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आया कयासों और अटकलों का दौर

तिरछी नज़र

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सहीराम

सरकार तो चाहे न बदली हो, पर जी, वैसे बहुत कुछ बदल गया बताते हैं। नहीं जी नहीं, हम यह नहीं कह रहे कि अगर ‘जय श्रीराम’ के नारे की जगह ‘जय जगन्नाथ’ के नारे ने ले ली है तो बहुत कुछ बदल गया। पर बदलाव देख रहे लोग तो यहां तक कह रहे हैं जी कि खुद मोदीजी बदल गए। देखो उन्होंने अपने समर्थकों से कह दिया कि वे सोशल मीडिया के अपने अकाउंट्स से ‘मोदी का परिवार’ वाली लाइन हटा दें। उधर भागवतजी भी बड़े बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। उनके उपदेश और नसीहतें शुरू हो गयी हैं। विघ्नसंतोषी इसे ‘बदले-बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं...’ वाली तर्ज में देखने लगे हैं।

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सरकार के मुखिया कह रहे हैं कि मोदी का परिवार वाली लाइन हटाओ और संघ के मुखिया कह रहे कि व्यवहार में मर्यादा लाओ। परिवार का क्या होगा। खैर, जन्नत की हकीकत सबको मालूम है। वैसे बताते हैं कि पिछले दस वर्षों से संघ की भी वही हालत थी, जो विपक्ष की थी। संघ की हालत भी परिवार के उस बुजुर्ग की सी हो गयी थी, जिसकी खटिया किसी कोने खुदरे में डाल दी जाती है। सरकार ने दोनों का ही इकबाल छीन लिया था। लगता है अब दोनों को ही अपना इकबाल वापस मिल गया है। यह कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे दो धुर विरोधियों का दैनिक राशिफल एक जैसा निकल आया हो।

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खैर, अच्छी बात यह है जी कि कयासों और अटकलों का दौर लौट आया है। सरकार बनेगी या नहीं बनेगी से शुरू हुआ यह दौर हफ्ते भर के भीतर-भीतर अब सरकार चलेगी या नहीं चलेगी तक तो पंहुच लिया है। इस हफ्ते भर में इतने कयास लगे कि चौबीस घंटे चलने वाले टीवी चैनलों को भी अफारा आ गया। भाई कैसे हजम करेंगे इतने कयासों और अटकलों को। कोई कह रहा है नीतीशजी ने रेल मांग ली। कोई कह रहा है नायडूजी ने लोकसभा का अध्यक्ष पद मांग लिया। कोई कह रहा है मोदीजी झुकेंगे नहीं। कोई कह रहा है कि नीतीशजी पलटेंगे तो जरूर फिर चाहे मोदीजी के पांव ही क्यों न छू रहे हों। कोई कह रहा है नीतीश के सांसदों ने विद्रोह कर दिया, कोई कह रहा है नायडू के सांसदों ने विद्रोह कर दिया।

तृणमूल वाले कह रहे हैं कि जी तीन सांसद तो हमारे संपर्क में हैं। महाराष्ट्र वाले कभी शिंदे गुट में विद्रोह की खबर दे रहे हैं तो कभी अजीत पवार गुट में विद्रोह की खबर दे रहे हैं। कुल मिलाकर विद्रोह अब शाश्वत भाव है, जो अगले पांच साल तक रहने वाला है, अगर अगले पांच साल तक सरकार रही तो। ऐसे में मीडिया वालों के पास भी खबरों की कोई कमी नहीं रहेगी। पिछले दस साल से वे भी तो कुपोषण का ही शिकार थे।

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