अशोक कुमार जैन
हरियाणा पिछले कुछ सालों से देश के मुख्य प्रांतों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में लगातार चोटी के राज्यों में रहा है। यह उपलब्धि पाने पर किसी राज्य सरकार के हाथ में अपने लोगों की मूल समस्याओं, जैसे कि पक्के घर, को सुलझाने के लिए पर्याप्त वित्तीय स्रोत आ जाते हैं। तथापि हरियाणा में अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनके पास रहने को उचित आशियाना नहीं है। राज्य प्रशासन की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाके में 1.25 लाख परिवारों को घर दिए जाने की जरूरत है। इसके अलावा 3 लाख से अधिक परिवार मलिन बस्तियों में रह रहे हैं जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 2.5 प्रतिशत बनते हैं। चूंकि बेघरी की समस्या समूचे मुल्क में फैली है, केंद्रीय सरकार ने इस बाबत वर्ष 2022 तक ‘सबके लिए घर’ नामक अग्रणी कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसके तहत दो योजनाएं हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी और ग्रामीण। इस प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय मदद को बढ़ा दिया।
अनेक राज्यों ने आवास देने के लिए भूखंडों की शिनाख्त, जमीन का पट्टा-आवंटन, लाभार्थियों की राजकीय स्रोतों से अतिरिक्त माली मदद, बैंकों से वित्तीय मदद दिलवाने के लिए गठजोड़ करना आदि उपाय किए हैं। यह भी तथ्य है कि आवास क्षेत्र में कोई भी निवेश न केवल बेघरों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि बड़ी तादाद में रोजगार भी पैदा करता है।
हरियाणा का काफी हिस्सा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने की वजह से सूबे का अधिकांश क्षेत्र शहरी प्रदेश में आता है और राज्य ने कालांतर में खुद को एक औद्योगिक राज्य के रूप में भी स्थापित किया है। केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत लगभग 1.80 लाख घरों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा है और इस मद के लिए 2700 करोड़ रुपये देने मंजूर किए। हालांकि, बतौर एक राज्य हरियाणा कुछ कारणों से इस ओर अधिक विकास नहीं कर सका। इनमें पहला कारण, राज्य में आवासीय योजना के लिए मंजूरी देना बहुत जटिल प्रक्रिया है। ऐसी किसी योजना के लिए, निर्माण-पूर्व से पूर्ण होने के बीच विभिन्न स्तरों पर सत्यापन-मजूंरी हेतु 350 से ज्यादा विभागीय हस्ताक्षरों की जरूरत पड़ती है। इसलिए समयबद्ध मंजूरी के लिए, बिना मानवीय दखल वाली एकल-खिड़की व्यवस्था बनाना समय की मांग है। दूसरी वजह, सूबे में आवास योजना के लिए उपलब्ध भूमि की बहुत कमी है, इसलिए घर बनाने के लिए केंद्रीय एवं राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा अतिरिक्त उपलब्ध भूमि की शिनाख्त करवाना फौरी जरूरत है । तीसरा तथ्य, लाल-डोरा भूमि को नियमित करने के लिए नीति में बदलाव करके इस श्रेणी में आती भूमि को औपचारिक रूप से किफायती घर बनाने के लिए उपलब्ध करना। एक अन्य वजह है, सूबे में नए बने आठ शहरी निकायों में घरों की कितनी कमी है, इसको लेकर तुरंत सर्वे न होना।
शहरी आवास योजना के तहत केंद्रीय सरकार प्रति इकाई लगभग 1.50 लाख रुपये का अनुदान देती है, जो एक ठीक-ठाक आवास बनाने के लिए नाकाफी है। ऊपर से ज्यादातर गरीब लोग अपना पक्का घर बनाने के लिए अतिरिक्त धन इकट्ठा करने लायक नहीं हैं। इसलिए राज्यों को सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े बैंकों के साथ निकटवर्ती सहयोग बनाकर आवासीय ऋण नीति बनवानी होगी, खासकर निम्न आय वर्ग के लिए,ताकि सूक्ष्म आवासीय वित्तीय कर्ज उनकी पहुंच में हो सके। इसके अलावा आवास परियोजनाओं को लाइसेंस देने की प्रक्रिया फिलहाल बहुत जटिल है और काफी वक्त खराब होता है, सूबे में आवास निर्माण कंपनियों को आकर्षित करने के लिए इसको सरल बनाना जरूरी है।
आवासीय कालोनियां या परिसर बनाने हेतु बुनियादी तंत्र का विकास कार्य अंतहीन देरी के बाद पूरा होता है। हालांकि, परिसर के बाहरी विकास कार्य करवाने का शुल्क कालोनी निर्माता चुकाता है, फिर भी उनको समयानुसार यह सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं। राज्य में अनेक आवासीय परिसर ऐसे हैं जहां बाहरी विकास कार्य शुल्क चुकाने जाने के 10 साल बीत जाने के बावजूद वहां मूल सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंचाई गयीं। इससे नकारात्मक छवि बनती है। अतएव राज्य सरकार को इस प्रयोजन के लिए यथेष्ट बजट का प्रावधान करने के लिए सोचना चाहिए, कम से कम उन आवासीय परिसरों के लिए जहां निर्माण पूरा हो जाने के बाद लोग रहने लगे हैं। बेहतर है कि भविष्य में राज्य सरकार बुनियादी ढांचे का विकास पहले खुद करने के बाद ही आवासीय परिसरों को लाइसेंस देने की नीति बनाए।
जरूरतमंदों को सुरक्षित आशियाना देने के लिए अन्य महत्वपूर्ण कदम सूबों में उन तमाम खाली पड़े घरों की शिनाख्त करना था, जो किसी सरकारी योजना के अंतर्गत बनाए गए हों। पता चला कि हरियाणा आवास बोर्ड द्वारा बनाए गए लगभग 6000 घर अभी भी खाली पड़े हैं। इसके अलावा सार्वजनिक धन से बनी ऐसी बहुत सी अन्य आवासीय इकाइयां भी हैं जहां कोई नहीं रह रहा। ऐसे घरों को अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स में बदला जा सकता है। यदि ये खाली घर किसी औद्योगिक क्षेत्र के आसपास हों तो वहां काम कर रहे श्रमिकों के लिए उपलब्ध करवाकर, सुरक्षित और किफायती आशियाने दिए जा सकते हैं। केंद्र सरकार सूबों में अपने अंतर्गत आती जमीनों में निजी आवास निर्माण कंपनियों को किफायती किराया आवास परिसर बनाने लिए प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता देने के अलावा फ्लोर एरिया रेशो और फ्लोर स्पेस इंडेक्स में छूट देती है। वहीं आयकर और जीएसटी माफी, योजना के लिए रियायती दर पर कर्ज, योजना स्थल तक नगर निगम द्वारा मूलभूत जरूरतें पानी-सड़क-बिजली-सीवर पहुंचाना आदि छूटें देती है।
प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत केंद्र सरकार ने सामाजिक, आर्थिक एवं जाति जनगणना-2011 के आधार पर लगभग 21000 घर हरियाणा के हिस्से में आवंटित किए हैं। हालांकि, राज्य सरकार ग्रामीण इलाके में और अधिक घरों की मंजूरी के लिए कह रही है, जिनकी संख्या 1.25 लाख हो सकती है। इसलिए या तो राज्य सरकार इस विषय को केंद्र सरकार से और जोरदार तरीके से उठाकर विशेष परियोजनाएं मंजूर करवाए या फिर अपने स्रोतों से धन जुटाए क्योंकि वंचित वर्ग की भलाई राज्य सरकारों की जिम्मेवारी है।
अनेकानेक वर्गों के लिए घर बनाने के काम में कई सरकारी विभाग शामिल होते हैं इसलिए हरियाणा सरकार ने एक अलग प्रतिबद्ध ‘सबके लिए घर विभाग’ बनाया है, जिसका मुख्य ध्यान राज्य की आवासीय जरूरतें पूरा करने पर केंद्रित रखना तय किया गया है। लेकिन यह नया विभाग हरियाणा की आवास समस्या हल करने में विभिन्न राज्य एवं केंद्रीय एजेंसियों के बीच कितना समन्वय बनवा पाएगा यह वक्त बताएगा।
लेखक नीति आयोग के पूर्व सलाहकार हैं। विचार निजी हैं।