जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 24 अक्तूबर
पंजाब विश्वविद्यालय सीनेट की रजिस्टर्ड ग्रेजुएट कांस्टीचुएंसी चुनाव में पिछले पांच बार से मतदान प्रतिशत लगातार गिरता ही जा रहा है। हैरत की बात ये है कि वोटर संख्या में तो लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन वोट डालने वालों की तादाद घट रही है। 2004 में कुल वोटर 161352 थे जबकि 2021 में 363027 हो गये, लेकिन वोट प्रतिशत 33.99 से गिरकर 14.57 रह गया, जिससे यही प्रतीत होता है कि केवल नये वोटर ने ही वोट किया।
2004 में हुए सीनेट (ग्रेजुएट) चुनाव में 15 सीटों के लिये 1.61 लाख मतों में से 48613 वोटरों ने मताधिकार का प्रयोग किया, जो कुल वोटों का 33.99 फीसदी रहा। अगले टर्म यानी 2008 में हुए चुनाव में वोटों की संख्या बढ़कर 2.32 लाख हो गई, लेकिन मतदान पहले के मुकाबले गिरकर 28.66 प्रतिशत रह गया। इस वर्ष महज 66450 लोगों ने वोट डाले। 2012 में अगले कार्यकाल के लिये हुए चुनाव में मतों की संख्या बढ़कर 2.85 लाख हो गई, लेकिन मत प्रतिशत करीब ढाई फीसद गिर कर 26.01 प्रतिशत रह गया। यही क्रम 2016 के चुनाव में भी जारी रहा। इस बार वोटों का आंकड़ा तो 3.20 लाख के पार हो गया, मगर वोट प्रतिशत 19.41 प्रतिशत रह गया। इस साल हुए चुनाव में कुल 3.63 लाख मतों में से महज 14.57 फीसदी वोटरों ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार 52893 वोटरों ने ही वोट डाले। रोचक बात ये है कि मतदाता सूची में पिछले करीब 50 साल से कोई संशोधन नहीं हुआ। नये वोटर तो जोड़ लिये जा रहे हैं, मगर जो अब इस दुनिया में नहीं रहे या फिर कोई विदेश चला गया, उनका नाम अब भी सूची में बरकरार है।
एक और उल्लेखनीय बात ये है कि कोटा वोट भी गिरकर 3015, 3462, 3950, 3375 से 2880 रह गया। सबसे कमाल की बात ये है कि कुल डाले गये वोट का एक फीसदी से कम लेकर भी सीनेटर चुनाव जीत गये। 2008 में यह जहां एक फीसद (1.09) था, वहीं 2012 में 0.84, 2016 में 0.999 और इस साल 0.699 प्रतिशत ही रह गया।
11 के बजाय 5 फैकल्टी करने का सुझाव
पंजाब यूनिवर्सिटी में कुल 11 फैकल्टी हैं, जिसमें प्रोफेसर और हेड एक्स-आफिशियो मेंबर होते हैं, जो सिंडिकेट के चुनाव में अपना वोट डालते हैं। साइंस से 89, आर्ट्स से 63, लैंग्वेज से 43, इंजीनियरिंग 29, कॉमर्स एंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन 26, लॉ से 20, एजुकेशन से 18, फार्मेसी 5, फाइन आर्ट्स 6, मेडिकल से 6 और डिजाइन से 6 फेलो आते हैं। नये चुनकर आये कुछ सीनेटरों ने चांसलर व कुलपति को सुझाव भेजा है कि पीयू में 11 के बजाय इन्हें मिलाकर पांच ही फैकल्टी रखी जायें। पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने कहा कि साइंस के साथ डेरी एंड एग्रीकल्चर (89) जोड़कर तीन सिंडिक चुने जाने चाहिए और इसी तरह से आर्ट्स, फाइन आर्ट्स और डिजाइन (69) को मिलाकर, एजुकेशन व लैंग्वेज (61) को भी एक कर देना चाहिए और इनसे तीन-तीन सिंडिक चुने जाने चाहिए। लॉ के साथ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन एंड कॉमर्स फैकल्टी (46) को मिलाने और मेडिकल एवं फार्मेसी एवं इंजीनियरिंग जैसे सभी पेशेवर फैकल्टी (40) को मिलाकर इनसे भी 3-3 सिंडिक चुने जा सकते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करने से चार साल के भीतर सीजेआई, दोनों डीपीआई (पदेन सदस्य) को छोड़कर सभी 90 फेलो को सिंडिकेट में आने का मौका मिल सकेगा। उनका कहना है कि इसी के साथ यह भी तय कर दिया जाना चाहिए कि कोई भी सीनेटर एक टर्म के भीतर दो बार से ज्यादा सिंडिकेट के लिये कन्सीडर नहीं किया जाना चाहिए।
सिंडिकेट चुनाव सबसे बड़ी चुनौती
पंजाब यूनिवर्सिटी में फिलहाल कोई सिंडिकेट नहीं है, लिहाजा सबसे पहले सिंडिकेट का गठन ही सीनेट की पहली चुनौती और प्राथमिकता भी होगी। अभी तक की परम्परा के अनुसार सभी सिंडिक 5-5 फैकल्टी आप्ट करते आये हैं, सिंडिकेट के पास ही फैकल्टी अलाटमेंट का अधिकार है, लेकिन अब चूंकि सिंडिकेट नहीं है, इसलिये यह कौन निर्धारित करेगा इस पर पीयू कैलेंडर और एक्ट साइलेंट हैं। हालांकि देखा जाये तो इसे लेकर थोड़ा पेंच भी फंस सकता है, सीनेटरों का एक धड़ा पहले ही सिंडिकेट के गठन में लीक से हटकर कोई फैसला लिये जाने पर कोर्ट जाने की बात कह चुका है। अब देखा जाये तो यह अधिकार केवल सीनेट के पास ही हो सकता है, क्योंकि जब पहली बार सिंडिकेट बनेगी होगी तब भी तो सीनेट को ही फैसला लेना पड़ा होगा। इसलिये अब एक बार फिर चांसलर के दखल से यह प्रावधान हो सकता है कि सीनेट किसे कितनी फैकल्टी अलाट करे।