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पंजाब की फिज़ाओं में उत्तराखंड की महक

राष्ट्रीय शिल्प मेले में लोक गायक राकेश खानवाल ने पेश किये गीत
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क्रीम पोडरा घेसिनी किले में मेरी निर्मला... और पारा भीड़े की बसंती छोरी रुमाझूंगा... जैसे गीत पेश कर लोक गायक राकेश खानवाल ने पंजाब की फिजाओं को उत्तराखंडी पहाड़ी संस्कृति को खूब महकाया। खानवाल ने अपनी खनकती और मखमली आवाज में पहाड़ी लोक गायन की स्वर लहरियों से फोक संगीत प्रेमियों को सम्मोहित कर दिया। उन्होंने उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला और चंडीगढ़ सांस्कृतिक कार्य विभाग के संयुक्त तत्वाधान में यहां कलाग्राम में चल रहे राष्ट्रीय शिल्प मेले में बृहस्पतिवार को अपनी आवाज और अंदाज से खूब तालियां बटोरी। खानवाल ने जै जै बदरीनाथ जय काशी केदार जै जै हिमालय पेशकश में बताया कि क्यों उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। इसके बाद उन्होंने धुरीडाना बुरुशी फुलरौली गैलपातला..., हिमुले हल्द्वारो की चेल हिमूली हिमूली..., लाली हो लाली हौसिया पथानी... और बेडुपा को बारूमासा नरेन काफल... जैसे हिट लोक गीतों से खूब रंग जमाया। उनके सुपर हिट रहे फोक सॉन्ग्स क्रीम पोडरा... और पारा भीड़े की बसंती छोरी... पेशकर दर्शकों को झूमते हुए वाहवाह करने पर मजबूर कर दिया।

लॉकडाउन में बना शिक्षक से सिंगर

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देश-विदेश में लोक गायन से उत्तराखंडी कल्चर की पहचान बढ़ाने वाले राकेश खानवाल ने कहा कि दरअसल, वे पहले शिक्षक थे। उससे पूर्व, बचपन में ही गुरुजी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और गाने के प्रति प्रेरित किया। वे स्थानीय स्तर पर गाने लगे। बाद में, शिक्षक बने तब भी रियाज और गायन जारी रखा। कोविड-19 के लॉकडाउन में उन्होंने लोक गायन को पूरी तरह प्रोफेशनल रूप से अपनाया और तराशा, तो एक शिक्षक सिंगर बन गया।

निदेशक फुरकान खान ने प्रतिभा पहचान दिया मौका

संगीत में एमए कर चुके खानवाल बताते हैं कि उनके चंडीगढ़ आने के बारे में जब यहां के लोगों को पता चला तो उनको यहां से सैकड़ों फैंस के मैसेज मिले। इन फैंस के प्यार ने मेरा हौसला दुगना कर दिया। उन्होंने बताया कि वे 4-5 बार चंडीगढ़ आ चुके हैं। अब उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला के निदेशक फुरकान खान और उनकी टीम ने उनकी प्रतिभा को पहचान कलाग्राम के बड़े मंच पर परफोरमेंस का मौका दिया है।

राजस्थान के कालबेलिया और तेलंगाना के मथुरी नृत्य का जमा रंग

कलाग्राम में चल रहे 15वें चंडीगढ़ राष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में गुरुवार को दिन के सत्र में राजस्थान के कालबेलिया डांस में नृत्यांगनाओं के डांस के साथ-साथ करतबों ने दर्शकों को खूब रोमांचित किया। वहीं, राजस्थान के ही चकरी और तेलंगाना के गोंड जनजाति के परंपरागत लोक नृत्य मथुरी ने दर्शकों की खूब दाद बटोरी। कार्यक्रम में पंजाब के आदिवासी समुदायों के सम्मी (शाहमुखी) डांस में नृतकों ने सामयीन को मंत्रमुग्ध कर दिया। इनके साथ ही मुरली राजस्थानी के लोक गायन ने राजस्थान की संस्कृति की खूबियां उकेरते हुए खूब तालियां बटोरी, उन्होंने अपने लोक गायन से श्रोताओं को बांधे रखा। तमाम फोक प्रस्तुतियों में पंजाब, खासकर ट्राईसिटी के बाशिंदों को देश के कई राज्यों की संस्कृति देखने का अवसर मिला है।

 

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