पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा आज ‘प्रेमचंद जयंती’ के उपलक्ष्य पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. यजवेन्द्र पाल वर्मा, वक्ता के रूप में प्रो. चमन लाल गुप्त (पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला) और लल्लन सिंह बघेल, हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार, प्रो. बैजनाथ प्रसाद, प्रो. गुरमीत सिंह, प्रो. विनोद कुमार, प्रो. मोहनलाल जाट, डॉ. पंकज श्रीवास्तव, डॉ. राजेश, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। प्रेमचंद के जीवन एवं लेखन और उनके विचारों पर प्रकाश डालने के लिए स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष से अर्चना, प्रीति, ज्योति यादव, विभाग में फ़िजी से हिंदी सीखने आए स्वनील संदीप कुमार ने अपनी प्रस्तुति दी।
तत्पश्चात प्रो. चमन लाल गुप्त ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद एक साहित्यकार ही नहीं कथासाहित्य का एक पैमाना हैं। उनकी छाया में कथासाहित्य के सभी युग चलते हैं। साहित्य को मनोरंजन से ऊपर उठाकर समाज से जोड़ने का कार्य यदि किसी ने किया तो वह प्रेमचंद ही हैं। प्रेमचंद को पढ़ना अतीत को पढ़ना नहीं वर्तमान को पढ़ना है।
रजिस्ट्रार प्रो. यजवेन्द्र पाल वर्मा ने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद समाज को आगे बढ़ाने और उसे जागृत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसका उदाहरण यह है कि जब अंग्रेजों ने उनके लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया तो उन्होंने निराश न होकर अपना नाम धनपत राय से बदलकर प्रेमचंद रख लिया। लल्लन सिंह बघेल ने प्रेमचंद के समय और समाज की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि प्रेमचंद एक परिवर्तनकारी चिंतक हैं। अध्यक्षीय टिप्पणी में प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि प्रेमचंद यदि आज भी प्रासंगिक हैं तो इसका कारण यह है कि जो समस्याएं तत्कालीन समाज में व्याप्त थीं वे आज भी उसी तरह से खड़ी हैं। प्रेमचंद संवेदना के साथ विमर्श के भी लेखक हैं। उन्हें किसी एक चश्मे से देखना उनके साथ न्याय नहीं होगा।
प्रेमचंद जयंती पर साहित्यिक कार्यक्रम
मनीमाजरा (चंडीगढ़) (हप्र) : मेहर चंद महाजन डीएवी महिला महाविद्यालय, चंडीगढ़ के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यार्थियों ने प्रेमचंद और उनके साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसमें उन्होंने प्रेमचंद के यथार्थ, सामाजिक चेतना, नारी संवेदना और दलित विमर्श पर आधारित रचनाओं की चर्चा की। विद्यार्थियों ने प्रेमचंद के योगदान को वर्तमान संदर्भों से जोड़ते हुए उनकी प्रासंगिकता को उजागर किया। इस अवसर पर एक पुस्तक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें प्रेमचंद की प्रमुख रचनाओं गोदान, गबन, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दारोगा आदि की प्रतियां प्रदर्शित की गईं। यह प्रदर्शनी विद्यार्थियों के लिए साहित्यिक जानकारी का समृद्ध स्रोत बनी। कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित प्रेमचंद की कहानी ‘सद्गति’ फि़ल्म का प्रदर्शन । इस फि़ल्म के माध्यम से विद्यार्थियों को प्रेमचंद की संवेदनशील दृष्टि और सामाजिक यथार्थ को देखने‑समझने का अवसर मिला। कॉलेज प्राचार्या नीना शर्मा ने स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन विद्यार्थियों को हमारे साहित्यकारों की सोच, संघर्ष और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को समझने का अवसर देते हैं।