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बिन बिजली-गरज के फटने का दौर

तिरछी नज़र
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बारिश वही है मगर एकदम चुप्पे टाइप की। शोर-शराबा नहीं हो रहा। न तो बिजली चमक रही है और न बादल गरज रहे हैं। अचानक बम जैसे बादल फट रहे हैं। उन बादलों की गर्जना स्थानापन्न संसद और विधानसभा के गलियारों में सुनाई दे रही है।

दिवाली तो अभी दूर है। मगर अभी से बम की चर्चा होने लगी है। दीगर दूसरे पटाखे जैसे फुलझड़ी, चिड़िया, चखरी, अनार वगैरा पर कोई चर्चा नहीं करता। वैसे ही जैसे इकन्नी, दुअन्नी, चवन्नी और अठन्नी वगैरा पर। बाजार में तो ड्रोन और मिसाइल की बल्ले-बल्ले है। ड्रोन का कद तो इतना बढ़ गया है कि मिसाइल पीछे छूट गयी। कभी सोचा करते थे कि ड्रोन हमारे घर के आंगन में दस्तक देगा। धनिया, मिर्च, चड्डी, बनियान और लंगोट वगैरहा लेकर आएगा। पर अब ये बातें सपने जैसी हैं।

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ड्रोन अब छोटा-मोटा काम नहीं करता। ड्रोन वाला काम तो स्वीगी वाले कर रहे हैं। बेचारे लथड़-पथड़ बचते-बचाते चले आते हैं मिनटों में। नौकरी के आगे जान क्या चीज है? हथेली पर लेकर चलते हैं। फिलहाल मुम्बई और दिल्ली धुएं से बचे हैं तो पानी की मार पड़ रही है। और सड़कों पर किसे पता कि कहां गड्ढा है और कहां-कहां मैनहोल हैं? ऐसी बारिश तो पहले कभी होती थी।

बारिश वही है मगर एकदम चुप्पे टाइप की। शोर-शराबा नहीं हो रहा। न तो बिजली चमक रही है और न बादल गरज रहे हैं। अचानक बम जैसे बादल फट रहे हैं। उन बादलों की गर्जना स्थानापन्न संसद और विधानसभा के गलियारों में सुनाई दे रही है। इसलिए शर्म के मारे उन्होंने गरजना बंद कर दिया है। मेढकों की बात न की जाए तो अच्छा है। वरना तो बारिश का आगाज वही करते थे।

खैर, बेमौसम बम-पटाखों की बात चल रही है। बारिश में तो पटाखों के भी मुंह बंद रहते हैं। देव उठते ही वे भी बोलने लगते हैं। आजकल बेमौसम मौसमी राग बजने लगता है। और वह भी दरबारे हाल में। इसे ही लोग राग दरबारी मानते हैं।

पटाखों का बाजार बंद है। पर भैयाजी बम फोड़ने की धमकी दे रहे हैं। शायद बम स्टोर करके रखे हैं। जेब में भी न आते। बम कहो या बम बम। अगर बम बम कहा तो फिर कंधे पर कांवड़ रखकर चलना पड़ेगा। कोई गल नहीं। इस जमाने में तो कांवड़ की ही जय हो रही है। पहले पता ही न चलता था। मगर अब हर कोई कांवड़ उठाने को लालायित हो रहा है। पर हमें नहीं लगता कि भैयाजी इतनी वजनदार कांवड़ उठा पाएंगे?

जनेऊ और माला का वजन तो सहा नहीं जाता, कांवड़ कैसे उठेगी? फिलहाल बम सुनते ही लोग हड़बड़ाए हुए हैं। बम कहां है? कैसा है? सोच रहे हैं कि आवाज करेगा या नहीं? कारण कि बारिश में बम का मसाला सीड़ जाता है और माचिस की तीली भी भीग जाती है। हो सकता है कि इम्पोर्टेड (अमेरिकन) माचिस और बम हों। खुदा-ना-खास्ता बत्ती सुलग भी गयी तो क्या गारंटी है कि बम फटेगा?

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