Skin Donation Awareness ‘एक परत त्वचा की... किसी की ज़िंदगी बन सकती है’
चंडीगढ़, 15 जुलाई (ट्रिन्यू)
कई बार इंसान की जली हुई त्वचा सिर्फ घाव नहीं छोड़ती, बल्कि उसकी पहचान, आत्मसम्मान और ज़िंदगी की उम्मीद भी छीन लेती है। लेकिन अगर समय पर किसी दान की गई त्वचा मिल जाए, तो वही घाव भर सकते हैं, ज़िंदगी लौट सकती है।
इसी गहरी सोच और मानवीय जरूरत को लेकर PGIMER के प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने वर्ल्ड प्लास्टिक सर्जरी डे की पूर्व संध्या पर त्वचा दान जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन का उद्देश्य सिर्फ चिकित्सा जानकारी देना नहीं था, बल्कि समाज को यह समझाना था कि त्वचा दान भी जीवनदान है, और इससे जले हुए मरीजों को न सिर्फ नया चेहरा मिलता है, बल्कि जीने का आत्मविश्वास भी।
त्वचा दान, अंगदान जितना ही ज़रूरी
संगोष्ठी का उद्घाटन डॉ. विपिन कौशल, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, PGIMER ने किया। उन्होंने कहा, “त्वचा दान कई बार गंभीर रूप से जले मरीजों के लिए जीवन और मृत्यु के बीच का फर्क तय करता है। इसकी उतनी ही ज़रूरत है जितनी अन्य अंगों की।”
चीफ नर्सिंग ऑफिसर जसपाल कौर ने बताया कि ICU और ट्रॉमा यूनिट में कार्यरत नर्सिंग अधिकारी अक्सर संभावित डोनर परिवार से सबसे पहले संपर्क में आते हैं। उनका सही संवाद एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
इलाज से पहले ‘संरक्षण’ देती है दान की त्वचा
विभागाध्यक्ष डॉ. अतुल पाराशर ने बताया कि जले हुए मरीजों के लिए त्वचा की जरूरत बहुत होती है। दान की गई त्वचा एक अस्थायी जैविक ड्रेसिंग की तरह काम करती है—घाव को ढकती है, इन्फेक्शन से बचाती है और मरीज को स्थायी इलाज तक समय देती है।
उन्होंने चिंता जताई कि भारत में स्किन डोनेशन को लेकर जागरूकता अभी भी बहुत सीमित है, जबकि हर साल हज़ारों जले मरीजों को इसकी ज़रूरत होती है।
250 से अधिक नर्सों को मिला प्रशिक्षण
डॉ. परमोद कुमार, स्किन बैंक के नोडल अधिकारी ने बताया कि संगोष्ठी में 250 से अधिक नर्सिंग स्टाफ ने भाग लिया।
स्किन बैंक कैसे काम करता है
- दान की गई त्वचा कैसे सुरक्षित रखी जाती है
- परिजनों से संवेदनशीलता से संवाद कैसे किया जाए
- समाज में स्किन डोनेशन की धारणा कैसे बदली जाए
कार्यक्रम में तकनीकी सत्र, लाइव डेमो और इंटरैक्टिव प्रशिक्षण से सहभागियों को स्किन डोनेशन की प्रक्रिया को करीब से समझाया गया।