चंडीगढ़, 20 अप्रैल (ट्रिन्यू)
हाल ही में विदेश में सूअर का दिल एक व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया गया था लेकिन यह सफल नहीं रहा। हमारे यहां ऐसी स्थिति नहीं है। पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टर ऐसे रिस्क से बचते हैं। वे केवल दुर्घटना के केसों में मौत होने या ब्रेन डेड की स्थिति में परिवार के लोगों से अंगदान की अपील करते हैं। हालांकि अभी भी ऑर्गन डोनेशन के लिए लोगों में झिझक है। हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए मरीज और मृतक के बीच कुछ समानताएं भी देखनी होती हैं। इनमें उम्र, कद, भार आदि शामिल होता है। मृतक के शरीर से अंग निकालने और मरीज को एनेस्थिसिया देने एवं ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया लगभग 10 घंटे की होती है।
पीजीआई में बुधवार को एडवांस कार्डिएक सेंटर में डॉक्टरों की टीम ने हार्ट ट्रांसप्लांटेशन को लेकर अहम जानकारियां दीं।
इस दौरान पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ एनेस्थिसिया एवं इंटेंसिव केयर के हेड डॉ. जीडी पुरी समेत पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की टीम मौजूद रही। पीजीआई में अब तक 7 हार्ट ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। पहला ट्रांसप्लांट 4 अगस्त, 2013 को किया गया था जबकि 21 मार्च, 2022 को 7वां ट्रांसप्लांट किया गया। 28 वर्षीय इस मरीज को आज डिस्चार्ज कर दिया गया है।
धूल-मिट्टी से बचना जरूरी
पीजीआई द्वारा अगस्त 2013 में एक मरीज का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया था। वह पीजीआई का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट केस था और कुछ ही महीनों में मरीज की मौत हो गई थी। एक मरीज ट्रांसप्लांट के बाद डिस्चार्ज होने से पहले ही मर गया था। एक मरीज 3 साल तक जिंदा रहा और एक 3 महीने तक। हालांकि पीजीआई डॉक्टरों के मुताबिक हार्ट ट्रांसप्लांट करवाने वाले को धूल-मिट्टी और बाकी संक्रमण से बचने और समय पर दवाइयां खानी ज़रूरी होती हैं।
पहले सांस फूलता था, अब ठीक
डिस्चार्ज हुए मरीज दीपक राय (28) ने बताया कि अब वह बिल्कुल ठीक है। वह बैंक में नौकरी करता है। डॉ. सौरभ मल्होत्रा ने बताया कि दीपक के हार्ट की मांसपेशियां कमजोर थीं। उसका सांस फूलता था। उसे ड्रग थैरेपी से फर्क नहीं पड़ा तो डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट किया। ट्रांसप्लांट से पहले कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। इनमें हेपेटाइटिस टेस्ट भी शामिल होता है। उसके केस में समय रहते डोनर मिल गया था। उसके ट्रांसप्लांट को एक महीने के लगभग हो गया है। अब वह पूरी तरह फिट है। एक वर्ष पहले वह पीजीआई में इलाज के लिए आया था।