पुष्परंजन
अवसर चीनी नववर्ष का था, और शी चिनफिंग की ओर से आशा व्यक्त की जा रही थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति फोन करेंगे। गुरुवार को ऐसा ही हुआ। बातचीत लंबी हुई, मगर उसका सारांश व्हाइट हाउस ने नपे-तुले अंदाज़ में जारी किया, शी की ओर से उसे थोड़ा बढ़ाकर पेश किया गया। गुरुवार का दिन चीनी कूटनीति के वास्ते सौहार्द बिखेरने जैसा ही था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति से उभयपक्षीय संबंधों को दुरुस्त करने को लेकर बातचीत हुई, और इधर पूर्वी लद्दाख सीमा के पेंगोंग त्सो से चीनी सैनिकों के पीछे हटने का सिलसिला आरंभ हुआ। इसके मायने क्या निकालें? एशिया-प्रशांत में शांति और विकास के मार्ग पर अग्रसर होने की इच्छा बड़ी ताक़तें व्यक्त करने लगीं?
शी-बाइडेन संवाद के एक दिन पहले अमेरिकी प्रतिरक्षा मुख्यालय पेंटागन में एक टास्कफोर्स का गठन हुआ है। इसकी ज़िम्मेदारी चीन के संबंध में अमेरिकी सैन्य नीति की पड़ताल करनी है। अमेरिकी थिंक टैंक का एक बड़ा हिस्सा मानता रहा है कि चीन के प्रति हम जितना सख्त रहेंगे, वह अमेरिकी हितों के लिए सही रहेगा। विगत चार वर्षों की अमेरिकी कूटनीति में ऐसी सोच को साकार होते कई बार देखा गया है। जो बाइडेन जिस दिन शपथ ले रहे थे, ताइवानी दूत ह्स्यिाओ पी-खि़म की उपस्थिति से चीन की भृकुटि तनी हुई थी। तब यही अनुमान लग रहा था कि ट्रंप ने अमेरिका की ताइवान नीति की जो इबारत लिखी थी, उसे जो बाइडेन आगे बढ़ाएंगे। उस पूर्वानुमान के बरअक्स, जो बाइडेन विवाद के बीच संवाद की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं।
जो बाइडेन की परिपक्वता के पीछे की पृष्ठभूमि को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटने की आवश्यकता है। ‘छाओखान‘ पेइचिंग का प्रसिद्ध डिश है, जो सूअर के लीवर और आंत को दम देकर इश्टू जैसा बनाया जाता है। 2011 गर्मियों की बात है, जो बाइडेन अपनी बहू कैथलिन बाइडेन और पोती नाओमी के साथ पेइचिंग पधारे हुए थे। जो बाइडेन बहैसियत अमेरिकी उपराष्ट्रपति चीन की राजधानी आये थे और प्रोटोकॉल के अनुसार उनकी आवभगत तत्कालीन चीनी उपराष्ट्रपति शी चिनफिंग कर रहे थे। 18 अगस्त, 2011 को पेइचिंग के एक रेस्टोरेंट में जो बाइडेन के वास्ते ‘छाओखान‘ परोसा गया। चीनी अखबारों में छपी लंच की वह तस्वीर उन दिनों के लिए यादगार बनकर रह गई थी।
जो बाइडेन की पोती नाओमी बाइडेन तब छात्रा थी और मंदारिन सीख रही थी। जो बाइडेन ने ज़िक्र किया था कि नाओमी उस यात्रा में चीनी भाषा के कुछ शब्द बोल-बोलकर हमें इम्प्रेस करने का प्रयास करती रही। जो बाइडेन परिवार का एक और सदस्य मंदारिन बोलने में माहिर है। इसका मतलब यह होता है कि जो बाइडेन के तार चीन से जुड़े रहे हैं।
अगस्त 2011 में छह दिवसीय चीन यात्रा में जो बाइडेन के शी से निजी संबंध विकसित हुए थे, ऐसा दावा इस घटना के साक्षी रहे जापानी पत्रकार काटसूजी नाकाज़ावा ने भी किया है। उस समय चीन के राष्ट्रपति हू चिन्थाओ और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने से ठीक नीचे के ओहदे वाले नेता को संबंधों को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी क्यों दी थी, इसे ठीक से समझने की आवश्यकता है। जो बाइडेन तीन दिन पेइचिंग रहे, फिर दक्षिण-पूर्वी चीनी प्रांत शिचुआन की राजधानी चेंगदू गये। शिचुआन यूनिवर्सिटी में जो बाइडेन ने भाषण भी दिया। पत्रकारों को याद है कि उनकी पूरी यात्रा में शी चिनफिंग लगातार नुमाया होते रहे। उस दौरान चीनी डिप्लोमेट सुई थिएनखाई दुभाषिये की भूमिका में थे। दो साल बाद, 15 अप्रैल, 2013 को सुई थिएनखाई वाशिंगटन, चीनी राजदूत बनकर आ गये। सुई थिएनखाई अब भी अमेरिका में चीन के राजदूत हैं। सुई थिएनखाई सबसे लंबी अवधि तक एक जगह टिके रहने वाले चीनी राजदूत का कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन से राजदूत सुई और राष्ट्रपति शी के दस साल पुराने निजी संबंधों का लाभ मिलेगा, ऐसी अपेक्षा चीनी रणनीतिकार कर रहे हैं। तो क्या दस साल पहले बोये पेड़ के फल को खाने का वक्त आ गया है?
यह ध्यान में रखने की बात है कि जो बाइडेन ने शी चिनफिंग से फोन पर संवाद से 72 घंटे पहले पीएम मोदी से बात की थी। दोनों नेताओं ने उभयपक्षीय रणनीतिक लक्ष्यों को भी बातचीत में रेखांकित किया था। वो लक्ष्य क्या ट्रंप की लाइन से भिन्न हैं? बहस का विषय यह है। चीन-अमेरिका के बीच तल्ख संबंधों का वह चरम था, जब शी प्रशासन ने अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोंपियो, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन समेत ट्रंप शासन के समय रहे 28 अधिकारियों को प्रतिबंधित किया था। यह उसी दिन की बात है, जब जो बाइडेन शपथ ले रहे थे। इस मुद्दे पर अमेरिका के नये निज़ाम का क्या रुख़ रहेगा? इस सवाल को हम भविष्य पर छोड़ देते हैं।
जो प्रश्न भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, वह ये कि जो कुछ लद्दाख सीमा पर पिछले 72 घंटे में हुआ है, उभयपक्षीय सेनाएं पेंगोंग के फिंगर एरिया से हटी हैं, उसमें क्या अमेरिका की भी कोई भूमिका है? बाहर से तो यही बताया जा रहा है कि कोर कमांडरों के बीच नौवें दौर की बातचीत का प्रतिफल है। मगर देप्सांग और गोगरा हॉट स्प्रिंग सेक्टर से चीनी सेनाएं पीछे हट नहीं रही, तो इसे नहीं मानकर चलें कि हम चिंता से मुक्त हो चुके। हमारी वर्तमान चिंता अरुणाचल में बनी अवैध चीनी बस्ती तक है। फिर भी पेंगांेग के उत्तरी-दक्षिणी इलाके में जो कुछ हुआ है, उसके सकारात्मक दृष्टि से भी देखे जाने की आवश्यकता है। यह कभी भी दो देशों के बीच युद्ध का कारण बन सकता था।
जो बाइडेन के पूर्ववर्ती ट्रंप जिस तरह से भारत की सक्रियता एशिया-प्रशांत में चाहते थे, ऐसा लगता है कि नया निजाम उसकी नये सिरे से समीक्षा कर रहा है। भारत की भूमिका अफग़ानिस्तान में बढ़े, उसके लगातार प्रयास पिछले वर्षों से हो रहे थे। अफग़ानिस्तान में अमेरिकी दूत जलमय खलीज़ाद आखि़री बार सितंबर 2020 में नयी दिल्ली आये थे, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले थे। जो बाइडेन दक्षिण-पूर्व एशिया और हिंद-प्रशांत इलाके में भारत की सकारात्मक भूमिका चाहते हैं। चीन से टकराने के वास्ते भारत के कंधे इस्तेमाल करने का इरादा नहीं है, ऐसा संकेत उनके क़रीब रहने वाले दे रहे हैं। दस देशों का संगठन ‘आसियान’, 9.727 ट्रिलियन डॉलर की मुक्त व्यापार अर्थव्यवस्था है। भारत आसियान का चौथा बड़ा व्यापारिक साझीदार है, इससे प्रशांत पारीय पार्टनरशिप ‘टीपीपी’ में भारत की साख़ बनी है। जो बाइडेन क्या उस साख़ को सकारात्मक दिशा में ले जाना चाहेंगे?
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।