जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 दिसंबर
पंजाब विश्वविद्यालय सीनेट की पहली बैठक नये साल की 8 तारीख को होने जा रही है हालांकि बैठक का एजेंडा अभी तक तय नहीं हो पाया है, लेकिन समझा जाता है कि सभी सदस्यों की शपथ के साथ कुछ महत्वपूर्ण आइटमें सीनेट के विचारार्थ लायी जा सकती हैं। अगले एक-दो दिन में बैठक के एजेंडे के बारे में कुछ चीजें स्पष्ट हो जाने की उम्मीद है। चांसलर और देश के उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू की ओर से 20 दिसंबर को 49 में से 35 सदस्यों की सूची को नोटिफाई कर दिया गया था जबकि फैकल्टी के छह और काॅलेज स्टाफ की 8 सीटों से जीतकर आने वाले सदस्यों के नाम अभी अधिसूचित नहीं किये गये हैं। आधी-अधूरी लिस्ट जारी करने पर गोयल ग्रुप के सदस्यों और कुछ पूर्व सीनेटरों ने नाराजगी जतायी है। पूटा ने तो बाकायदा चांसलर को इस संबंध में पत्र भी लिख दिया है और कहा है कि चांसलर जल्द से जल्द जीते हुए सदस्यों की सूची जारी कर दें।
पूटा प्रधान डॉ. मृत्युंजय कुमार ने कार्यकारिणी की ओर से लिखा है कि चुनाव जीतने वाले सदस्यों के नाम नोटिफाई न करना पीयू एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन है। पूटा ने चांसलर से गुहार लगायी है कि जब तक बचे 14 सीनेटरों के नाम नोटिफाई नहीं हो जाते तब तक सीनेट मीटिंग को टाल दिया जाये। प्रो. नवदीप गोयल ने कहा कि पहले वे देखेंगे कि किस आधार पर उनके नाम रोके गये।
इस बारे में चांसलर आफिस को भी लिखेंगे और यदि फिर भी कोई बात नहीं बनी तो कोर्ट जाने से भी नहीं हिचकिचायेंगे। साथ ही कहा कि अगर कोर्ट गये तो इस बार चासंलर को भी पार्टी बनायेंगे। फैकल्टी की छह सीटों पर हुए चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों प्रो. अंजू सूरी, गुरपाल संधू और प्रियतोष ने चांसलर को एक शिकायत भेजी थी और वोटर लिस्ट में खामियों का जिक्र किया था।
मामला कोर्ट में, चुनाव का सवाल ही नहीं : विक्रम नैयर
पीयू के रजिस्ट्रार विक्रम नैयर ने स्पष्ट किया कि काॅलेज के एसोसिएट व असिस्टेंट प्रोफेसर कांस्टीचुएंसी से तरुण घई का मामला अभी कोर्ट में है। चुनाव कराने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इस संबंध में लीगल व्याख्या और सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही पीयू प्रशासन कोई कदम उठायेगा।
सीनेटरों ने उठाये सवाल
चांसलर द्वारा दो फैकल्टी के 14 सदस्यों को नोटिफाई करने से रोके जाने पर कई सीनेटरों ने प्रतिक्रिया दी है। काॅलेज से चुनकर आये एक फैलो ने कहा कि वे खुद हैरान हैं, किस लॉजिक से नाम नोटिफाई करने से रोके। चल रहे सिस्टम से छेड़छाड़ करेंगे तो फिर बैकफायर भी होगा ही। उन्होंने कहा कि यह न तो लीगली सही है और ही नैतिक आधार पर उचित है। पीयू की ओर से भेजी राय पर दो हफ्ते में इस पर निर्णय लेने को कहा गया था। अब देखना ये होगा कि घई के नाम को रोक कर नौवें स्थान पर रहे डॉ. मनोज कुमार को विजेता माना जाता है या फिर मतों की गिनती दोबारा करायी जाती है या फिर इस पूरी कांस्टीचुएंसी के चुनाव ही दोबारा कराये जाते हैं।