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रोबोट-एडेड सर्जरी मरीजों के लिये नयी उम्मीद

फोर्टिस हॉस्पिटल में दो यूरोलॉजिकल कैंसर पीड़ितों का किया इलाज

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मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में यूरो-ऑन्कोलॉजी और रोबोटिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ. धर्मेंदर अग्रवाल जानकारी देते हुए। -ट्रिब्यून फोटो
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विवेक शर्मा/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 18 सितंबर

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फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली के यूरो-ऑन्कोलॉजी और रोबोटिक सर्जरी विभाग ने दुनिया के सबसे उन्नत चौथी पीढ़ी के रोबोट - दा विंची एक्सआई के माध्यम से जटिल यूरोलॉजिकल कैंसर से पीड़ित कई रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया है।

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फोर्टिस अस्पताल मोहाली में यूरो-ऑन्कोलॉजी और रोबोटिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ. धर्मेंदर अग्रवाल ने रोबोट एडेड सर्जरी के जरिए ऐसे दो मरीजों का इलाज किया है।

एक अन्य मामले में एक 56 वर्षीय मरीज, जिसने क्रोनिक किडनी रोग के कारण 2018 में रीनल ट्रांसप्लांट कराया था, उनकी ट्रांस्प्लांटेड किडनी में 3-सेमी का ट्यूमर पाया गया। उन्होंने फोर्टिस मोहाली में डॉ. अग्रवाल से संपर्क किया, जहां बाद की जांचों के बाद डॉ. अग्रवाल ने रोबोट-एडेड ट्रांसप्लांट किडनी पार्शियल नेफरेक्टोमी (किसी बीमारी के इलाज के लिए किडनी का हिस्सा निकालना) किया।

रोगी की गुर्दे की रक्तवाहिकाओं को डिसेक्ट किया गया और गुर्दे को सुरक्षित रखते हुए ट्यूमर को हटा दिया गया। सर्जरी के बाद उनका यूरिन आउटपुट अच्छा था और उन्हें ट्रांसफ़्यूज़न या डायलिसिस की आवश्यकता नहीं पड़ी। सर्जरी के 10 घंटे बाद मरीज ने चलना शुरू कर दिया और तीसरे दिन उन्हें हस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वह आज पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं।

दूसरे मामले में 62 वर्षीय एक मरीज को 10 दिनों से पेशाब में खून आ रहा था। बाद के मूल्यांकन पर, उनकी दाहिनी किडनी (14 सेमी) में एक बड़ा ट्यूमर पाया गया। साथ ही उनके गुर्दे की नस में थ्रोम्बस और एक बड़ी रक्त वाहिका इन्फीरियर वेना कावा भी थी। मरीज ने डॉ. अग्रवाल से संपर्क किया, जहां पीईटी स्कैन और अन्य चिकित्सा जांच के बाद, डॉ. अग्रवाल ने सुझाव दिया कि रोबोट-एडेड सर्जरी रोगी के इलाज का एक तरीका है।

डॉ. अग्रवाल के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने बड़े गुर्दे के घाव की आईवीसी थ्रोम्बेक्टोमी के साथ रोबोटिक रेडिकल नेफ्रेक्टोमी की। मामला जटिल था क्योंकि ट्यूमर में हृदय की ओर जाने वाली एक बड़ी नस शामिल थी, जिससे यह खतरा था कि ट्यूमर थ्रोम्बस उखड़ सकता था और हृदय में जा सकता था, जिससे कार्डियक अरेस्ट हो सकता था।

मामले पर चर्चा करते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा कि ऐसी किसी भी समस्या से बचने के लिए पूरे आईवीसी को डीसेक्टेड किया गया और तीन बिंदुओं पर नियंत्रण किया गया। सर्जरी के बाद मरीज की रिकवरी आसानी से हो गई और प्रक्रिया के 8 घंटे के भीतर वह चलने में सक्षम हो गए । उन्हें तीन दिन बाद हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।

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