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एआई के साथ इंसानी हकों को नयी दिशा

विश्व मानवाधिकार दिवस
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एआई तकनीक जीवन के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला रही है। वहीं मानवाधिकारों की भी नई परिभाषा गढ़ रही है। यदि एआई को नैतिकता, पारदर्शिता और संवेदनाओं के साथ विकसित किया जाए तो यह मानवाधिकारों के इतिहास का स्वर्णकाल सिद्ध हो सकता है।

दस दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने ‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ को अपनाया, जो यह सिद्धांत प्रस्तुत करती है कि मनुष्य केवल शारीरिक प्राणी नहीं, बल्कि विवेक, गरिमा, स्वतंत्रता और समानता से युक्त चेतन अस्तित्व है। इस घोषणा ने मानवता को उसके बुनियादी अधिकारों का अहसास दिलाया और साथ ही यह विश्वास जगाया कि मानव गरिमा सर्वोपरि है। इसने वैश्विक व्यवस्था को नैतिक दिशा दी और सभ्यता को मानवीय आधार प्रदान किया।

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आज दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के द्वार पर खड़ी है। यदि औद्योगिक क्रांति ने काम, उत्पादन और शक्ति-संतुलन को बदला था तो एआई उस परिवर्तन से भी आगे बढ़कर मानव मस्तिष्क के साथ मशीन की क्षमता का संगम प्रस्तुत कर रही है। यह युग केवल स्वचालन या कंप्यूटेशन का दौर नहीं है, यह मानव सभ्यता के लिए अपनी नियति के पुनर्लेखन का अवसर है। तकनीक अब केवल उपकरण नहीं रही, वह विचार, निर्णय, ज्ञान और शासन के केंद्र में प्रवेश कर चुकी है।

मानवाधिकारों के संदर्भ में एआई के आगमन ने एक महत्वपूर्ण विमर्श को जन्म दिया है। अब मानवाधिकारों की रक्षा केवल न्यायालयों, घोषणाओं, आंदोलनों और संविधानों की जिम्मेदारी नहीं रह गई, बल्कि यह डिजिटल व्यवहार, एल्गोरिद्मिक निर्णय और डेटा-चालित नीतियों की वास्तविक परीक्षा बन चुकी है। आश्चर्यजनक किंतु प्रेरक तथ्य यह है कि यदि एआई को नैतिकता, पारदर्शिता और मानवीय संवेदनाओं के साथ विकसित किया जाए तो यह मानवाधिकारों के इतिहास का स्वर्णकाल सिद्ध हो सकता है। न्याय व्यवस्था में इसका उपयोग केवल तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि मानव गरिमा की सुरक्षा का नया आयाम है।

स्वास्थ्य जगत में एआई का योगदान मानवाधिकारों की प्रकृति को बदलने की क्षमता रखता है। दूरस्थ क्षेत्रों में चिकित्सा सहायता, रोगों की शीघ्र पहचान, व्यक्तिगत उपचार पद्धति और आपात स्थितियों में तेज निर्णय, ये सब केवल तकनीकी उपलब्धियां नहीं, बल्कि जीवन के अधिकार की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति हैं। जब मशीनें रोग के पैटर्न पहचानकर डॉक्टरों को निर्णय लेने में सहायता करती हैं, तब मानव जीवन अधिक सुरक्षित, अधिक संरक्षित और अधिक सम्माननीय बनता है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी एआई मानवाधिकारों की नई परिभाषा गढ़ रही है। शिक्षा अब एक-सा मॉडल नहीं रही, वह व्यक्तिगत बन रही है। प्रत्येक विद्यार्थी की क्षमता, रुचि और सीखने की गति के अनुसार ज्ञान-संरचना बन रही है। यह समानता का वह रूप है, जिसकी कल्पना समाज सुधारकों ने सदियों पहले की थी—ऐसी शिक्षा, जिसमें कोई पीछे न रह जाए।

मनुष्य अब केवल सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान तक सीमित नहीं है, उसकी एक डिजिटल पहचान भी है। यह पहचान, यह डेटा अब उसकी प्रतिष्ठा, निजता और स्वतंत्रता का हिस्सा है। इसे सुरक्षित रखना, इसका दुरुपयोग रोकना और डेटा पर नियंत्रण का अधिकार देना अब आधुनिक मानवाधिकारों का अनिवार्य तत्व है। यदि डिजिटल गरिमा सुरक्षित नहीं, तो संपूर्ण मानवीय गरिमा अधूरी है। एआई की शक्ति का दूसरा आयाम इसकी सीखने और निर्णय लेने की क्षमता है, परंतु निर्णय वहीं तक उचित हैं, जहां तक वे मानवीय मूल्यों से नियंत्रित रहें। इसलिए विश्वभर में ‘नैतिक एआई’ की अवधारणा उभर रही है।

यह परिवर्तन इसलिए महत्वपूर्ण है कि तकनीक अब केवल कार्य-निष्पादन नहीं करती, वह निर्णय निर्मित करती है और निर्णय वे धुरी हैं, जिन पर मानवाधिकार टिका होता है। ‘ह्यूमन इन द लूप’ सिद्धांत इसी सच्चाई का प्रतिफल है, जहां अंतिम निर्णय मनुष्य लेगा, मशीन नहीं, क्योंकि बुद्धि मशीन में हो सकती है, पर विवेक केवल मनुष्य में है।

आर्थिक अवसरों की दृष्टि से भी एआई ने मानवीय अधिकारों का आयाम विस्तृत किया है। यह सत्य है कि तकनीक कुछ पारंपरिक रोजगारों को अप्रासंगिक बना रही है, पर यह आधा सत्य है। एआई नए कौशल, नए रोजगार, नए व्यवसाय और नए बाजारों को भी जन्म दे रही है। मनुष्य अब ऐसे कार्य कर पा रहा है, जो रचनात्मकता, कल्पनाशीलता और नवाचार पर आधारित हैं—ऐसे कार्य, जिनमें मशीनें कभी पूर्ण प्रतिस्थापन नहीं कर पाएंगी। कौशल-विकास अब केवल आर्थिक विकल्प नहीं, बल्कि मानवाधिकार की तरह आवश्यक हो गया है। जब व्यक्ति तकनीक के साथ कदम मिलाकर चल सकेगा, तभी उसकी स्वतंत्रता सार्थक होगी। यह स्वतंत्रता ही तो मानवाधिकारों का मूल है।

यही स्थिति शासन के क्षेत्र में भी दिखाई देती है। सरकारें अब नागरिकों की जरूरतें समझने, पूर्वानुमान करने व त्वरित समाधान देने में सक्षम हो रही हैं। एआई आधारित नीतियां, कल्याणकारी योजनाएं व पारदर्शी प्रशासन नागरिकों को न केवल सेवाएं दे रहे, बल्कि अधिकारों की सार्थकता भी यकीनी बना रहे हैं।

बहरहाल, विश्व मानवाधिकार दिवस अब भविष्य की दिशा चुनने का अवसर है। यह युग मानव और मशीन की ऐसी साझेदारी का है, जिसका ध्येय शक्ति नहीं, संवेदना; प्रगति नहीं, सहअस्तित्व; और प्रभुत्व नहीं, गरिमा है। यदि एआई को मानवीय मूल्यों के अनुरूप विकसित किया गया, एल्गोरिद्म गरिमा के अधीन रहे, डेटा निजता का सम्मान करे और यदि नवाचार मानव को बड़े उद्देश्य की ओर ले जाए, तो आने वाली पीढ़ियां संभवतः इसी युग को मानवाधिकारों का स्वर्णकाल कहेंगी।

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