पीयू में पुलिस और छात्रों में तू तू-मैं मैं, एंटी एफिडेविट फ्रंट ने चार घंटे बंद रखा गेट
एफिडेविट वापसी की मांग को लेकर एंटी एफिडेविट फ्रंट ने आज दोपहर दो बजे के करीब पंजाब यूनिवर्सिटी का गेट नंबर-2 बंद कर दिया। इसी को लेकर पुलिस और छात्रों के बीच गरमा-गर्मी और धक्का-मुक्की हो गयी। चार घंटे के...
एफिडेविट वापसी की मांग को लेकर एंटी एफिडेविट फ्रंट ने आज दोपहर दो बजे के करीब पंजाब यूनिवर्सिटी का गेट नंबर-2 बंद कर दिया। इसी को लेकर पुलिस और छात्रों के बीच गरमा-गर्मी और धक्का-मुक्की हो गयी। चार घंटे के बाद सांय छह बजे छात्रों ने खुद ही गेट खोल दिया। पीयू प्रशासन की ओर से कोई बड़ा अधिकारी छात्रों को मनाने नहीं आया हालांकि छात्रों को संदेश अवश्य भेजा गया कि एफिडेविट को वापस लेने पर पीयू प्रशासन कानूनी राय ले रहा है, कुछ तकनीकी प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसे वापस ले लिया जायेगा। पूर्व छात्र नेता अर्चित गर्ग ने हाईकोर्ट में एफिडेविट के खिलाफ याचिका दायर कर रखी है। बाद में छात्रों ने गेट नंबर दो से लौट कर कुलपति कार्यालय के सामने फिर से स्थायी धरना लगा दिया है। एसएफएस नेता संदीप ने कहा कि गेट बंद करना, एक दिनी एक्शन था अब वे वीसी आफिस के सामने मांगे पूरी होने के बाद ही उठेंगे। पिछले छह दिन से अनशन पर बैठे स्टूडेंट्स कौंसिल के सचिव अभिषेक डागर की हालत बिगड़ने लगी है। इसी को देखते हुए पुलिस ने उन्हें अस्पताल में दाखिल कराने के लिये हिरासत में लेना चाहा मगर छात्र पुलिस ने भिड़ गये। छात्रों का आरोप है कि कल देर सायं भी पुलिस अधिकारी शराब के नशे में आये थे और हिरासत में लेने की कोशिश की।
कौंसिल प्रधान गौरववीर सिंह सोहल की भी एंट्री : पिछले छह दिन से चले आ रहे आंदोलन में अब एबीवीपी की भी एंट्री हो गयी है। कौंसिल के प्रधान और एबीवीपी नेता गौरव वीर सिंह सोहल ने कहा कि वे एफिडेविट के खिलाफ हैं और लगातार इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के फरमान छात्र हित में नहीं है, ये एकदम लोकतंत्र के विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि वे भी अपने स्तर पर अलग से टेंट लगाकर पीयू प्रशासन के खिलाफ धरना देंगे। वहीं दूसरी ओर वामपंथी पार्टियां और सोपू सहित अन्य छात्र संगठन एबीवीपी को अपने साथ फ्रंट में नहीं चाहते हैं। उन्होंने एबीवीपी को धरना स्थल से दूर ही रहने को कहा है।
दिल्ली तक जाएगी पीयू की आवाज : दीपेंद्र हुड्डा
रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पीयू में छात्रों के अधिकारों पर हो रहे कथित हमलों को लेकर कहा कि छात्रों से एफिडेविट मांगना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है। विश्वविद्यालयों का भगवाकरण और छात्रों की आवाज को कुचलना किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हुड्डा सोमवार को पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंचे, जहां उन्होंने स्टूडेंट्स कौंसिल सचिव अभिषेक डागर से मुलाकात की, जो पिछले छह दिनों से भूख हड़ताल पर हैं। पत्रकारों से बातचीत में दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि विवि प्रशासन द्वारा छात्रों से एंटी-प्रोटेस्ट एफिडेविट लेना एक अलोकतांत्रिक और दमनकारी कदम है। उन्होंने कहा कि यह एफिडेविट छात्रों की आज़ादी और अभिव्यक्ति की ताकत को छीनने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि सीनेट भंग करना, छात्रों की चुनी हुई आवाज़ों को नकारना और एसओपी के नाम पर विरोध पर रोक लगाना, ये सब एक विचारधारा विशेष के विस्तार का हिस्सा प्रतीत होता है। दीपेंद्र ने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने रवैया नहीं बदला तो वह स्वयं इस मुद्दे को लोकसभा के शीतकालीन सत्र में उठाएंगे। उन्होंने कहा कि छात्रों की आवाज चंडीगढ़ तक नहीं रुकेगी, अब यह दिल्ली तक जाएगी। संसद में इसकी गूंज पूरे देश को सुनाई देगी। दीपेंद्र ने कुलपति प्रो़ रेणु विग से भी मुलाकात की। उन्होंने कहा कि संवाद ही एकमात्र रास्ता है जिससे यह गतिरोध खत्म हो सकता है। वीसी ने छात्रों से बातचीत करने और लीगल ओपिनियन लेकर सकारात्मक समाधान निकालने का आश्वासन दिया है।
राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोग भी पहुंचे
धरने को पीएसयू (ललकार) की सारा, एस.एफ.एस. के संदीप, सत्थ के दर्श, पंजाबनामा के गगन, रिमलजोत, ए.एस.ए.पी. के विक्की धनोआ, ए.आई.एस.ए. के अजय तथा एस.ओ.आई. के हरकमल सिंह सहित कई छात्र नेताओं ने संबोधित किया। वक्ताओं ने सेनेट को भंग करने के फैसले को “गैर-लोकतांत्रिक और असंवैधानिक कदम” बताते हुए पंजाब विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर सीधा हमला करार दिया। छात्रों के समर्थन में कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी एकजुट हुए। इनमें अधिवक्ता अमरजीत, फरीदकोट के सांसद सरबजीत खालसा, किसान मजदूर मोर्चा के गुरमनीत सिंह मंगट, क्रांति किसान यूनियन के अवतार मइहमा, प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा और बसपा (अ) के राज्य अध्यक्ष अवतार सिंह करीमपुरी शामिल थे। सभी वक्ताओं ने कहा कि सेनेट को भंग करने का निर्णय पंजाब विश्वविद्यालय के केन्द्रीकरण और निजीकरण की दिशा में एक खतरनाक कदम है, जिससे पंजाब के ऐतिहासिक अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है।

