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युवा पीढ़ी सेवा को अपने दैनिक जीवन में शामिल करे : रेनू विग

पंजाब यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय विश्व पंजाबी सम्मेलन शुरू
चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में मंगलवार को 'सिख धर्म में सेवा की अवधारणा' पर तीन दिवसीय विश्व पंजाबी सम्मेलन में संबोधित करते पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर। - दैनिक ट्रिब्यून
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जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू

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चंडीगढ़, 11 फरवरी

पंजाब विश्वविद्यालय में 'सिख धर्म में सेवा की अवधारणा' पर तीन दिवसीय विश्व पंजाबी सम्मेलन आज शुरू हुआ। प्रतिष्ठित सम्मेलन का आयोजन पीयू कुलपति प्रोफेसर रेनू विग के संरक्षण में गुरु नानक सिख स्टडी विभाग और विरासत पंजाब मंच द्वारा किया जा रहा है। सिख धर्म में सेवा (निःस्वार्थ सेवा) के सार की खोज के लिए समर्पित, सम्मेलन तीन दिन तक चलेगा। अपने उद्घाटन भाषण में प्रोफेसर रेनू विग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे सिख गुरुओं ने सेवा का उदाहरण पेश करते हुए पीढ़ियों को निस्वार्थ सेवा को जीवन के तरीके के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने युवा पीढ़ी से सेवा को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने का आग्रह किया। मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करते हुए देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर ने गुरु ग्रंथ साहिब और करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) में गुरु नानक देव द्वारा शुरू की गई लंगर की अवधारणा का संदर्भ देते हुए इस बात पर जोर दिया कि सेवा नि:स्वार्थ होनी चाहिए और बदले में कुछ पाने की लालसा न हो। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का हवाला देते हुए, उन्होंने रेखांकित किया कि 'शेयरिंग इज केयरिंग' यानी अपने संसाधनों को दूसरों के साथ साझा करना ही देखभाल या सेवा है। साथ ही गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के योगदान का भी हवाला दिया, जिनमें से प्रत्येक ने सेवा के विभिन्न पहलुओं को अपनाया। उन्होंने कहा कि अब सेवा का मतलब गुरुद्वारे की साफ-सफाई, बर्तन धोना या लंगर सेवा नहीं रह गया है बल्कि वैश्विक स्तर पर किसी आपदा में उनके दुख-सुख में साथ खड़े होना और कुछ मदद करना बड़ी सेवा है।

मेजर जनरल पीबीएस लांबा, जनरल ऑफिसर कमांडिंग, कश्मीर सब एरिया, श्रीनगर ने सम्मानित अतिथि के रूप में भाग लिया और सिख धर्म में सेवा और भारतीय सेना के सेवा लोकाचार के बीच समानता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बिना किसी प्रत्याशा और हिचक के दूसरों की सेवा या मदद करना ही सिख धर्म में सेवा है। आतंरकि शुचिता के साथ किसी जरूरतमंद की मदद करना सबसे बड़ी सेवा है।

प्रसिद्ध सिख विद्वान सरदार रणजोध सिंह ने विभिन्न धर्मों में सेवा की अवधारणा पर बात की। उन्होंने कहा कि तन, मन और धन से किसी की मदद करना और बदले में कोई उम्मीद न करना ही सेवा है। अपनी इच्छाओं से मुक्त होकर निष्काम सेवा करना ही सच्ची सेवा है। घर परिवार की सेवा करना कर्तव्य मात्र है। गुरतेज सिंह (आईएएस) ने अपने मुख्य भाषण में सिख धर्म में निस्वार्थ सेवा पर एक ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टिकोण प्रदान किया।

इससे पहले सम्मेलन की शुरुआत प्रोफेसर हरजोध सिंह के स्वागत भाषण से हुई जिन्होंने कहा कि गुरबाणी मन को मजबूत करती है जिससे इन्सान सुख-दुख में विचलित नहीं होता और स्थिर बना रहता है। इसके बाद पद्म श्री बाबा सेवा सिंह (निशान-ए-सिखी, श्री खडूर साहिब) का एक संदेश आया, जिसमें सेवा के महत्व को पुष्ट किया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता बाबा बलजिंदर सिंह (राड़ा साहिब) ने की और इसमें गुरदेव सिंह (आईएएस), हरदियाल सिंह (आईएएस), प्रोफेसर बलकार सिंह, भूपिंदर सिंह बाजवा (कनाडा) और सरदार मोता सिंह सराय (यूके) सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व मौजूद थे, जिन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने डॉ. हरजोध सिंह द्वारा संपादित पुस्तक 'कॉन्सेप्ट ऑफ शहीदी इन सिखिज्म' का विमोचन भी किया।

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