क्यों रुक जाता है कुछ बच्चों में यौवन? पीजीआई की डॉ. रमा वालिया ने समझाया कारण, लक्षण और इलाज
डॉ. रमा वालिया को ‘सुभाष मुखर्जी ऑरेशन’ से सम्मानित, बच्चों में यौवन विकारों पर दी जागरूकता की नई दिशा
हर बच्चा अपने समय पर बड़ा होता है, लेकिन अगर किसी में यौवन देर से शुरू हो या बहुत जल्दी आ जाए, तो यह सिर्फ विकास का नहीं बल्कि हार्मोनल असंतुलन का संकेत हो सकता है। पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ. रमा वालिया ने इसी विषय पर अपने प्रेरक व्याख्यान में विस्तार से चर्चा की।
उन्हें इस अवसर पर ‘सुभाष मुखर्जी ऑरेशन’ से सम्मानित किया गया। यह सम्मान भारत के प्रजनन विज्ञान के अग्रणी वैज्ञानिक डॉ. सुभाष मुखर्जी की स्मृति में दिया जाता है, जिन्होंने देश में टेस्ट-ट्यूब बेबी तकनीक की नींव रखी थी।
क्या है यौवन और क्यों जरूरी है इसका समय पर आना
डॉ. वालिया के अनुसार, यौवन वह दौर है जब शरीर में लैंगिक हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन बनने लगते हैं, जिससे बच्चा वयस्कता की ओर बढ़ता है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि से नियंत्रित होती है। अगर यह संतुलन बिगड़ जाए, तो यौवन या तो बहुत देर से आता है या बहुत जल्दी- जिसे अकाल यौवन (प्रिकॉशियस प्यूबर्टी) कहा जाता है।
किन संकेतों से समझें कि कुछ गड़बड़ है :
अगर लड़कियों में 13 साल की उम्र तक स्तन विकास या माहवारी न हो, या लड़कों में 14 साल तक जननांगों का विकास न दिखे तो यह देरी से यौवन आने का संकेत हो सकता है। वहीं, अगर लड़कियों में 8 साल या लड़कों में 9 साल से पहले यौवन के लक्षण दिखने लगें, तो यह समय से पहले यौवन का मामला माना जाता है।
क्या होते हैं कारण
डॉ. वालिया बताती हैं कि कई बार यह आनुवंशिक कारणों से होता है। कुछ मामलों में मस्तिष्क के ट्यूमर, संक्रमण, चोट या कुपोषण जैसी वजहें हार्मोनल संतुलन बिगाड़ देती हैं। इससे बच्चों की लंबाई, हड्डियों की मजबूती और भविष्य की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है।
इलाज
आज चिकित्सा विज्ञान में ऐसे विकारों के सटीक और सुरक्षित इलाज उपलब्ध हैं। डॉ. वालिया ने बताया कि हार्मोन प्रतिस्थापन उपचार (हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी) से देरी से यौवन आने वाले बच्चों में सामान्य विकास शुरू कराया जा सकता है। वहीं, जल्दी यौवन आने की स्थिति में हार्मोन नियंत्रण उपचार से विकास की गति को नियंत्रित किया जा सकता है, ताकि बच्चा अपने सही समय पर परिपक्व हो।
पीजीआई की नई खोज
डॉ. वालिया और उनकी टीम ने एफएसएच-इनहिबिन बी (एफएसएच–आईबी) जांच को एक सटीक परीक्षण उपकरण के रूप में विकसित किया है, जो यह तय करता है कि बच्चे में देरी सामान्य है या किसी हार्मोनल कमी के कारण। यह जांच 100 प्रतिशत सटीकता से परिणाम देती है और अब बच्चों में हाइपोगोनाडोट्रॉपिक हाइपोगोनाडिज्म की पहचान के लिए उपयोग में लाई जा रही है। हाल ही में पीजीआई की टीम ने कम खुराक एचसीजी (HCG), एफएसएच (FSH) और टेस्टोस्टेरोन आधारित नई उपचार पद्धति पर अध्ययन किया, जिससे पुरुषों में प्रजनन क्षमता बहाल करने में उत्साहजनक परिणाम मिले हैं।
जागरूकता ही बचाव
डॉ. वालिया का कहना है कि “जब यौवन रुक जाए या गलत दिशा में चले जाए, तो इसे ‘सिर्फ देरी’ या ‘जल्दी बढ़ना’ मानकर न टालें। सही समय पर जांच और इलाज से बच्चे का पूरा जीवन सुधर सकता है।” उन्होंने अभिभावकों, शिक्षकों और डॉक्टरों से अपील की कि ऐसे संकेतों को नजरअंदाज न करें और समय पर विशेषज्ञ से परामर्श लें।

