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चुनाव प्रधान देश में वादों की बयार

व्यंग्य/उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

कारोबार भारत में कई होते हैं, कुछ का सीजन कुछ महीने का होता है, कुछ का सीजन बारहों महीने का होता है। चुनाव ऐसा कारोबार है, जिसका सीजन बारह महीने का होता है, सातों दिन का होता है। हमेशा चुनाव ही चलता है, जब कुछ नहीं चलता है, तब भी चुनाव ही चलता है।

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दिल्ली में चुनाव चल रहे हैं। दिल्ली से पहले हरियाणा व महाराष्ट्र में चुनाव थे। दरअसल, भारत कृषि प्रधान देश नहीं, चुनाव प्रधान देश है। कृषि भी अलबत्ता चुनाव का ही विषय है। चुनाव ऐसा कारोबार है जिसमें वादों की खाद डालकर वोटों की फसल काटी जाती है। हर पार्टी ऐसा ही करती है। कोई पार्टी 2100 देने का वादा करती है, कोई पार्टी 2500 देने का वादा करती है।

कोई पार्टी दिल्ली का लाल किला हरेक को देने का वादा कर सकती है। कोई पार्टी हरेक को कुतुब मीनार देने का वादा कर सकती है। वादा ही करना हो, तो कुछ भी किया जा सकता है। वादा करके कई पार्टियां कुछ न देतीं, फिर वो बहाने देती हैं कि क्यों न दे रही हैं। भारत की पब्लिक पहले वादे लेती है, फिर बहाने लेती है। यह भी मिल रहे हैं, इतना भी कम नहीं है। कुछ तो मिल रहा है, पब्लिक को।

कुल मिलाकर वादों का कारोबार अद्भुत है, सिर्फ राजनीति में ही न चलता, कंपनियों में भी चलता है। कंपनियां वादे कर देती हैं कि इतना मुनाफा कर देंगे, इतना कारोबार कर देंगे। ये तीर चला देंगे, ये तोप चला देंगे। बाद में पता चलता है कि कारोबारी खुद चल दिया है और इंग्लैंड जाकर बैठा है, विजय माल्या की कसम।

मिल जाता है कइयों को, जो समर्थ होते हैं। अभी खबर आयी कि उत्तर प्रदेश में एक पाकिस्तानी लेडी को नौकरी मिल गयी टीचर की। उत्तर प्रदेश समर्थ राज्य है, सिर्फ भारतीयों को नहीं, पाकिस्तानियों को भी नौकरी दे सकता है। पाकिस्तानी विकट किस्म के ग्लोबल लोग हैं। यूपी में फर्जी तरह से नौकरी ले जाते हैं। पाकिस्तानी अरब देशों में जाकर भीख मांगते हैं, इसे भिखारियों का ग्लोबलाइजेशन कह सकते हैं। भिखारियों और आतंकियों के ग्लोबलाइजेशन में पाकिस्तान का खास रोल है।

ब्रिटेन में पाकिस्तानियों की ख्याति का आधार यह है कि वे वहां स्थानीय बच्चियों को फंसाते हैं। पहले खबरें आयीं कि दक्षिण एशियाई लोग बच्चियों को फंसाते हैं। भारतीयों ने आपत्ति की साफ किया जाये कि दक्षिण एशियाई नहीं, पाकिस्तानी कहा जाये, पाकिस्तानी फंसाते हैं ब्रिटिश बच्चियों को।

भारतीय भी ग्लोबल हैं, कई मामलों में। भारतीय बाबा और कारोबारी भारत से बाहर जाकर नयी कंपनियां बना लेते हैं, एकाध बाबा ने नया देश भी बनाने की बात की। पाकिस्तानी कुछ बड़ा सोचें।

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