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प्रसूता महिला पंचकूला अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 8 घंटे बाद पहुंची घर

क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों की स्थिति आज भी बेहद चिंताजनक है। यहां प्रसूता महिलाओं तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती और उन्हें गांव तक लाने-ले जाने के लिए ग्रामीण चारपाई का सहारा लेते हैं। बरसात के बाद से यहां के कच्चे...
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महिला को चारपाई पर घर ले जाते ग्रामीण। -निस
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क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों की स्थिति आज भी बेहद चिंताजनक है। यहां प्रसूता महिलाओं तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती और उन्हें गांव तक लाने-ले जाने के लिए ग्रामीण चारपाई का सहारा लेते हैं। बरसात के बाद से यहां के कच्चे रास्ते पूरी तरह बदहाल हो चुके हैं। यही वजह है कि गांवों तक न तो कोई वाहन जा सकता है और न ही आपात स्थिति में एंबुलेंस पहुंचने की सुविधा उपलब्ध है।

सोमवार रात को खंड के गांव बूंगा धनीर में ऐसा ही एक मामला सामने आया। गांव की एक महिला ने सिविल अस्पताल पंचकूला में बच्चे को जन्म दिया था। देर शाम जब महिला अस्पताल से डिस्चार्ज होकर मोरनी पहुंची तो एंबुलेंस उसे ठंडोग के पास मुख्य सड़क पर ही छोड़कर वापस लौट गई, क्योंकि आगे गांव तक जाने का कोई पक्का रास्ता नहीं था। रात के अंधेरे में महिला को गांव ले जाने की जिम्मेदारी ग्रामीणों पर आ गई। चारपाई लेकर ग्रामीण मुख्य सड़क तक पहुंचे और महिला को चारपाई पर करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर रात 11 बजे गांव पहुंचाया।

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महिला और उसके पति ने बताया कि अस्पताल से छुट्टी उन्हें सोमवार दोपहर 3 बजे मिली थी। लगभग 5 बजे वे मोरनी पहुंचे लेकिन वहां से घर तक पहुंचने में पूरे 8 घंटे लग गए।

ठंडोग से गांव तक महज 5 किलोमीटर का रास्ता तय करने में ही 3 घंटे लगे क्योंकि सड़कें टूटी और गड्ढों से भरी पड़ी हैं। इस दर्दनाक सफर में महिला की आंखों में आंसू थे और ग्रामीणों के माथे का पसीना प्रशासन की अनदेखी पर सवाल खड़े कर रहा था।

ग्रामीणों और महिला के पति ने प्रशासन से मांग की है कि मोरनी क्षेत्र के गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ा जाए ताकि गंभीर बीमार, गर्भवती और प्रसूता महिलाओं को ऐसी परेशानी न उठानी पड़े। आपातकालीन स्थितियों में ग्रामीण आज भी ऐसी दुश्वारियां झेलने को मजबूर हैं, जो विकास के सारे दावों को खोखला साबित करती हैं।

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