओं के लिए संसद में 27 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं। 2021 तक अफगान महिलाओं ने संसद में 249 में से 69 सीटें हासिल कर ली थीं। ऐसे कानून मौजूद थे, जो महिलाओं को अपने बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र और पहचान पत्र में अपना नाम शामिल करने की अनुमति देते थे। वहां महिला मामलों का मंत्रालय, एक स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को अपराध बनाने वाला कानून था। कानून, राजनीति, पत्रकारिता से लेकर फुटपाथों, पार्कों और स्कूलों तक महिलाओं की मौजूदगी थी।

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने जापान के विशेष प्रतिनिधि कानसुके नागाओका के साथ बैठक में अफगानिस्तान और क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर चर्चा की। करजई ने ट्वीट के ज़रिये आशा व्यक्त की कि लड़कियों के लिए ‘शिक्षा के द्वार’ तुरंत खोले जाएंगे। क़तर, जो इस समय अमीरात का सबसे भरोसेमंद साथी है, वह अफगानिस्तान के सर्वोच्च नेता को महिलाओं को शिक्षा वाले सवाल पर कितना समझा पाता है, इसका इंतज़ार सभी को है। मगर, इस सवाल पर मुस्लिम वर्ल्ड दोहरा रवैया दरपेश कर रहा है। आप भारतीय मुस्लिम समाज को ही देख लीजिये, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को शिक्षा और रोज़गार मिले, इस सवाल पर सन्नाटा पसरा मिलेगा। शायद ही किसी मुस्लिम संगठन, या धर्मगुरु का बयान आप देखेंगे!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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