Nutrition Special बच्चों के पहले 1000 दिन : क्यों कहते हैं इसे ‘गोल्डन पीरियड’?
Nutrition Special अगर किसी बच्चे का भविष्य सुरक्षित और स्वस्थ बनाना है तो शुरुआत पहले दिन से करनी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के जीवन के पहले 1000 दिन यानी गर्भधारण से लेकर दो साल की उम्र तक, इतने अहम होते हैं कि इन्हें ‘गोल्डन पीरियड’ कहा जाता है। इसी अवधि में शरीर, दिमाग और रोग-प्रतिरोधक क्षमता की नींव पड़ती है। इस समय में हुई पोषण की कमी या ग़लत खानपान का असर पूरी ज़िंदगी पर पड़ सकता है।
आंकड़े बताते हैं सच्चाई
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में पाँच साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे अविकसित (स्टंटेड) हैं। यानी उनकी लंबाई उम्र के अनुसार कम है। वहीं, शहरी इलाकों में मोटापे और अधिक वज़न वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति बताती है कि देश को एक साथ कुपोषण और अस्वास्थ्यकर खानपान की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
पीडियाट्रिशियन और नियोनैटोलॉजिस्ट डॉ. सनी नरूला का कहना है कि पाँच साल से कम उम्र के लगभग 20-30% बच्चे पोषण संबंधी समस्याओं से जूझते हैं।
- कुपोषण प्रोटीन और ताज़ा भोजन की कमी से होता है।
- मोटापा पैकेज्ड स्नैक्स, तली-भुनी चीज़ों और मीठे पेयों से बढ़ता है।
- उनकी सलाह है कि बच्चों की थाली का आधा हिस्सा फल और सब्ज़ियों से भरें। रोज़ाना प्रोटीन (दाल, दूध,
- अंडा, पनीर आदि) शामिल करें और मीठे पेयों की बजाय दूध, छाछ और पानी को प्राथमिकता दें।
डाइटिशियन डॉ. नीलू मल्होत्रा के अनुसार, पोषण केवल कैलोरी तक सीमित नहीं है। बच्चों के विकास के लिए जिंक, आयरन, आयोडीन, विटामिन-डी और ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व बेहद ज़रूरी हैं। उन्होंने "हिडन हंगर" यानी छिपे कुपोषण पर चिंता जताई, जो अमीर परिवारों के बच्चों में भी देखने को मिलता है। ऐसे बच्चे दिखने में स्वस्थ लगते हैं, लेकिन उनके शरीर में ज़रूरी पोषक तत्वों की गंभीर कमी होती है।
असर पूरी उम्र तक
विशेषज्ञों का कहना है कि पहले 1000 दिनों में पोषण की कमी आगे चलकर कमज़ोर हड्डियां, बार-बार बीमार पड़ना, पढ़ाई में ध्यान न लगना और बड़ी उम्र में डायबिटीज़ व हार्ट डिज़ीज़ जैसी गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकती है। यानी इन दिनों की लापरवाही जीवनभर का रास्ता बदल सकती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों के पहले 1000 दिन केवल माता-पिता ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और स्वास्थ्य व्यवस्था की साझा ज़िम्मेदारी हैं। यही वे दिन हैं, जो आने वाली पीढ़ी को मजबूत और स्वस्थ बनाने की असली बुनियाद रखते हैं।