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विश्व शांति के लिए प्रेम की भाषा जरूरी : प्रो. फरज़ाना

चंडीगढ़, 13 दिसंबर (ट्रिन्यू) इंसान के अलावा दुनिया की हर जीवित और निर्जीव वस्तु वर्तमान भाषा में बात करती है, जिसके उदाहरण हमें भारतीय और ईरानी पौराणिक कथाओं और देवमाला में सुनने को मिलते हैं। भाषा कोई भी हो उसमें...
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चंडीगढ़, 13 दिसंबर (ट्रिन्यू)

इंसान के अलावा दुनिया की हर जीवित और निर्जीव वस्तु वर्तमान भाषा में बात करती है, जिसके उदाहरण हमें भारतीय और ईरानी पौराणिक कथाओं और देवमाला में सुनने को मिलते हैं। भाषा कोई भी हो उसमें प्रेम प्यार आवश्यक है क्योंकि विश्व शांति के लिए प्रेम की भाषा ज़रूरी है। ये विचार तेहरान विश्वविद्यालय की प्रो. फरजाना आजम लुत्फी ने पंजाब विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग द्वारा ‘भारत और ईरान की पौराणिक कहानियों में समकालीन भाषा का अध्ययन’ शीर्षक से एक विशेष ऑनलाइन व्याख्यान में व्यक्त किये।

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उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत और ईरान की कहानियों में रहस्यमय चर्चाएं आसानी से प्रस्तुत की जाती रही हैं। आज हमने कई महाकाव्य और पौराणिक कहानियों को बच्चों की कहानियों की संज्ञा दी है, जो कि कहानी के साथ अन्याय है।

प्रो. फरजाना ने कहा कि भारतीय और फारसी शास्त्रीय साहित्य में मानवाधिकारों को हमेशा ध्यान में रखा गया है। उन्होंने विशेष रूप से रामायण, पुराण और गीता का उल्लेख किया। इसी प्रकार प्रो. फरजाना ने प्राचीन फारसी साहित्य में ‘ज़हाक’ के प्रतीकात्मक अर्थ और उससे जुड़ी कहानी पर विशेष नजर डालते हुए कहा कि अत्याचारी चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक न एक दिन उसकी अज्ञानता और अहंकार उसे ले डूबेगा। उर्दू की क्लासिकल कहानियों में ‘सबरस’ को, ‘ज़बान-ए-हाल’ को ‘हृदय की भाषा’ के रूप में परिभाषित किया और कहा कि इसमें वर्णित प्रत्येक पात्र वर्तमान की भाषा में बात करता है, भले ही कि ये अच्छाई और बुराई की कहानी है।

इसी प्रकार, उर्दू और फ़ारसी कविता के संबंध में, उन्होंने उमर खय्याम, फ़िरदौसी और हाफ़िज़ शिराज़ी के साथ-साथ मीर तकी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब का उल्लेख भी किया और उनकी कविता में रूपकों और प्रतीकों में भाषा की ओर इशारा किया। प्रो. फरजाना ने कहा कि फूलों का खिलना, कलियों का फूटना, पक्षियों का चहचहाना, बादलों की आवाजाही, मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों में घंटियों का बजना, अज़ान और पाठ का होना। यहां तक कि भक्तों द्वारा अगरबत्ती और मोमबत्तियां जलाना भी शामिल है, जो पूजा का एक रूप है, जो दिल से निकलती है और दिल तक पहुंचती है।

उर्दू और फ़ारसी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अली अब्बास ने अतिथि वक्ता और अन्य प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रोफेसर फ़रज़ाना आज़म लुत्फी का संक्षिप्त परिचय दिया और उनकी साहित्यिक सेवाओं और सम्मानों से दर्शकों को रूबरू किया। उन्होंने कहा कि आज भी दैत्य एवं पौराणिक कथाएं अर्थ से परिपूर्ण हैं।

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