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जनांदोलन से ही परमाणु हथियार मुक्त विश्व संभव

परमाणु हथियार अब साइबर व उपग्रह प्रणालियों पर निर्भर हैं। एक परमाणु-साइबर-स्पेस में यदि किसी भी बिंदु पर बनी रुकावट परमाणु हथियारों के आकस्मिक उपयोग या फिर मिथ्या चेतावनी समय से पहले जवाबी कार्रवाई का कारण बन सकती है। कृत्रिम...
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परमाणु हथियार अब साइबर व उपग्रह प्रणालियों पर निर्भर हैं। एक परमाणु-साइबर-स्पेस में यदि किसी भी बिंदु पर बनी रुकावट परमाणु हथियारों के आकस्मिक उपयोग या फिर मिथ्या चेतावनी समय से पहले जवाबी कार्रवाई का कारण बन सकती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग व निर्णय-प्रक्रिया में कम हो रहा मानवीय दखल, परमाणु खतरे को कहीं अधिक बढ़ा देगा।

बीते दिनों जापान के दो शहर, हिरोशिमा और नागासाकी पर, क्रमशः 6 और 9 अगस्त, 1945 को हुए परमाणु बम हमले की 80वीं बरसी मनाई गई। इन बम विस्फोटों से जितनी भीषण मानवीय हानि हुई, वह हमलावरों द्वारा बमों को दिए गए मासूम नाम - लिटिल बॉय और फैट मैन - की क्रूर विडंबना से ही कम हो गयी थी। जिस विमान से बम गिराया गया था, उसके पायलट के लिए मानो ‘यमराज के वाहन’ को चलाना उसके जीवन का एक गौरवशाली क्षण था, तभी तो उसका नामकरण अपनी मां एनोला गे के नाम पर कर रखा था। जो दुष्टता की चरम सीमा थी।

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जैसे-जैसे साल बीतते गए, उन भयावह घटनाओं की यादें- वे पिघलते मानव शरीर और वाष्पीकृत हुए बदन, धमाके के चलते घड़ी की थम गई सुइयां, और मशरूम रूपी बादल का भयानक आतंक जो सर्वनाश का प्रतीक बन गया -वक्त के साथ धुंधली होती गईं। ऐसा होना नहीं चाहिए था। इतने विशाल स्तर और तीव्रता वाले सर्वनाश का खतरा एक व्यापक आत्मसंतुष्टि के तले दबता जा रहा है। युवा पीढ़ियां इस दुखद इतिहास से बहुत कम परिचित हैं, हालांकि यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें ही काम करना होगा कि यह प्रलयंकारी घटना फिर कभी न घटने पाए।

यह सत्य है कि हिरोशिमा और नागासाकी के बाद से ही परमाणु हथियारों के इस्तेमाल करने को संयम बना रहा। परंतु इन परमाणु धमाकों के बाद की गई अनेकानेक आशावादी भविष्यवाणियों के विपरीत, परमाणु हथियार संपन्न देशों की संख्या मूल पांच (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन) से बढ़कर आज 9 हो गई है (इस्राइल, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के जुड़ने से)। यह भी तथ्य है कि परमाणु हथियारों का वैश्विक भंडार मुख्यतः अमेरिका और रूस के शस्त्रागारों में है, जिनकी गिनती शीत युद्ध के दौरान रही अधिकतम 40,000 से घटकर आज लगभग 14,000 रह गई है, आज भी अमेरिका और रूस के भंडार सबसे बड़े हैं। यह आशा की किरण कही जा सकती है, लेकिन जब तक परमाणु हथियार मौजूद रहेंगे, परमाणु सर्वनाश का खतरा मंडराता रहेगा।

चिंता की बात यह है कि परमाणु हथियार-मुक्त विश्व के आह्वान में नागरिक समाज की लामबंदी और सक्रियता का अभाव है। साल 1980 के दशक में, जब लेखक जिनेवा स्थित निरस्त्रीकरण समिति में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था, तब यूरोप में परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर सबसे मुखर अभियान चला हुआ था। यहां तक कि महाबोधि सोसायटी अपने प्रमुख, फुजी गुरु के नेतृत्व में, परिषद कक्ष के बाहर खड़ी होकर शांति-मंत्र जपती रही, जो कि केवल एक जापानी कार्यकर्ता ही कर सकता था, दुनिया को यह याद दिलाने के लिए कि हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु हथियार-मुक्त विश्व प्राप्ति में एक आवश्यक कारण बने रहें।

बाद में, सदी के अंत में, मैं ‘ग्लोबल ज़ीरो’ नामक आंदोलन का हिस्सा था, जिसने परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया के लिए जुनून और दृढ़ता के साथ अभियान चलाया। इसका नेतृत्व ब्रूस जी ब्लेयर ने किया था, जो कभी अमेरिकी परमाणु कमान और नियंत्रण केंद्र का हिस्सा रहे थे और परमाणु शांति की नाजुकता को अच्छी तरह समझते थे। ब्लेयर का 2020 में निधन हो गया और इस आंदोलन ने अपनी गति और ऊर्जा खो दी। मेरा मानना है कि वैश्विक स्तर पर नागरिक समाज आंदोलन के बगैर, परमाणु हथियार-मुक्त विश्व की कल्पना महज मरीचिका ही रहेगी। वैश्विक परमाणु नियंत्रण व्यवस्था की स्थिरता पर संदेह करने के कई कारण हैं। पूर्व-निवारण परमाणु सिद्धांत, जिनको लेकर दावा किया जाता है कि उनकी वजह से पिछले 80 वर्षों में परमाणु शांति कायम रही है, उसका प्रभाव सदा से संदिग्ध रहा है और आज तो और भी अधिक संदेहास्पद है। पूर्व-निवारण परमाणु पहल के अधिकांश सिद्धांत तत्कालीन सोवियत संघ नीत पूर्वी जगत और अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्रांस की अगुवाई वाली पश्चिमी दुनिया के बीच अनिवार्य रूप से द्वि-आधारीय (बाइनरी) समीकरण से विकसित हुए थे।

अवधारणाएं जैसे कि पारस्परिक विनाश की मंशा (परमाणु अस्त्रों से एक-दूसरे का सर्वनाश करने की क्षमता, चाहे पहल किसी भी पक्ष ने की हो) और क्रमिक प्रतिक्रिया में बढ़ोतरी (या फिर यह धारणा कि सीमित क्षमता के परमाणु बमों के उपयोग से बेरोकटोक परस्पर बमबारी के फैलाव को रोकना संभव हो सकता है)। ऐसी सोच वास्तविकता का प्रतिबिम्ब होने की बजाय दिमागी खेल ज्यादा है। यदि पूर्व-निवारण परमाणु पहल, द्वि-आधारीय संदर्भ में भी, इतनी जटिल साबित हो चुकी है, तब परमाणु हथियार संपन्न अनेक देशों वाले परिदृश्य में यह कैसे कारगर हो सकती है?

क्या भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु द्वंद्व द्विराष्ट्रीय ही रहेगा या इसमें चीन भी भूमिका निभाएगा? तब क्या भारतीय उपमहाद्वीप के परमाणु युद्ध में चीन की आमद होने पर रूस और अमेरिका भी इसमें कूद पड़ेंगे? परमाणु शक्तियों की बहुतायत और उनकी प्रतिक्रियाओं की भविष्यवाणी असंभव होने से, परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच संबंधों का प्रबंधन कहीं अधिक जटिल और अप्रत्याशित बनने का खतरा बन गया है। सभी परमाणु-हथियार संपन्न देशों की भागीदारी वाली बहुपक्षीय वार्ताओं से ही परमाणु युद्ध के खतरे का समाधान संभव है।

शुरुआत परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच एक बहुपक्षीय समझौते से की जा सकती है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने में वे कभी भी पहल न करेंगे और आदर्श रूप से तो, वे उनका इस्तेमाल ही न करने या उपयोग करने की धमकी न देने का प्रण करें। इस किस्म का समझौता इन दिनों जारी लड़ाई में रूस को यूक्रेन के खिलाफ सीमित क्षमता के परमाणु हथियार के इस्तेमाल की बात करने से रोक सकता।

परमाणु युद्ध का खतरे बढ़ाने में तकनीक भी एक भूमिका निभा रही है। एक अपरिष्कृत किंतु अत्यधिक विनाशकारी अस्त्र बना सकने की तकनीक अब आसानी से उपलब्ध है। पूर्व-निवारण चोट दुश्मन राष्ट्र के खिलाफ तो कारगर हो सकती है, लेकिन गैर-राज्यीय ताकतों से निबटने में अप्रासंगिक हो जाती है। यह कल्पना की जा सकती है कि कोई आतंकवादी या जिहादी समूह किसी खतरनाक हथियार या अस्त्र को हथियाकर, उसे किसी दूसरे देश के क्षेत्र से, उसकी जानकारी और मिलीभगत के बिना भी, अपने लक्षित देश पर दाग दे। तब क्या उस देश के विरुद्ध परमाणु हथियारों से की जाने वाली जवाबी कार्रवाई न्यायोचित होगी जिसकी भूमि का इस्तेमाल अस्त्र दागने में किया गया? यह कल्पना भी की जा सकती है कि परमाणु अस्त्र लक्षित देश के अपने क्षेत्र के भीतर से दाग दिया जाए। तब इस मामले में जवाबी परमाणु कार्रवाई का क्या अर्थ होगा?

परमाणु हथियार अब साइबर प्रणालियों के साथ भी जुड़ गए हैं और निशाना साधने के लिए उपग्रह प्रणालियों पर निर्भर हैं। पहले से ही एक परमाणु-साइबर-स्पेस अबाध क्रम प्रणाली मौजूद है और इस अबाध क्रम में किसी भी बिंदु पर बनी रुकावट परमाणु हथियारों के आकस्मिक उपयोग किए जाने या फिर मिथ्या चेतावनी समय से पहले जवाबी कार्रवाई शुरू करने का कारण बन सकती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग और निर्णय-प्रक्रिया में कम हो रहा मानवीय दखल, परमाणु खतरे को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ा देगा। हम एक ऐसे भविष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं जिसमें हमारे अपने विनाश के बीज छिपे हैं।

पवित्र स्मारकों पर श्रद्धासुमन से कहीं ज़्यादा विचार करने लायक है हिरोशिमा और नागासाकी की भयावहता- एक ऐसी चेतावनी जिस पर ध्यान देना आवश्यक है।

लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं।

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