आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता की नई राह
निस्संदेह जीएसटी कटौती आम आदमी के लिए राहत और देश की आर्थिक रफ्तार की दिशा में परिवर्तनकारी सुधार है। अब विकसित भारत के लक्ष्य को लेकर ऊंची विकास दर के मद्देनजर अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए आगे बढ़ना जरूरी है।
हाल ही में जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में देश में 22 सितंबर से लागू होने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के नए ढांचे और नई दरों का ऐलान किया गया है। नि:संदेह जीएसटी में कटौती आम आदमी के लिए राहत और देश की आर्थिक रफ्तार की दिशा में परिवर्तनकारी सुधार है। जीएसटी के बाद अब विकसित भारत के लक्ष्य के लिए ऊंची विकास दर के मद्देनजर अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए आगे बढ़ना जरूरी है। जिनमेंे जीवन में आसानी, कारोबारी सुगमता, बुनियादी ढांचा सुधार, सशक्त प्रशासन और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के सुधार शामिल हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगली पीढ़ी के सुधारों की कार्ययोजना की समीक्षा के बाद एक टास्क फोर्स बनाने की घोषणा की है। वहीं 14 सितंबर को वित्त मंत्री ने कहा कि नई पीढ़ी के सुधारों के तहत बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने वाला बीमा संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। बता दें कि जीएसटी परिषद द्वारा साल 2017 से देशभर में लागू जीएसटी में सरलता व नए जीएसटी ढांचे के रोडमैप के तहत मौजूदा स्लैब घटाकर 5 फीसदी और 18 फीसदी स्लैब वाले दो-स्तरीय जीएसटी को मंजूरी दी गई है।
निश्चित रूप से जीएसटी सुधारों से घरेलू खपत के साथ स्वदेशी के रास्ते आत्म निर्भरता बढ़ेगी। ये सुधार देश की विकास यात्रा में संरचनात्मक बदलाव का संकेत हैं। परिवारों और एमएसएमई पर कर भार घटने से उनकी क्रय शक्ति व उपभोग मांग बढ़ेगी, जिससे जीडीपी पर खासा प्रभाव पड़ेगा।
जीएसटी दरों में किए सुधारों का असर त्योहारों की खरीदारी पर दिखाई देने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। हाल ही में लोकल सर्किल्स प्लेटफॉर्म के देश के 319 शहरों में 44 हजार लोगों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक, लोग ऑनलाइन खरीदारी को तरजीह देंगे और इसमें 115 प्रतिशत का रिकॉर्ड उछाल आ सकता है। इस साल 37 प्रतिशत लोग त्योहारों में 20 हजार रुपये से ज्यादा खर्च कर सकते हैं। पिछले साल ये आंकड़ा 26 प्रतिशत ही था। जीएसटी सुधारों से बने माहौल की वजह से इस साल लोग खरीदारी पर 2.19 लाख करोड़ रुपये खर्च सकते हैं। पिछले त्योहारी सीजन के 1.85 लाख करोड़ के मुकाबले इस साल 18 प्रतिशत अधिक खरीदारी का अनुमान है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के आंकड़ों के अनुसार, देश के बाजारों में लोगों की भीड़ उमड़ेगी और घरेलू खपत चरम पर होगी। वर्ष 2023 में धनतेरस और दिवाली पर भारतीयों ने 3.75 लाख करोड़ रुपये और 2024 में 4.25 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की थी। इस बार जीएसटी कटौती से त्योहारी सीजन के तहत नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस और दिवाली पर कुल खर्च 5.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। ऐसी नई मांग बढ़ने के साथ ही जीएसटी सुधार से देश में तेजी से आत्मनिर्भरता की नीति और वोकल फॉर लोकल के मंत्र आगे बढ़ेंगे। इससे स्थानीय और घरेलू बाजार मजबूत होंगे।
जीएसटी सुधार के तहत कुछ और बातों पर ध्यान दिया जाना होगा। पेट्रोल, डीजल को भी जीएसटी व्यवस्था में शामिल करने की तैयारी करनी होगी। जब पेट्रोल-डीज़ल जीएसटी प्रणाली में ले लिये जाएंगे, तो इनके उपभोक्ताओं को तो लाभ होगा ही, साथ ही इनका उपयोग करने वाली प्रत्येक कंपनी को भी फायदा होगा। वे इन उत्पादों पर दिए गए कर को अपने अंतिम कर भुगतान के विरुद्ध समायोजित कर लाभ ले सकेंगी। अब जीएसटी कर मूल्यांकन प्रणाली को व्यवस्थित करना भी आवश्यक है। जिस प्रकार इनकम टैक्स मूल्यांकन प्रणाली ऑनलाइन हो चुकी है और इसमें आम तौर पर मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती, वैसा ही अब जीएसटी प्रणाली को पूरी तरह ऑनलाइन और फेसलेस बनाने के लिए आगे बढ़ा जाना होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि लोगों के जीवन को आसान बनाने व आर्थिक मजबूती के लिए दो स्लैब वाले जीएसटी ढांचे और एक अप्रैल, 2026 से लागू होने वाली इनकम टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने के बाद अब सरकार को आगामी पीढ़ी के सुधार एजेंडा पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। कृषि, बैंकिंग, श्रम, डिजिटलीकरण और वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की डगर पर आगे बढ़ना है। डिजिटलीकरण से वित्तीय समावेशन में मदद बढ़ानी होगी। घरेलू बाजार को और मजबूत बनाने के मद्देनजर लॉजिस्टिक लागत घटाने के लिए नई लॉजिस्टिक नीति के अनुरूप तेजी लानी होगी।
इनके साथ-साथ विनिवेश पर नए सिरे से जोर देने की आवश्यकता है। कोविड-19 के दौरान एक नई रणनीतिक विनिवेश नीति की घोषणा की गयी थी जिसके मुताबिक सरकार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसई) में अपनी मौजूदगी न्यूनतम करेगी। इस बारे में कुछ रणनीतिक क्षेत्रों की ओर ध्यान देना है। इनमें बीमा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज आदि प्रमुख हैं। साथ ही गैर-रणनीतिक क्षेत्रों के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण या बंद किए जाने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।
इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि विनिवेश से प्राप्त राशि का एक हिस्सा सार्वजनिक ऋण अदायगी में भी उपयोग किया जा सकता है। ऐसे में सरकार पर ब्याज भुगतान का बोझ कम होगा और राजकोषीय गुंजाइश बढ़ेगी। जाहिर, ऐसी स्थिति सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होगी।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।