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‘मेरी किस्मत का सितारा आपकी आंखों में है, मेरे जीने का सहारा आपकी आंखों में है’

मनीमाजरा (चंडीगढ़), 2 जुलाई (हप्र) बृहस्पति कला केन्द्र, चंडीगढ़ एवं संस्कार भारती चंडीगढ़ इकाई के सौजन्य से मिन्नी टेगोर थियेटर, सैक्टर 18, चंडीगढ में पुस्तक विमोचन समारोह एवं कवि सम्मेलन का आयोजन सुविख्यात साहित्यकारा गुरदीप गुल की अध्यक्षता में संपन्न...

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चंडीगढ़ के मिनी टैगोर थियेटर में सुशील हसरत नरेलवी के हिन्दी नवगीत संग्रह ‘पगडंडी से पनघट तक’ का लोकार्पण करते साहित्यकार। -हप्र
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मनीमाजरा (चंडीगढ़), 2 जुलाई (हप्र)

बृहस्पति कला केन्द्र, चंडीगढ़ एवं संस्कार भारती चंडीगढ़ इकाई के सौजन्य से मिन्नी टेगोर थियेटर, सैक्टर 18, चंडीगढ में पुस्तक विमोचन समारोह एवं कवि सम्मेलन का आयोजन सुविख्यात साहित्यकारा गुरदीप गुल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। मंच संचालन कवि वीरेन्द्र शर्मा वीर ने किया।

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कार्यक्रम का शुभारम्भ संगीतज्ञ सुमेश गुप्त की प्रस्तुति सरस्वती वंदना से हुआ।

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फिर सुशील हसरत नरेलवी के हिन्दी नवगीत संग्रह ‘पगडंडी से पनघट तक’ का लोकार्पण सुविख्यात संगीतज्ञ एवं एनजेडसीसी के पूर्व निदेशक प्रो. सौभाग्य वर्धन, वरिष्ठ साहित्यकारा गुरदीप गुल, सुविख्यात अभिनेत्री एवं साहित्यकार उर्मिला कौशिक सखी, सुविख्यात नाटककार यशपाल कुमार एवं अन्य गणमान्य साहित्यकारों द्वारा किया गया। इस नवगीत संग्रह के गीतों में जीवन की दुर्गम पगडंडियों की ऊबड़-खाबड़, नुकीली, पथरीली अनुभूतियों की चुभन है तो जीवन यात्रा के कुछ पड़ाव सुखद पलों के साक्षी भी हैं जो कि गाहे-बगाहे तन-मन को गुदगुदाते हुए जीवन-राग को अपने ही सुर-ताल में गुनगुनाते हैं। इनमें एकल प्रकृति-नाद भी है, जिसमें जीवन अपने विभिन्न रूपों में उभर कर साकार होता है।

कोई बस मुस्कुरा कर ....

कवि सम्मेलन का शुभारम्भ कवि अनी काठगढ़ी की गजल ‘वो क्या जाने ये फिर टिकने में कितना वक्त लेती है, कोई बस मुस्कुरा कर झील में कुछ फेंक जाता है’। तदुपरान्त शायरा गुरदीप गुल ने गजल ‘बेरुखी का उन्हें इल्जाम नहीं दे सकते, गुल ने तकदीर में लिखी हुई शय पाई है’, सुशील हसरत नरेलवी ने नवगीत ‘कैसी एहसास की जंग है जिन्दगी, अनबुझी प्यास का अंग है जिन्दगी’, चमन शर्मा चमन ने ‘मेरी किस्मत का सितारा आपकी आंखों में है, मेरे जीने का सहारा आपकी आंखों में है’, बलबीर तन्हा ने ‘बात कुछ तो है तन्हा, बर्फ यूं ही नहीं पिघलती है’, जे.एस. खुशदिल ने ‘हर बन्दे में मुझको अब तो तेरा घर लगता है, बैठा ईशा अल्लाह नानक या गिरिधर लगता है’ एवं प्रतिभा माही ने ‘जिन्दगी से बड़ी कोई किताब नहीं, और दुआओं से बड़ा कोई खिताब नहीं’ सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी और श्रोताओं का मनोरंजन किया।

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