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ट्रांसप्लांट से ज़िंदगी पाने और देने वालों ने लिखी नयी इबारत

जंग से जीत तक पीजीआई चंडीगढ़ में आयोजन, बिस्तर से उठकर पहुंचे खेल के मैदान और बांटी खुशियां

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पीजीआई की ओर से आयोजित खेलों में भाग लेते प्रतिभागी।
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विवेक शर्मा/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 23 मार्च

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जिंदगी जिंदादिली का नाम है...। इसी को चरितार्थ किया उन लोगों ने जिनका कोई अंग ट्रांसप्लांट हुआ या जो दानदाता रहा। यानी बिस्तर से उठकर खेल के मैदान में और खुशियां बांटने के साथ ही जीत का जज्बा। इस जज्बे के लिए मंच उपलब्ध कराया पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने। खेल के इस महाकुंभ में 300 से ज़्यादा ट्रांसप्लांट कराने वालों और अंगदाताओं ने भाग लिया, यह साबित करते हुए कि बीमारी सिर्फ एक पड़ाव है। जब मौका मिला तो कल तक बिस्तर में पड़े कुछ लोग दौड़ते-कूदते नजर आए। इस खुशी और खेलों का संदेश साफ था- ट्रांसप्लांट सिर्फ शरीर को नया जीवन नहीं देता, बल्कि आत्मा को भी नयी उड़ान देता है। इस टूर्नामेंट में 100 मीटर दौड़, बैडमिंटन, रेस वॉक, भाला फेंक और रस्साकशी जैसे खेल हुए। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान राजपाल सिंह ने इसे सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि एक आंदोलन बताया। उन्होंने अंगदान को रिले रेस से जोड़ते हुए कहा, ‘जिस तरह एक एथलीट अपनी टीम को जिताने के लिए बैटन आगे बढ़ाता है, वैसे ही एक डोनर अपने अंगों के ज़रिए किसी और को आगे बढ़ने का मौक़ा देता है।’ इस आयोजन में बिहार, झारखंड, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, असम और मणिपुर सहित 15 राज्यों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

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समझिए इनके जज्बे को

जबलपुर के दिग्विजय सिंह की किडनी ट्रांसप्लांट हुई। सबने कहा कि वह कमज़ोर हो जाएंगे। उन्होंने हार नहीं मानी। बॉडी बिल्डिंग की और वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में सिल्वर मेडलिस्ट बने। उन्होंने कहा, ‘मैंने सिर्फ़ अंग नहीं, नया जीवन पाया।’ इसी तरह दिल्ली की प्रीति के दिल का 25 साल पहले ट्रांसप्लांट हुआ। तमाम नकारात्मक बातें सुनने के बाद उन्होंने बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीता। हरियाणा के प्रवीन शर्मा का लीवर ट्रांसप्लांट हुआ था। फिर नया जीवन शुरू किया और 200 मीटर दौड़ में चौथे नंबर पर रहे। बोले, ‘मेडल से ज़्यादा यह बात मायने रखती है कि मैं दौड़ सकता हूं।’ कोलकाता की सौम्या दत्ता अब लंग ट्रांसप्लांट के बाद दौड़ रही हैं। इस मौके पर पीजीआईएमईआर के ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रोफेसर आशीष शर्मा ने कहा, ‘ये गेम्स यह साबित करने के लिए हैं कि ट्रांसप्लांट के बाद भी ज़िंदगी उतनी ही शानदार हो सकती है।’ पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर दीपेश बी. कंवर ने कहा, ‘यह सिर्फ़ खेल नहीं, ज़िंदगी का उत्सव है। ट्रांसप्लांट के बाद जोश और जज़्बा कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता है।

प्रतिभागियों को सम्मानित करते भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान राजपाल सिंह। -दैनिक ट्रिब्यून
’दानदाता हुए सम्मानित

कार्यक्रम में उन परिवारों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने अपने प्रियजनों के अंगदान से अनगिनत ज़िंदगियों को नयी रोशनी दी। पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर विपिन कौशल ने इन परिवारों के योगदान को नमन करते हुए कहा, ‘जब एक परिवार अपने दुख में भी किसी और की ज़िंदगी बचाने का फ़ैसला करता है, तो यह सबसे बड़ा परोपकार होता है।’ आयोजन में डॉ. अनिल कुमार (निदेशक, नोट्टो), प्रो. हरषा जौहरी (अध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन्स), प्रो. मुक्त मिन्ज़ (पूर्व प्रमुख, किडनी ट्रांसप्लांट विभाग), प्रो. अजय दुसेजा (हेपेटोलॉजी विभाग), प्रो. रंजना मिन्ज़ (पूर्व प्रमुख, इम्यूनोपैथोलॉजी विभाग), प्रो. अशोक कुमार (अस्पताल प्रशासन विभाग, पीजीआईएमईआर), विवेक अत्रे (पूर्व आईएएस) और प्रो. दीपेश बी. कंवर (ट्रांसप्लांट सर्जरी विभाग) सहित कई प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की।

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