नवजात जीवन की सुरक्षा: PGI में सेप्सिस पर मंथन, विशेषज्ञ खोजेंगे जीवनरक्षक समाधान
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 मार्च
नवजात शिशुओं में संक्रमण से होने वाली मौतें भारत समेत पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई हैं। इस जानलेवा स्थिति से निपटने और नवजात जीवन की रक्षा के लिए PGIMER, चंडीगढ़ में 8-9 मार्च को नीओनेटल सेप्सिस पर एकल विषय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला में देशभर से आए विशेषज्ञ इस बीमारी की जटिलताओं, नए उपचारों और रोकथाम के उपायों पर गहराई से मंथन करेंगे।
नीओनेटल सेप्सिस : नवजातों के लिए अदृश्य संकट
हर साल लाखों नवजात इस गंभीर संक्रमण की चपेट में आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनियाभर में नवजात मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक सेप्सिस है। भारत में जन्म लेने वाले शिशुओं में से 50-80% मामले ऐसे होते हैं जिनमें संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं, जिससे इसका उपचार मुश्किल होता जा रहा है।
चिकित्सकों के अनुसार, समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं, कम वजन वाले नवजातों और ICU में भर्ती शिशुओं में इस संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है। उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने के कारण शरीर बैक्टीरिया और वायरस से मुकाबला नहीं कर पाता, जिससे स्थिति गंभीर हो जाती है।
PGIMER में जुटेंगे देशभर के विशेषज्ञ
PGIMER के एडवांस्ड पीडियाट्रिक सेंटर में आयोजित इस कार्यशाला का उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो. विवेक लाल करेंगे। आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. प्रवीण कुमार, आयोजन सचिव प्रो. सौरेभ दत्ता और सह-आयोजन सचिव डॉ. योगेंद्र कुमार हैं।
इस कार्यशाला में देशभर के नवजात विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ शामिल होंगे, जिनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
प्रो. रमेश अग्रवाल (एम्स, दिल्ली)
डॉ. एम. जीवा शंकर (दिल्ली)
डॉ. नंदकिशोर काबरा (मुंबई)
प्रो. पल्लब राय (सेवानिवृत्त विशेषज्ञ)
प्रो. अश्विनी सूद (मुलाना)
प्रो. दीपक चौला (चंडीगढ़)
प्रो. सुखशम जैन (चंडीगढ़)
डॉ. सुप्रीत खुराना (चंडीगढ़)
कार्यशाला में क्या होगा खास?
इस कार्यशाला को दो सत्रों में विभाजित किया गया है, जहां विशेषज्ञ नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान, उपचार पद्धतियों और एंटीबायोटिक उपयोग की नई रणनीतियों पर चर्चा करेंगे।
पहला दिन: नवजात सेप्सिस की पहचान और रोकथाम
- नवजात सेप्सिस की शुरुआती पहचान और निदान तकनीक
- संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक थेरेपी के नए तरीके
- सेप्सिस से बचाव के लिए अच्छे अस्पताल प्रोटोकॉल और हाइजीन उपाय
- मिनी-वर्कशॉप: एसेप्टिक नॉन-टच तकनीक से नवजात की देखभाल
दूसरा दिन: गंभीर संक्रमण और जटिल केस स्टडी
- सेप्सिस के विभिन्न प्रकार और खास अंगों (मस्तिष्क, फेफड़े, मूत्र मार्ग) में संक्रमण
- नवजातों में फंगल सेप्सिस और इसके उपचार
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध और इसके समाधान
- केस डिस्कशन: जटिल सेप्सिस मामलों का विश्लेषण
- नई दिशा की ओर कदम
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर नवजात सेप्सिस की पहचान और इलाज जल्द हो, तो हजारों नवजातों की जान बचाई जा सकती है। यह कार्यशाला डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक नई सीख और नवजात देखभाल में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला मंच साबित होगी।