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Pinjore अवैध कॉलोनियों पर अंकुश नहीं, परेशानी में नप क्षेत्र के बाशिंदे

गांवों में धड़ल्ले से काटी जा रही कॉलोनियां
प्रतीकात्मक चित्र
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Registry Ban Crisis अवैध कॉलोनियों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने पांच साल पहले नगर परिषद पिंजौर-कालका क्षेत्र में अर्बन एक्ट की धारा 7ए लागू कर जमीन-मकान की रजिस्ट्रियां बंद कर दी थीं। मंशा साफ थी कि अनधिकृत बस्तियों को रोकना और भविष्य में नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने से बचाना। लेकिन सवाल यह है कि जब शहरी क्षेत्र में रजिस्ट्री पर रोक है तो ग्रामीण इलाकों में अवैध कॉलोनियां क्यों धड़ल्ले से पनप रही हैं?

दरअसल, फैसले का असर एकतरफा हुआ। नगर परिषद क्षेत्र में जमीन या मकान बेचने-खरीदने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया, जबकि इससे लगे गांवों में कॉलोनाइजर खुलेआम प्लॉटिंग कर रहे हैं। डीटीपी विभाग की कार्रवाई केवल औपचारिक साबित हो रही है। कभी चारदीवारी गिरा दी, कभी डीपीसी तोड़ दी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वहीं पर नई कालोनी खड़ी हो जाती है।

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इस पाबंदी का सबसे बड़ा बोझ उन लोगों पर पड़ा है जिन्होंने पहले से कानूनी तरीके से अपने प्लॉट और मकान खरीदे थे। स्थानीय निवासी पंकज, कमल, विक्की, रिशव और मुस्कान बताते हैं कि अब वे अपनी संपत्ति बेचने में असमर्थ हैं। रियल एस्टेट कारोबार ठप है, खरीद-फरोख्त रुक गई है और लोगों की रोजमर्रा की जरूरतें तक अधर में लटक गई हैं।

फैसला आधा-अधूरा लागू

लोगों का आरोप है कि सरकार का फैसला आधा-अधूरा है। यदि नीयत वास्तव में अवैध कॉलोनियों पर रोक लगाने की थी तो ग्रामीण क्षेत्रों पर भी वही सख्ती लागू होनी चाहिए थी। वरना यह पाबंदी केवल नगर परिषद वासियों के लिए सजा साबित हो रही है, जबकि अवैध कॉलोनाइज़र गांवों में फल-फूल रहे हैं। अब लोगों की मांग साफ है या तो शहरी क्षेत्र में रजिस्ट्री प्रक्रिया तुरंत शुरू की जाए या फिर ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध कॉलोनी बनाने वालों पर कठोर कार्रवाई हो।

 

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