Yoga Seminar : शरीर बना साधना का यंत्र, भजन बना आत्मा की भाषा... चंडीगढ़ में आनंद मार्ग प्रचारक संघ का त्रिदिवसीय योग सेमिनार
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 29 जून
Yoga Seminar : तीन दिनों तक वातावरण में भक्ति की सुगंध थी, शब्दों में साधना की शक्ति और हर हृदय में आत्मिक जागरण की हलचल। आनंद मार्ग प्रचारक संघ की चंडीगढ़ इकाई द्वारा आयोजित प्रथम संभागीय त्रिदिवसीय योग सेमिनार महज़ एक कार्यक्रम नहीं, आत्मा की एक यात्रा बन गया- स्वयं की ओर, ईश्वर की ओर।
जब आचार्य ने कहा- "मानव शरीर एक यंत्र है..."
मुख्य प्रशिक्षक आचार्य नाभातीतानंद अवधूत जी ने उद्घाटन सत्र में जब यह कहा कि “मनुष्य का शरीर एक जैविक यंत्र है, जिसके माध्यम से परमपद की प्राप्ति संभव है,” तो जैसे पूरे हाल में मौन की चादर बिछ गई। उन्होंने मानव देह को साधना का श्रेष्ठ साधन बताया और जीवन को भोग नहीं, योग का अवसर कहा।
पाप के तीन बीज और परम पुरुष में शरण ही समाधान
दूसरे दिन ‘पापस्य कारणम् त्रयम्’ विषय पर गूढ़ चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि पाप की जड़ें तीन मनोवृत्तियों में हैं- अभाव, प्रचुरता और भावजड़ता। उन्होंने कहा, “अभाव में लोभ पनपता है, प्रचुरता में अहंकार और भावजड़ता में संवेदना की मृत्यु। इन सबसे मुक्ति का मार्ग केवल एक है – परम पुरुष के चरणों में समर्पण।”
प्राण धर्म: भारत की आत्मा की पुकार
तीसरे दिन के सत्र में ‘प्राण धर्म’ पर बोलते हुए उन्होंने भारत की आत्मिक परंपरा को याद किया। “भारतवर्ष का प्राण धर्म आध्यात्मिकता है। हर जीव का प्राण धर्म है – परम पद की संप्राप्ति।”यह वाक्य न केवल श्रोताओं के मस्तिष्क में गूंजा, बल्कि उनके भीतर कुछ गहरे स्पंदित कर गया।
भावपूर्ण भजनों ने बहाया श्रद्धा का सागर
हर प्रवचन के पश्चात जब आचार्य जी ने कीर्तन और भजन आरंभ किए, तो जैसे आत्मा को भाषा मिल गई हो। भक्ति की उन तरंगों में लोग डूबते चले गए। कई आंखें भीगीं, कई मन हल्के हुए।
सेवा में समर्पण, आयोजन में संतुलन
इस आध्यात्मिक अनुष्ठान को सफल बनाने में चंडीगढ़ भुक्ति कमिटी के सदस्यों ने तन-मन-धन से सेवा की। कोई श्रेय लेने को आगे नहीं आया- सभी ने मिलकर एक ऐसी सामूहिक साधना रच दी जो लंबे समय तक स्मृति में जीवित रहेगी।