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जानने और करने के बीच की खाई पाटनी होगी : प्रो. वॉल्सन

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, अमेरिका के जाने-माने महामारी विशेषज्ञ प्रो. जेड एल. वॉल्सन ने ‘बदलते समय में जन स्वास्थ्य : जानकारी को अमल में बदलने में इम्प्लीमेंटेशन साइंस की भूमिका’ पर मंगलवार को पंजाब यूनिवर्सिटी में ‘सत पॉल मित्तल मेमोरियल लेक्चर’...
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जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, अमेरिका के जाने-माने महामारी विशेषज्ञ प्रो. जेड एल. वॉल्सन ने ‘बदलते समय में जन स्वास्थ्य : जानकारी को अमल में बदलने में इम्प्लीमेंटेशन साइंस की भूमिका’ पर मंगलवार को पंजाब यूनिवर्सिटी में ‘सत पॉल मित्तल मेमोरियल लेक्चर’ दिया। प्रो. वॉल्सन ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में सबसे बड़ी चुनौती ‘जानने और करने के बीच की खाई’ है। कई बार हमारे पास समाधान और दवाइयां होती हैं- जैसे ओआरएस और पोलियो वैक्सीन- लेकिन सही ढंग से लागू न होने के कारण वे सब तक नहीं पहुंच पाते। उन्होंने जोर दिया कि इम्प्लीमेंटेशन साइंस यानी उपायों को बड़े पैमाने पर लागू करने का विज्ञान, इस खाई को पाटने का रास्ता दिखाता है।

अपने व्याख्यान में उन्होंने डीवर्म 3 ट्रायल और टार्गेट पॉलिसी प्रोफ़ाइल जैसे उदाहरणों से समझाया कि सरकारों को ऐसे मॉडल अपनाने चाहिए जो किफायती हों और आसानी से लागू किए जा सकें। उन्होंने 1854 के हैजे के प्रकोप का ज़िक्र करते हुए बताया कि कैसे डॉ. जॉन स्नो ने साक्ष्य-आधारित कदम उठाकर हज़ारों जानें बचाईं।

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प्रश्नोत्तर सत्र में प्रो. वॉल्सन ने कहा, ‘लोगों से सिर्फ यह मत कहिए कि उन्हें क्या करना है, बल्कि उन्हें सही साधन, ट्रेनिंग और सिस्टम दीजिए ताकि बदलाव संभव हो सके।’ इस मौके पर पंजाब यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो. रेणु विग ने विश्वविद्यालय की 1947 से अब तक की यात्रा को याद किया और व्याख्यान ‘शृंखला की अहमियत बताई। उन्होंने कहा कि यह मंच शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा को जोड़ने का बेहतरीन अवसर देता है। कार्यक्रम का संचालन यूआईईटी निदेशक प्रो. सुखविंदर सिंह ने किया। भारतीय सांसदों के जनसंख्या एवं विकास संगठन के प्रतिनिधियों - अविनाश राय खन्ना, मनमोहन शर्मा और डॉ. प्रेम तलवार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक ज़िम्मेदारी को राष्ट्रीय विकास का आधार बताया। कार्यक्रम में डीयूआई प्रो. योजना रावत, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल की निदेशक प्रो. मीनाक्षी गोयल, रजिस्ट्रार प्रो. वाई.पी. वर्मा के अलावा छात्र, शोधकर्ता, शिक्षाविद, नीति-निर्माता और जन स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञ भी शामिल हुए।

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