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दिवाली पूर्व मनन, एक अदद झाड़ू चिंतन

तिरछी नजर

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कालांतर में समझ बढ़ी तब जाना कि जब कोई पति, जबरिया पति-परमेश्वर बनने का ढोंग करता है तब उसका झाड़ू-पूजन ही अचूक उपाय होता है। झाड़ू के प्रयोग से ज़िद्दी भूत भी भाग निकलते हैं।

इधर दिवाली के आगमन की आहट हुई और साफ-सफाई के चक्कर में झाड़ू गले पड़ गई! वह बुद्धि पर जमी गर्द को बुहारने लगी। बीती शादियों का मौसम हमें दुखी कर गया। रानी का ब्याह हो गया। वह ससुराल निकल ली। दरअसल, रानी हमारी आन, बान और शान थी। पड़ोसियों की जलन का कारण थी! उसे हमारे घर से अगाध प्रेम था। हम उसके प्रेम के कायल गए। उसके रहने से पूरा घर जगमग रहता था। वह कपड़े धोने, बर्तन साफ करने और झाड़ू -बुहारने के काम किया करती थी।

रानी के विदा होते ही आपदा हमारे सिर पर टूटी। हाथ में झाड़ू थमा दी गई। हम चिंता से घिर गए कि घरों में इतने कोने क्यों हुआ करते हैं? सफाई के चक्कर में बिला-वजह मकड़ी, कॉक्रोच और छिपकलियों से रू-ब-रू होना पड़ता है। इनसे हाथापाई हो जाती है। जब हम उन पर झाड़ू पटकते हुए हमला बोलते तो पत्नी नाराज़ हो जातीं। झाड़ू टूट जाने की दुहाई देतीं। महंगाई के जमाने में झाड़ू भी तो सस्ती नहीं रही। स्थिति यों बन आई है कि हाथ में पकड़ी झाडू अपने सिर पर मारने के अनिष्ट विचार आते है। हाय रानी! तुम यह सब कैसे लेती थी भला?

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वैसे बचपन से जादुई-झाड़ू की छवि हमारे दिमाग में थी। एक ऐसी झाड़ू जिस पर सवार होकर जादूगरनी बुढ़िया उड़ा करती है। कई बार किताबों से निकलकर यह बुढ़िया रात में डराती थी। सुबह देखता कि झाड़ू तो यथावत‍् कोने में टिकी है। जादूगरनी बुढ़िया का कहीं अता-पता नहीं। जब कुछ बड़ा हुआ तो झाड़ू से पड़ोसी को पिटते देखा। कालांतर में समझ बढ़ी तब जाना कि जब कोई पति, जबरिया पति-परमेश्वर बनने का ढोंग करता है तब उसका झाड़ू-पूजन ही अचूक उपाय होता है। झाड़ू के प्रयोग से ज़िद्दी भूत भी भाग निकलते हैं।

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बहरहाल, मैं ठहरा एक पत्नीव्रता पति। पत्नी को कोई ताना न दे इसलिए बुहारने का कृत्य दरवाजे बंद करके निपटाता हूं। फिर सोचता हूं कि देश की ‘सफ़ाई’ में जुटे कितने ही नेता हाथ में झाड़ू पकड़कर शान से फोटो खिंचवाते और दया के पात्र बनकर वोट बटोरते हैं! राजनीतिक-सम्मान के लालची लोग भ्रष्ट राजनीति को झाड़-बुहारकर चमकाने में भिड़े रहते हैं। खाकसार तो केवल अपने घर को स्वच्छ कर रहा है। इसमें किस बात की शर्म। इसलिए उम्र के इस पड़ाव पर हाथ में झाड़ू आने से सम्मानित-सा महसूस कर रहा हूं।

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