PGI Chandigarh : नाक से निकाला दिमाग का ट्यूमर, 2 साल की बच्ची को दी नई जिंदगी
जब उत्तर प्रदेश के अमरोहा से आई दो साल की बच्ची पीजीआई के न्यूरोसर्जरी विभाग में पहुंची, तब वह आंखें खोलकर भी कुछ नहीं देख पा रही थी। चेहरे पर मासूमियत थी, लेकिन नजरों में डर और असहायता... और मां-बाप की आंखों में सिर्फ एक सवाल- “डॉक्टर साहब, क्या हमारी बच्ची फिर से देख पाएगी?”
इस सवाल का जवाब पीजीआई के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन प्रो. एस.एस. डंडापानी और उनकी टीम ने कुछ ही दिनों में दे दिया—‘ना सिर्फ देख पाएगी, बल्कि पूरी तरह ठीक होगी।’ और यह कोई आसान काम नहीं था। बच्ची के दिमाग में 4.5 सेंटीमीटर का कैल्सीफाइड ट्यूमर था, जो उसकी ऑप्टिक नर्व और हार्मोनल सिस्टम को बुरी तरह दबा रहा था। इतनी कम उम्र में ऐसी सर्जरी न भारत में पहले हुई थी, न दुनिया में दूसरी बार।
सिर नहीं खोला, नाक से पहुंचा ऑपरेशन कॉरिडोर
आमतौर पर ऐसे ट्यूमर के लिए खोपड़ी खोलनी पड़ती है, लेकिन बच्ची की नाजुक हड्डियों और नन्हे शरीर को देखकर टीम ने जोखिम भरा लेकिन बेहद सटीक फैसला लिया- नाक के रास्ते एंडोस्कोपिक स्कल-बेस सर्जरी का। यह वही तकनीक है, जो दुनियाभर में केवल कुछ गिने-चुने मेडिकल सेंटर्स में बेहद चुनिंदा मामलों में की जाती है।
ऐसे किया गया ऑपरेशन
पहले सीटी एंजियोग्राफी और नेविगेशन सिस्टम से पूरे ब्रेन की जियोमैपिंग की गई। ENT विशेषज्ञ डॉ. रिजुनीता ने नाक के भीतर से रास्ता तैयार किया। प्रो. डंडापानी ने बेहद बारीकी से ड्रिलिंग कर ट्यूमर तक पहुंच बनाई। करीब 6 घंटे चले इस ऑपरेशन में केवल 250 एमएल खून की हानि हुई। ट्यूमर को ऑप्टिक नर्व और हाइपोथैलेमस से अलग करते हुए पूरी तरह हटा दिया गया। फिर नाक के अंदर से फ्लैप, फेशिया और बायोलॉजिकल गोंद से मार्ग बंद किया गया ताकि ब्रेन फ्लूइड लीक न हो।
अब बच्ची देख रही है, खेल रही है
ऑपरेशन के 10 दिन बाद की तस्वीरें डॉक्टरों की टीम के लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं थीं। बच्ची अब अपनी मां को पहचान रही है, खिलखिला रही है और खुद से खड़ी हो रही है। पोस्ट-सर्जरी स्कैन में ट्यूमर का कोई अंश नहीं बचा। न संक्रमण, न जटिलता। सब कुछ योजना के अनुसार।
इस ऐतिहासिक ऑपरेशन की टीम में शामिल थे:
प्रो. एस.एस. डंडापानी – न्यूरोसर्जरी विभाग प्रमुख
डॉ. रिजुनीता – ENT विशेषज्ञ
डॉ. शिव सोनी, डॉ. सुषांत, डॉ. धवल, डॉ. संजोग – सहायक सदस्य
पहले भी रच चुके हैं इतिहास
प्रो. डंडापानी इससे पहले भी 16 महीने की बच्ची में 3.4 सेमी का ट्यूमर इसी तकनीक से निकाल चुके हैं। वह केस दुनिया का पहला था, और अब 2 साल की बच्ची में 4.5 सेमी का ट्यूमर निकालना दुनिया का दूसरा मामला बन गया है- पहला स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) में हुआ था।