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PGIVAC 2025 : AI से लेकर कोडन तकनीक तक... वैक्सीन विकास की नई क्रांति पर PGI में मंथन

PGIVAC 2025 के तीसरे दिन ट्रायल की नैतिकता, नियम और तकनीकी भविष्य पर विशेषज्ञों ने रखे विचार
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ट्रिब्यून न्यूज सर्विस

चंडीगढ़, 10 जून

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क्या महामारी की अगली लहर से 100 दिन में निपटा जा सकता है? इसी सवाल के जवाब में बुधवार को PGIMER, चंडीगढ़ में चल रहे PGIVAC 2025 के तीसरे दिन देश-विदेश के वैक्सीन विशेषज्ञों ने गहन मंथन किया। कोर्स निदेशक डॉ. मधु गुप्ता ने दिन की शुरुआत बीते सत्र की संक्षिप्त समीक्षा से की और फिर मंच सौंपा उन विशेषज्ञों को, जिन्होंने वैक्सीन ट्रायल की बारीकियों से लेकर भविष्य की तैयारियों तक सभी पहलुओं को सामने रखा।

ट्रायल की नैतिक कसौटी और भारत की नियामकीय भूमिका

डॉ. नुसरत शफीक ने वैक्सीन परीक्षणों में नैतिक चिंताओं को रेखांकित किया- जैसे प्रतिभागियों की सुरक्षा, सूचित सहमति और ट्रायल में पारदर्शिता। इसके बाद प्रस्तुत एक केस स्टडी ने इन नैतिक जटिलताओं को व्यवहारिक दृष्टिकोण से समझाया। डॉ. रुबिना बोस, डिप्टी ड्रग कंट्रोलर (CDSCO), ने भारत के नियामकीय ढांचे की व्याख्या की कैसे किसी वैक्सीन को परीक्षण की अनुमति से लेकर लाइसेंस मिलने तक किन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।

ट्रायल डिजाइन की वैज्ञानिक बुनियाद

एमे्स (EMMES) की मारिया अब्राहम ने सांख्यिकीय दृष्टिकोण से ट्रायल डिज़ाइन की व्यावहारिक जानकारी दी- सैंपल साइज कैलकुलेशन से लेकर डेटा विश्लेषण तक। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक मजबूत सांख्यिकीय आधार के बिना कोई भी ट्रायल विश्वसनीय नहीं हो सकता।

हर चरण पर गहराई से चर्चा: फेज I से फेज IV

भारत बायोटेक के डॉ. बद्री नारायण पटनायक ने फेज I और II ट्रायल्स की प्रक्रिया, डिज़ाइन, प्रतिभागी चयन और नतीजों के मूल्यांकन पर आधारित अभ्यास कराया। SARS-CoV-2 को केस स्टडी बनाकर प्रतिभागियों को ट्रायल की बारीकियां सिखाईं।

दोपहर बाद डॉ. तेम्सुनारो रोंगसेन चंदोला ने फेज III ट्रायल्स में रोटावायरस वैक्सीन के उदाहरण से बड़ी आबादी पर परीक्षण और उसकी चुनौतियों को सामने रखा। इसके बाद फेज IV ट्रायल्स में टीकों के लाइसेंस मिलने के बाद की निगरानी (पोस्ट लाइसेंस सर्विलांस) और फार्माकोविजिलेंस की जरूरतों को समझाया गया।

भविष्य की महामारी और AI आधारित वैक्सीन

समापन सत्र में चर्चा का फोकस भविष्य की ओर था-ऐसी तकनीकों पर जो अगली महामारी से निपटने के लिए 100 दिन के भीतर टीका तैयार करने की क्षमता रखें। डॉ. जॉन क्लेमेंस (IVI, साउथ कोरिया) ने हर्ड इम्युनिटी और वैक्सीन एफिकेसी को वैज्ञानिक रूप से परखा। सौरभ सोबती (CEPI) ने प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजीज को महामारी की त्वरित प्रतिक्रिया का मुख्य उपकरण बताया।

डॉ. राजू सुनागर ने कोडन डीऑप्टिमाइजेशन टेक्नोलॉजी की उपयोगिता बताई जो वायरस के जेनेटिक कोड को इस तरह से रूपांतरित करती है कि वह कमजोर होकर भी इम्यून प्रतिक्रिया दे सके। वहीं डॉ. नित्या गोगटे, सदस्य NTAGI, ने ह्यूमन चैलेंज ट्रायल्स की नैतिकता और मानव हित के संतुलन पर सारगर्भित चर्चा की।

ज्ञान से नीति तक का सेतु

दिन का समापन प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया और डॉ. मधु गुप्ता द्वारा फीडबैक सत्र से हुआ। PGIVAC 2025 यह साबित कर रहा है कि जब विज्ञान, नीति और नवाचार एक साथ कदम बढ़ाते हैं, तो वैक्सीन पारिस्थितिकी तंत्र न केवल मजबूत होता है, बल्कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने में भी अग्रणी बनता है।

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