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भारतीय अस्मिता के उन्नायक संत सूरदास : प्रो. अग्निहोत्री

पंचकूला, 2 मई (हप्र) अकादमी भवन पंचकूला में शुक्रवार को महाकवि संत सूरदास की 547 वीं जयंती मनाई गई। केंद्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक, अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री और अकादमी निदेशक डॉक्टर चंद्र...
पंचकूला में शुक्रवार को महाकवि संत सूरदास की 547 वीं जयंती मनाई गई। अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीपचंद अग्निहोत्री और अकादमी निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा महाकवि सूरदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए। -हप्र
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पंचकूला, 2 मई (हप्र)

अकादमी भवन पंचकूला में शुक्रवार को महाकवि संत सूरदास की 547 वीं जयंती मनाई गई। केंद्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक, अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री और अकादमी निदेशक डॉक्टर चंद्र त्रिखा द्वारा महाकवि सूरदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। जयंती समारोह में डॉक्टर कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि कश्मीर में लल्ल को जो सम्मान प्राप्त है वही हिंदी साहित्य में संत सूरदास को प्राप्त है। महाकवि सूरदास ने तत्कालीन जन मानस को निराशा की दलदल से निकालकर भारतीय अस्मिता को जगाने का प्रयत्न किया। इसी प्रकार गुरु गोविंद सिंह जी ने भी कृष्ण अवतार लिखा क्योंकि वह भी उस समय की एक मांग थी।

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केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष माधव कौशिक ने संबोधन में बताया कि महाकवि सूरदास के रचना संसार का 24 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉक्टर चंद्र त्रिखा ने महाकवि सूरदास के योगदान को विस्तार से रेखांकित करते हुए उसे आधुनिक संदर्भ में परिभाषित किया। उन्होंने बताया कि महाकवि सूरदास के साहित्य पर अभी भी नए संदर्भ में शोध की गहन आवश्यकता है। इस अवसर पर दयाल सिंह कॉलेज करनाल की डॉक्टर चंद्रकांत ने बताया कि जिस तरह कश्मीर में किसी भी मंगल कार्य की शुरुआत मनीषी लल्ल देह की वाणी से होती है इसी तरह उत्तर भारत के घर-घर में बालकृष्ण की स्थापना महाकवि सूरदास द्वारा की गई। इस अवसर पर गुरदास दास द्वारा संत कवि सूरदास के पदों का एक तारे पर गायन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजेंद्र कुमार द्वारा किया गया।

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