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श्रीलंका युद्ध का जांबाज, अपने देश में न्याय के लिए 24 साल तक संघर्ष

हवलदार तेजिंदर सिंह को आखिर मिली बैटल कैजुअल्टी पेंशन, 35 लाख रुपये बकाया जारी

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मोहाली में शुक्रवार को अपनी चोटें दिखाते एक्स सर्विसमैन तेजिंदर सिंह, साथ में लेफ्टिनेंट कर्नल सोही।
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सैनिक के लिए सबसे कठिन मोर्चा कभी दुश्मन नहीं होता, वह तब बन जाता है जब अपने ही देश में उसे अपने अधिकारों के लिए सालों तक लड़ना पड़े। हवलदार तेजिंदर सिंह की कहानी इसी कटु सच का जीवंत उदाहरण है। श्रीलंका में युद्ध के दौरान गोलियां झेलकर लौटे यह जवान 24 साल तक सिस्टम से जूझते रहे और अंत में उन्हें वह पेंशन मिली, जो उन्हें सेवानिवृत्ति के दिन ही मिल जानी चाहिए थी।

एक्स सर्विसमैन ग्रिवांसिज सेल के प्रधान लेफ्टिनेंट कर्नल एस.एस. सोही (सेवानिवृत्त) ने बताया कि तेजिंदर सिंह 1985 में 3 पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। वर्ष 1987 में वे भारतीय शांति दस्ता के साथ श्रीलंका भेजे गए, जहां लिट्टे उग्रवादियों के खिलाफ बेहद खतरनाक ऑपरेशन चल रहे थे। रोड ओपनिंग पार्टी के दौरान हुए घातक हमले में उनके तीन साथी शहीद हुए और तेजिंदर सिंह समेत दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके बाएं हाथ पर बर्स्ट, दाएं कंधे में गोली और पीठ में दो गोलियां तक लगीं। हालत गंभीर थी, इसलिए साथियों ने जोखिम उठाकर उन्हें हेलीकॉप्टर से मद्रास और फिर पूना मिलिट्री अस्पताल पहुंचाया।

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लंबे इलाज के बाद वे दोबारा ड्यूटी पर लौटे और 16 वर्ष सेवा देने के बाद 2001 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के समय उन्हें विकलांगता पेंशन देने का आश्वासन दिया गया था, पर यह फाइलों में अटक गया। 2015 में चंडीमंदिर सैन्य अस्पताल ने 50 प्रतिशत विकलांगता पेंशन की सिफारिश की, लेकिन यह भी लागू नहीं हुई।

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इसके बाद एक्स सर्विसमैन ग्रिवांसिज सेल ने वकील आर.एन. ओझा के माध्यम से मामला सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, चंडीमंदिर में उठाया। न्यायाधिकरण ने महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए कहा कि 2001 से 2006 तक 40 प्रतिशत और 2006 से वर्तमान तक 75 प्रतिशत बैटल कैजुअल्टी पेंशन दी जाए।

तेजिंदर सिंह को 35 लाख रुपये बकाया जारी हो चुके हैं और अब उन्हें लगभग 60 हजार 200 रुपये मासिक पेंशन मिल रही है। साथ ही वे पंजाब सरकार की 10 लाख रुपये की सहायता के भी पात्र हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल सोही ने कहा कि यह फैसला सिर्फ एक सैनिक की नहीं, बल्कि हर उस जवान की जीत है जो देश की रक्षा करते हुए अपनी जान जोखिम में डालता है और फिर भी अपने अधिकारों के लिए वर्षों तक लड़ने को मजबूर हो जाता है।

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