Rights Over Rules लिपिकीय त्रुटि पर नहीं रुकेगा अब ‘दयालु’ योजना का हक
Rights Over Rules हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने बड़ा आदेश जारी करते हुए साफ़ किया है कि कल्याणकारी योजनाओं में ‘लिपिकीय त्रुटि’ के आधार पर पात्र परिवारों को लाभ से वंचित करना अब अस्वीकार्य होगा। आयोग के चेयरमैन न्यायमूर्ति ललित बत्रा ने कहा कि पारदर्शिता और कारणयुक्त आदेश (Speaking Order) ही कल्याणकारी प्रशासन की रीढ़ हैं। मनमाने ढंग से की गई अस्वीकृति संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित गरिमा के साथ जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
यह आदेश शिकायत संख्या 519/8/2025 के निस्तारण के दौरान आया। शिकायतकर्ता ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय परिवार सुरक्षा योजना (दयालु)’ के तहत वित्तीय सहायता के लिए आवेदन किया गया, लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र और परिवार पहचान पत्र (फैमिली आईडी) में आयु में अंतर होने के कारण दावा खारिज कर दिया गया।
शिकायतकर्ता ने इसे एक साधारण लिपिकीय त्रुटि बताते हुए संशोधित प्रमाण पत्र भी जमा कराया, मगर अधिकारियों ने पुनर्विचार से इंकार कर दिया। सुनवाई में आयोग ने इसे गंभीर मानते हुए जवाब मांगा। जांच में पाया गया कि दस्तावेज़ संशोधित होने के बावजूद आवेदन दोबारा नहीं खोला गया और मनमानी अस्वीकृति दर्ज कर दी गई। बाद में आयोग के हस्तक्षेप पर ही प्रक्रिया आगे बढ़ी।
नए दिशा-निर्देश
- संशोधित दस्तावेज़ मिलने पर आवेदन तुरंत दोबारा खोला जाए और बिना नई प्रक्रिया के लाभ सुनिश्चित हो।
- जिला स्तर पर शिकायत निवारण प्रकोष्ठ बने, जिसमें सामाजिक कल्याण विभाग और जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रार के प्रतिनिधि शामिल हों।
- हर शिकायत दर्ज कर समयबद्ध समाधान किया जाए और आवेदक को स्पष्ट मार्गदर्शन दिया जाए।
- सरकार योजनाओं से जुड़ी जन-जागरूकता गतिविधियाँ चलाए और सूचना सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शित करे।
क्यों अहम है आदेश
‘दयालु योजना’ का मक़सद आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों को सहारा देना है। मगर आयोग ने पाया कि व्यवहार में दयालुता की जगह लिपिकीय कठोरता आड़े आ रही थी। यह आदेश अब नज़ीर बनेगा और भविष्य में किसी भी पात्र परिवार को केवल कागज़ी विसंगति के कारण लाभ से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
“केवल यह लिख देना कि मृत्यु प्रमाण पत्र और परिवार आईडी में आयु मेल नहीं खाती, यह कारणयुक्त आदेश नहीं है। इस तरह की अस्वीकृति मनमानी है और कल्याणकारी योजना के उद्देश्य को विफल करती है।”
-जस्टिस ललित बत्रा, चेयरमैन, मानवाधिकार आयोग