पहले अभिभावक ही जेन-जी को प्रभावित और मार्गदर्शन करते थे, लेकिन अब स्थिति उलट चुकी है—जेन-जी अभिभावकों की सोच और फैसलों पर असर डाल रही है और उन्हें नए रास्ते दिखा रही है।
मैक्सिको में युवा सड़कों पर उतरे थे ताकि समाज, राजनीति और जीवन की विसंगतियों को चुनौती दी जा सके। वही विरोध की भावना अमेरिका में भी दिखी, जब ट्रम्प ने अपने टैरिफ युद्ध के जरिए व्यक्तिगत और राष्ट्रीय अहम को संतुष्ट करने का प्रयास किया, जिसे युवाओं ने नकार दिया।
युवा शक्ति के तेज़ उभार ने नेपाल सहित कई देशों में राजनीति का चेहरा बदला है, पर वास्तविक युवा चेतना अभी पूर्ण रूप में नहीं दिखी। श्रीलंका और पाक-अधिकृत कश्मीर में भी उभरे विरोधी स्वर बताते हैं कि नौजवान यथास्थितिवाद से तंग आ चुके हैं और नई व्यवस्था का स्वप्न देख रहे हैं। जहां-जहां यह युवा विद्रोह उठा, वहां नेताओं ने अपने राजनीतिक दांव चले—कुछ जगह परिवर्तन सार्थक हुआ, तो कुछ स्थानों पर यह ऊर्जा दिशाहीन होकर भटक गई।
पिछले एक-दो वर्षों में युवा शक्ति का विद्रोही स्वर, जो भारी जन चेतक यात्राओं के रूप में उभरा, अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसे ‘जेन-जी’ कहा गया है। यह नई पीढ़ी सोशल मीडिया, डिजिटल जागृति और कृत्रिम मेधा के युग में पली-बढ़ी है। उनकी सोच परंपरावादी नहीं है और वे बुजुर्गों की विरासत को बिना समझे ढोने में धीरज नहीं रखते। जब-जब ये युवा सड़कों पर जागरूक हुए, राजनीतिज्ञों ने उन्हें भटकाने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद परिवर्तन अवश्य आया। युवा ऊर्जा ने समाज में नए आंदोलनों और बदलाव की दिशा दिखाई।
पाक अधिकृत कश्मीर में नौजवान सड़कों पर विरोधी स्वर उठाकर परिवर्तन की उम्मीद जगा रहे हैं। आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझते पाकिस्तान में, जहां आम जनता नकली घोषणाओं शूरवीरता से तंग है, जेन-जी और जेन-अल्फा की युवा शक्ति सड़कों पर दिखाई दे सकती है। राजनीतिक बदलाव, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और जीवन में असंतोष से परेशान यह पीढ़ी विरोध कर रही है। हालांकि हर समय उनका विरोध निरर्थक नहीं होता, बल्कि उनके आंदोलन और आवाज़ समाज में बदलाव की संभावनाओं को प्रकट करते हैं।
भारत के पास विशाल मांग-निकासी वाला बाजार है, जिसकी अनदेखी न पश्चिमी शक्तियां कर सकती हैं, न रूसी ब्लॉक। इसी कारण अमेरिका ने टैरिफ वार के नाम पर रूस और भारत से आर्थिक टकराव का एक छद्म युद्ध छेड़ा हुआ है। लेकिन वास्तविकता यह है कि आने वाले वर्षों में जेन-जी और जेन-अल्फा की उभरती शक्तियां देश में बड़े सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन लाने की क्षमता रखती हैं।
भारत में अभिभावकों की पारंपरिक सोच और मूल्यों वाले लोग नई पीढ़ी, जेन-जी और जेन-अल्फा को आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उनकी पोशाक, खान-पान और जीवनशैली में स्पष्ट बदलाव दिखता है। बढ़ती समझदारी और आत्मविश्वास के कारण यह नई पीढ़ी अभिभावकों की बंदिशों पर भी असर डाल रही है। पहले माता-पिता केवल डॉक्टर या इंजीनियर बनने को प्राथमिकता देते थे, लेकिन डिजिटल और कृत्रिम मेधा के युग में जेन-जी और जेन-अल्फा की सक्रिय भागीदारी के साथ भारत में एक नया युग उभर रहा है।
कृत्रिम मेधा अब इंसान के मस्तिष्क में भी हस्तक्षेप कर रही है, नए सपने और विचार दे रही है, जिनमें कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। लेकिन कोई भी तटस्थ विश्लेषक यह मान सकता है कि वर्तमान युग, दस साल पहले के युग से बहुत अलग है। आज जेन-जी और किशोर माता-पिता को खरीदारी और अन्य निर्णयों में मार्गदर्शन देने लगे हैं। पहले अभिभावक ही जेन-जी को प्रभावित और मार्गदर्शन करते थे, लेकिन अब स्थिति उलट चुकी है—जेन-जी अभिभावकों की सोच और फैसलों पर असर डाल रही है और उन्हें नए रास्ते दिखा रही है।
आने वाले दिनों में देश के बाजारों का स्वरूप बदल जाएगा। परंपरावादी उत्पादन से हटकर खाने-पीने, निजी देखभाल, कपड़े और टेक एक्सेसरीज जैसी सभी चीज़ों में बदलाव आएगा। नए जमाने के नए ब्रांड उभरेंगे और इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसी प्लेटफ़ॉर्म पर समीक्षाओं व ट्रेंड के माध्यम से दुनिया बदल जाएगी। अनुमान है कि 2035 तक मौजूदा 50 प्रतिशत ब्रांड अपनी प्रासंगिकता खो देंगे और घरेलू बाजारों का चेहरा पूरी तरह बदल जाएगा। आंतरिक मार्केटिंग में यह बदलाव निर्यातों पर भी असर डालेगा। कहीं-कहीं जेन-जी और जेन-अल्फा की यह युवा पीढ़ी सार्थक कार्य भी कर रही है।
पंजाब के जालंधर से खबर है कि नौजवान और विद्यार्थी शहर में छोटे-छोटे कूड़े के ढेर साफ करने की पहल कर रहे हैं। उन्होंने बैनर भी लगाए—‘यह जगह विद्यार्थियों ने साफ की है, गंदगी न फैलाएं।’ यही जेन-जी और जेन-अल्फा से अपेक्षित सकारात्मक रीति-नीति है। यह दिखाता है कि युवा हमेशा नीतिविहीन कार्यों में नहीं लगे रहते। यदि इन्हें सही मार्गदर्शन मिले, तो ये देश में सार्थक और सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं, जिसका कई वर्षों से इंतजार है। उनकी पहल से भ्रष्टाचार और नैतिकताहीन माहौल पर काबिज माफिया गैंग भी पीछे हट सकते हैं।
लेखक साहित्यकार हैं।

