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सिदक 2025 : वैश्विक सिख युवाओं को गढ़ता नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया स्थित खालसा सेंटर, मिरेकल वैली में आयोजित दो सप्ताह के ‘सिदक लीडरशिप प्रोग्राम’ का समापन 2 अगस्त को हुआ। इस बार आठ देशों से आए 64 युवा सिख प्रतिभागियों ने गुरमत मूल्यों, नेतृत्व कौशल और आत्मिक...
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कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया स्थित खालसा सेंटर, मिरेकल वैली में आयोजित दो सप्ताह के ‘सिदक लीडरशिप प्रोग्राम’ का समापन 2 अगस्त को हुआ। इस बार आठ देशों से आए 64 युवा सिख प्रतिभागियों ने गुरमत मूल्यों, नेतृत्व कौशल और आत्मिक अनुशासन से परिपूर्ण प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपने-अपने समुदायों में सेवा और जागरूकता के नए संकल्प के साथ वापसी की।

इस कार्यक्रम का आयोजन सिख रिसर्च इंस्टिट्यूट (SikhRI) द्वारा 20 जुलाई से 2 अगस्त तक किया गया। इस वर्ष की खास बात यह रही कि 15 प्रशिक्षकों में से 12 स्वयं सिदक के पूर्व छात्र थे, जो इसके सतत प्रभाव और नेतृत्व निर्माण की प्रक्रिया को दर्शाता है।

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SikhRI के सह-संस्थापक और सिदक के प्रणेता हरिंदर सिंह ने कहा  कि 2025 का सिदक हमारे लिए ऐतिहासिक रहा — पूर्व प्रतिभागी अब प्रशिक्षक बनकर लौट रहे हैं। यह केवल एक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक ऐसी विचारधारा है, जो अब स्वयं में नेतृत्व का स्वरूप बन चुकी है।

पाठ्यक्रम की विशेषताएं

बाणी (गुरु का ज्ञान)

तवारीख (इतिहास)

रहत (आचरण और जीवनशैली)

तीन प्रमुख कोर्स — सिखी 101, सिखी 201 और गुरबाणी 101 — प्रतिभागियों को आत्मिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से सिख जीवन-दर्शन से गहराई से जोड़ते हैं।

प्रतिभागियों के अनुभव

हर्निध कौर (सिखी 101): “अब मैं गुरमुखी को आत्मविश्वास के साथ पढ़ और समझ सकती हूँ। यह अनुभव मेरे लिए भाषा और आत्मा, दोनों से जुड़ाव का माध्यम बना।”

इंसाफ सिंह (सिखी 201): “सिदक ने मेरी सोच ही बदल दी — सिखी केवल एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की गहराई से जुड़ी एक संपूर्ण प्रणाली है।”

गुरविंदर सिंह (गुरबाणी 101): “गुरबाणी अब मेरे लिए एक जीवंत अनुभव है — केवल समझने योग्य नहीं, बल्कि जीने योग्य भी।”

कक्षा से परे की सीख

कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने केवल ग्रंथ और इतिहास का अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि तीरंदाजी, रॉक क्लाइम्बिंग और वॉलीबॉल जैसी गतिविधियों के ज़रिए टीमवर्क, धैर्य और नेतृत्व जैसे गुण भी विकसित किए।

कला, कविता और ध्यान आधारित सत्रों ने शबद को रंगों, ध्वनियों और विचारों के रूप में आत्मसात करने का माध्यम दिया।

प्रत्येक दिन की शुरुआत और समापन शबद-साधना, कीर्तन, पाठ और हुक्मनामे पर चिंतन के साथ होती थी। एबॉट्सफोर्ड स्थित ऐतिहासिक गुर सिख मंदिर की यात्रा ने प्रतिभागियों को सिख प्रवासी इतिहास से भी जोड़ा।

अब जब ये 64 सिदकर्स और 15 प्रशिक्षक अपने-अपने देशों को लौट चुके हैं, वे न केवल गुरमत ज्ञान, बल्कि नेतृत्व, सेवा और जागरूकता की ज्योति लेकर अपने समुदायों में सार्थक परिवर्तन लाने को तत्पर हैं।

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