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Period Awareness जब बात खुलकर कहने की हो: चंडीगढ़ कॉलेज में मासिक धर्म पर टूटी चुप्पी

मासिक धर्म जैसे विषयों पर अक्सर चुप्पी साध ली जाती है — घर में, स्कूल में और समाज में भी। लेकिन मंगलवार को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित  पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज (PGGC-11)  में यह चुप्पी टूटी और खुलकर बोली गई...
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मासिक धर्म जैसे विषयों पर अक्सर चुप्पी साध ली जाती है — घर में, स्कूल में और समाज में भी। लेकिन मंगलवार को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित  पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज (PGGC-11)  में यह चुप्पी टूटी और खुलकर बोली गई बातों ने एक नई शुरुआत की।

कॉलेज परिसर में आयोजित मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता अभियान ने एक सामाजिक बदलाव की नींव रखी। करीब 350 छात्राओं ने इसमें भाग लिया और पहली बार कॉलेज के मंच से 'पीरियड्स' जैसे शब्द खुलकर बोले और सुने गए-बिना हिचक, बिना संकोच।

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इस पहल का संयोजन डॉ. सोनिया कुमार ने किया, जबकि शिक्षिका दीपशिखा के संरक्षण में कार्यक्रम को गरिमा और दिशा मिली। यह आयोजन यूनिचार्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और विंग्स ब्रांड एक्टिवेशन इंडिया प्रा. लि. के संयुक्त प्रयास से संभव हो सका।

छात्राओं को  सैनिटरी नैपकिन के नि:शुल्क सैंपल वितरित किए गए। लेकिन यह आयोजन केवल उत्पाद वितरण तक सीमित नहीं था। असल बदलाव उस माहौल में था, जिसमें मासिक धर्म को न शर्म का विषय माना गया, न ही फुसफुसाहट में निपटाया गया।

कॉलेज के एक कोने में विशेष रूप से सजाया गया गज़ेबो टेंट, लाल कालीन, सुव्यवस्थित कुर्सियाँ और विचारों की गर्माहट  सबने मिलकर इसे एक स्मरणीय अनुभव बना दिया। छात्राएं आपस में बात कर रही थीं, सवाल पूछ रही थीं, और सबसे बड़ी बात  सुन भी रही थीं।

कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने मासिक धर्म से जुड़ी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक पहलुओं पर सरल और वैज्ञानिक जानकारी साझा की। छात्राओं ने सैनिटरी उत्पादों के सुरक्षित उपयोग की अहमियत समझी और मासिक धर्म से जुड़े कई मिथकों पर सवाल उठाए।

इस जागरूकता मुहिम ने न केवल जानकारी दी, बल्कि वह मंच भी प्रदान किया जिसकी कमी लंबे समय से महसूस की जा रही थी -एक ऐसा मंच, जहाँ किशोरियां अपनी बात कह सकें, अनुभव साझा कर सकें और मासिक धर्म को लेकर उपजने वाली झिझक को पीछे छोड़ सकें।

कॉलेज प्रशासन ने इसे 'स्वस्थ समाज की ओर एक छोटा लेकिन निर्णायक कदम' करार दिया। यह आयोजन न केवल एक दिन की गतिविधि था, बल्कि सोच में बदलाव की शुरुआत थी — उस सोच की, जिसमें मासिक धर्म को एक सामान्य जैविक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, न कि कोई छिपाने लायक बात।

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