विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 22 मई
किशनगढ़ में 800 बच्चे पिछले 7 साल से शिक्षा के मंदिर के ‘द्वार’ खुलने का इंतजार कर रहे हैं। यूटी के अधिकारियों के लापरवाही के चलते बच्चों को धर्मशाला में पढ़ाई करनी पड़ रही है, जहां उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनके पास खेलने के न ग्राउंड हैं, न ही लाइब्रेरी। दूसरे स्कूलों की तरह वो भी अपने लिए शिक्षा से जुड़ी सभी सुविधाएं चाहते हैं, लेकिन प्रशासन की छोटी सी गलती के कारण उन्हें भुगतना पड़ रहा है। पिछले अधिकारियों की वजह से सात साल तक मामला कानूनी पेचीदगियों में फंसा रहा। वर्ष 2021 जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारी इस मामले को सुलटाने में लगे और जनवरी 2022 में जाकर उन्हें सफलता हाथ लगी।
किशनगढ़ में 2015 में सरकारी करीब सात करोड़ की लागत से स्कूल बनकर तैयार हो गया था। जब इसका उद्घाटन होना था तो इसमें अड़ंगा पड़ गया। विभाग ने जिस जमीन पर स्कूल बनाया था तो किसी की निजी जमीन थी। ऐसे में जमीन मालिक कोर्ट में चला गया और फैसला प्रशासन के खिलाफ आया। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा, वहां भी प्रशासन को हार मिली। प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में भी केस हार गया। ऐसे में जहां स्कूल बना था उस जमीन का स्वामितत्व यूटी के पास नहीं रहा। केस हारने के बाद प्रशासन को जमीन ट्रांसफर करनी पड़ी। पिछले सात साल से करोड़ों की बिल्डिंग मिट्टी हो गई। आखिर में प्रशासन ने जमीन का अवार्ड घोषित कर दिया और मुआवजा जमीन मालिक को मिल गया। प्रशासन ने जनवरी 2022 में अवार्ड सुनाया था। फिर से जमीन का मालिकाना हक प्रशासन को मिल गया। इसके बावजूद शिक्षा विभाग ने जागा और स्कूल को दोबारा शुरू करने के प्रयास नहीं हुए। नया सत्र भी शुरू हो चुका है। अभी भी हजारों बच्चे धर्मशाला में ही पढ़ने जाते हैं। प्रशासन ने स्कूल भवन के निर्माण और 3.5 एकड़ भूमि पर एक सामुदायिक केंद्र पर लगभग 11 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
डबल शिफ्टों में चल रहा स्कूल
मुख्य भवन में जगह की कमी के कारण करीब आधे छात्रों को पास की धर्मशाला में पढ़ाया जा रहा है। अब स्कूल दो जगह से डबल शिफ्ट में चल रहा है। 1965 में स्थापित, स्कूल में इस समय 900 के करीब छात्र हैं। कभी छात्रों की संख्या 250 होती थी। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार स्कूल भवन में लाइब्रेरी, एक खेल का मैदान, एक किचन शेड और खेल उपकरण होने चाहिए, लेकिन स्कूल में इन सभी सुविधाओं का अभाव है।