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आाखिर 18 साल बाद बनकर तैयार हुआ पिंजौर-सुखोमाजरी बाईपास

करीब 18 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार पिंजौर-सुखोमाजरी बाईपास बनकर तैयार हो गया है। अब इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया है। शिवालिक विकास मंच के प्रदेशाध्यक्ष एवं कांग्रेस नेता विजय बंसल एडवोकेट ने बताया कि...
पिंजौर-सुखोमाजरी बाईपास पर चलते वाहन। -निस
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करीब 18 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार पिंजौर-सुखोमाजरी बाईपास बनकर तैयार हो गया है। अब इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया है। शिवालिक विकास मंच के प्रदेशाध्यक्ष एवं कांग्रेस नेता विजय बंसल एडवोकेट ने बताया कि बाईपास के बनने से न केवल पिंजौर वासियों को ट्रैफिक जाम से निजात मिली है बल्कि हिमाचल के बद्दी औद्योगिक क्षेत्र जाने वाले वाहनों को भी अधिक समय नहीं लगेगा। अब बद्दी का सारा ट्रैफिक बाईपास से होकर निकलने लगा है। पिंजौर में अब केवल अब लोकल वाहन ही दिखते हैं। इससे पिंजौर, कालका सहित दून क्षेत्र वासियों को भी राहत

मिली है।

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बंसल ने सरकार से रात के समय अंधेरे में डूबने वाले लगभग 8 किलोमीटर लंबे बाईपास पर स्ट्रीट लाइटें लगाने की मांग की है क्योंकि यह बाईपास वन क्षेत्र में आता है, इसलिए अंधेरा रहता है और यहां लूटपाट जैसे अपराध भी हुए हैं। साथ ही गांव सुखोमाजरी और बसौला एरोड्रम के सामने जाकर पिंजौर-नालागढ़ हाईवे पर जाकर मिलने वाले इस बाईपास के प्वाइंट पर ट्रैफिक लाइटें या दुर्घटना रोकने के लिए टी प्वाइंट बनाने या अन्य उपाय करने की मांग की है। क्योंकि पिंजौर, कालका, सोलन, शिमला आदि की ओर से नालागढ़ जाने वाले वाहनों के लिए यह प्वाइंट दुर्घटना का कारण बन सकता है।

विजय बंसल ने बताया कि शिवालिक मंच के अथक प्रयासों से 7.70 किलोमीटर लंबे बाईपास निर्माण की प्रक्रिया वर्ष 2007 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा आरंभ की गई थी। तब एमरजेंसी क्लॉज के तहत 232 एकड़ भूमि अधिग्रहण कर बाईपास निर्माण कार्य हरियाणा शहरी विकास प्रधिकरण (हूडा) को दिया गया था। इसके लिए लगभग 35 करोड़ की राशि भी जारी की थी लेकिन हूडा के पास बड़े पुल, अंडर निर्माण के लिए संशाधनों की कमी होने के चलते वर्ष 2011 में एनएचएआई को निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। कई अड़चनों के बाद देरी से एनएच हरियाणा द्वारा इसका काम आरंभ किया गया लेकिन सूरजपुर रेलवे अंडरपास निर्माण के लिए रेलवे की मंजूरी मिलने में ज्यादा देरी हुई। विजय बंसल ने 13 अप्रैल 2022 को केंद्रीय रेल मंत्री, केंद्रीय परिवहन मंत्री, रेलवे के डीआरएम को लीगल नोटिस भेजा था जिसके बाद उत्तर रेलवे के उप मुख्य इंजीनियर ने निर्माण की मंजूरी दी थी।

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