PGI NCIASP 2025 पीजीआई में संस्कृति, समाज और मानसिक स्वास्थ्य पर गहन विमर्श
PGI NCIASP 2025 पीजीआई चंडीगढ़ में जारी नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन एसोसिएशन फॉर सोशल साइकियाट्री (एनसीआईएएसपी 2025) का दूसरा दिन ज्ञान, बहस और नए विचारों से सराबोर रहा। अकादमिक सत्रों से लेकर क्विज और बहस तक, हर मंच पर सामाजिक मनोचिकित्सा के बदलते स्वरूप की गूंज सुनाई दी।
सुबह का आगाज़ संगोष्ठियों से हुआ, जिनमें समुदाय आधारित मानसिक स्वास्थ्य रणनीतियां, मनो-सामाजिक हस्तक्षेप, प्रवासन, शहरी तनाव और सामाजिक बदलावों का मानसिक स्वास्थ्य पर असर जैसे विषयों पर चर्चा हुई। विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे विविध देश में इलाज के लिए ‘संदर्भ-संवेदी मॉडल’ बेहद जरूरी हैं।
सांस्कृतिक मनोचिकित्सा की झलक
दिन का बड़ा आकर्षण रहा प्रो. स्वरनप्रीत सिंह का प्लेनरी व्याख्यान। उन्होंने बताया कि कैसे संस्कृति मानसिक रोगों की पहचान, उनकी अभिव्यक्ति और उपचार की दिशा तय करती है। उनका मानना था कि मनोचिकित्सा को मरीजों के सामाजिक-सांस्कृतिक अनुभवों से काटकर नहीं देखा जा सकता।
सामाजिक निर्धारक और मानसिक स्वास्थ्य
डॉ. मनोज कुमार के प्लेनरी सत्र ने सभी का ध्यान गरीबी, शिक्षा, लैंगिक असमानता और संसाधनों की कमी की ओर खींचा। उन्होंने कहा, ‘अगर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को वास्तव में मजबूत करना है तो इसे क्लिनिक से बाहर निकालकर समाज की गहरी असमानताओं से भी जोड़ना होगा।’
वेंकोबा राव ऑरेशन
सम्मेलन का प्रतिष्ठित वेंकोबा राव ऑरेशन प्रो. आर.सी. जिलोहा ने दिया। विषय था – ‘पोस्ट-पैंडेमिक वर्ल्ड में मानसिक स्वास्थ्य’। उन्होंने कोविड-19 के मनोसामाजिक प्रभावों पर चर्चा की और बताया कि महामारी ने किस तरह लचीलापन, नीति और सेवाओं में नई सीख दी। उनका व्याख्यान जहां एक ओर चिंतनशील था, वहीं भविष्य के लिए आशा की दिशा भी दिखाता था।
युवा शोधकर्ताओं का मंच
दोपहर का समय युवा शोधकर्ताओं के नाम रहा। अवॉर्ड पेपर सत्र में उन्होंने अपने अभिनव कार्य प्रस्तुत किए और विशेषज्ञ पैनल से सराहना पाई। इससे न केवल नई सोच को जगह मिली बल्कि भविष्य के नेतृत्व की झलक भी नजर आई।
बहस और क्विज से बनी बात
गंभीर सत्रों के बीच बहस और क्विज ने सम्मेलन को जीवंत बना दिया। बहस में जहां विचारों की टकराहट हुई, वहीं क्विज ने प्रतिस्पर्धा के साथ दोस्ताना माहौल भी बनाया।
दूसरे दिन की ऊर्जा और विविधता ने यह साफ कर दिया कि एनसीआईएएसपी 2025 सिर्फ एक अकादमिक मंच नहीं, बल्कि ऐसा संगम है जहां गंभीर विमर्श, नई पीढ़ी की भागीदारी और सांस्कृतिक-सामाजिक संदर्भों को बराबर महत्व दिया जा रहा है। यह सम्मेलन सामाजिक मनोचिकित्सा के भविष्य की दिशा तय करने वाला साबित हो रहा है।