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मानवीय स्वास्थ्य और फसलों के लिए चुनौती

कड़ाके की सर्दी
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शीत लहर का सबसे सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवस्था पर पड़ता है। महानगरों में जलवायु, कोहरा और वायु प्रदूषण इसका स्थायी कुप्रभाव है। स्मॉग, ठंडी, स्थिर हवाएं, वायुमंडलीय प्रदूषकों जैसे पीएम 2.5 और पीएम 10 को सतह के पास फंसा लेती हैं।

बीते दो सालों में ठंड के मौसम में पहाड़ों पर बर्फ देर से गिरी और ठंड भी कम हुई, लेकिन इस बार भारतीय मौसम विभाग और अंतर्राष्ट्रीय मौसम एजेंसियों के पूर्वानुमान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि इस वर्ष की सर्दी सामान्य से अधिक ठंडी और लंबी अवधि वाली हो सकती है। यह संभावित ‘शीत लहर’ भारत के जलवायु, कृषि, जंगलों और वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत कर सकती है। नवंबर के तीसरे हफ्ते की शुरुआत में ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और उड़ीसा के कुछ जिलों में ठंड का येलो अलर्ट जारी कर दिया गया है।

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इस वर्ष कड़ाके की ठंड पड़ने की आशंका के पीछे सबसे बड़ा कारण ला नीना मौसमी परिघटना का मजबूत होना है। ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी दोलन चक्र का वह चरण है जब भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह का तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक कम हो जाता है। ला नीना उत्तरी गोलार्ध के वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न को प्रभावित करता है। इसके कारण, साइबेरियाई उच्च दबाव प्रणाली मजबूत होती है और उत्तरी-पश्चिमी ठंडी और शुष्क हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक तेज़ी और तीव्रता से प्रवेश करती हैं। यह प्रवाह शीत लहर की आवृत्ति और अवधि को बढ़ा देता है।

मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2020-21 की सर्दियों में, दिल्ली में दिसंबर में कई दिन 3.4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान दर्ज हुआ था, जो सामान्य से काफी कम था। पश्चिमी विक्षोभ और उच्च हिमालयी बर्फबारी भी इस साल अपनी करामात दिखाएगी। इस वर्ष ला नीना के साथ-साथ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ के भी अधिक सक्रिय रहने की संभावना है। ये विक्षोभ जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी और लगातार बर्फबारी करा सकते हैं। पहाड़ों पर जमा यह विशाल हिम भंडार मैदानी इलाकों में ठंडी हवाओं के लिए एक निरंतर स्रोत का काम करता है।

कड़ाके की ठंड देश की रबी की फसलों, मुख्यतः गेहूं, सरसों और दलहन पर सीधा असर डालती है। लेकिन गेहूं की वानस्पतिक वृद्धि और दाना भरने की प्रक्रिया के लिए 10 डिग्री सेल्सियस से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान आदर्श माना जाता है। लंबी अवधि की ठंड फसल को पर्याप्त चिलिंग आवर प्रदान करती है, जिससे उसकी गुणवत्ता और पैदावार में वृद्धि हो सकती है।

वहीं, पाला पड़ने से नकारात्मक प्रभाव पड़ने का खतरा है। यदि तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाता है तो पौधों की कोशिकाओं में मौजूद पानी जम जाता है, जिससे उनके ऊतक नष्ट हो जाते हैं।

इसके साथ ही पाला-संवेदनशील फसलें जैसे कि आलू, टमाटर, मटर, बैंगन जैसी सब्जियों, पपीता और केला जैसे फलों और सरसों की फूलों वाली अवस्था को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है।

वहीं, मौसम विभाग पाला पड़ने की संभावना पर समय-समय पर चेतावनी जारी करता है। कृषि विभाग किसानों को रात में हल्की सिंचाई, खेत की मेड़ों पर धुआं करना और सल्फर आधारित फफूंदीनाशकों का छिड़काव करने की सलाह देता है।

अत्यधिक ठंड और भारी बर्फबारी जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देती है और वन्यजीवों के जीवन को सीधे प्रभावित करती है। निचले और मध्य हिमालयी क्षेत्रों में, ठंड का अचानक बढ़ना पत्तियों के गिरने की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है। इसे पर्णपाती चक्र कहते हैं। इसके अलावा, ठंड के अत्यधिक होने से जंगली आग का जोखिम बढ़ जाता है। अत्यंत शुष्क और ठंडी हवाएं जंगल के फर्श पर गिरी पत्तियों और झाड़ियों को पूरी तरह से सुखा देती हैं, जिससे शीतकालीन जंगल की आग का खतरा बढ़ जाता है, खासकर मानवीय लापरवाही से।

अधिक ठंड के चलते जंगल के जानवर भी इससे अच्छे-खासे प्रभावित होते हैं। अधिक ऊंचाई पर रहने वाले जानवर जैसे हिम तेंदुआ और हिमालयी भूरा भालू जैसे जानवर बर्फबारी के लिए अनुकूलित होते हैं, लेकिन अत्यधिक और लगातार बर्फबारी उनके शिकार के रास्ते बंद कर देती है, जिससे उन्हें भोजन की तलाश में निचले इलाकों में आने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है। यही नहीं, शीत-निष्क्रियता में जाने वाले सांपों, छिपकलियों और कीड़ों के जीवन चक्र पर गहरा असर पड़ता है, जो बदले में पक्षियों और छोटे शिकारियों की खाद्य शृंखला को बाधित करता है।

शीत लहर का सबसे सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवस्था पर पड़ता है। महानगरों में जलवायु, कोहरा और वायु प्रदूषण इसका स्थायी कुप्रभाव है। स्मॉग, ठंडी, स्थिर हवाएं, वायुमंडलीय प्रदूषकों जैसे पीएम 2.5 और पीएम 10 को सतह के पास फंसा लेती हैं। कम तापमान इस स्थिति को और गंभीर बनाता है। विदित हो कि दिसंबर, 2023 और जनवरी 2024 में, दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक कई दिनों तक ‘गंभीर’ श्रेणी यानी 400 से ज्यादा में बना रहा। इसके अतिरिक्त, अत्यधिक ठंड से हाइपोथर्मिया, हृदय संबंधी दौरे और श्वसन संबंधी बीमारियां भी बढ़ जाती हैं।

कड़ाके की सर्दी बदलते वैश्विक जलवायु पैटर्न का एक मजबूत संकेत है। हमें इन बहुआयामी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक अनुकूलन और शमन रणनीतियों की आवश्यकता है।

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